Tuesday, 19 February 2019

  आज  17 वीं सदी के हिन्दुत्व रक्षक,उच्च विचारक , राष्ट्रप्रेमी वीर शिरोमणी  राजाधिराज छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के शुभअवसर पर मेरा उनकी स्मृति में समर्पित ये लेख-------

प्रेरक प्रसंग केवल सुनकर भूल जाने के लिए नहीं होते।प्रेरणा कुछ पलों की नहीं ,बल्कि जीवन भर के लिए होनी चाहिए।उनमे बहुत गहरी सीख छुपी होती है।छत्रपति शिवाजी बहुत साहसी ,निडर ,दयालु और न्यायप्रिय शासक थे।अपनी बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता के साथ उन्होंने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त की थीं।अक्सर बच्चों को उनके जीवन से जुड़े विभिन्न किस्से सुनाये जाते हैं।सिर्फ बच्चों को ही नहीं ,हर व्यक्ति को इन प्रसंगों में मौजूद सीख को सुनना और आत्मसात करना चाहिए।
बचपन से ही शिवाजी बहुत निडर और साहसी थे।आगे चल कर उन्होंने पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी।अपने चातुर्य के बल पर वे बड़ी -बड़ी मुश्किलों से चुटकियों में बाहर आ जाते थे।प्राचीन काल से लेकर अब तक हिन्दुस्तान की इस पावन पवित्र वीरों की भूमि में अनेक योद्धा उत्पन्न हुए है।छत्रपति शिवाजी का नाम भी उन्ही योद्धाओ में से एक है।

छत्रपति शिवाजी के वंश एवं परिवार का परिचय--------

ईसा की सोलहवीं शताब्दी के मध्य में शिवाजी के पूर्वज बाबाजी भोंसले पूना जिले के हिंगनी और देवलगांव नामक दो गांवों के पटेल का काम करते थे।बाबाजी भोंसले की मृत्यु के बाद उनके दो लड़के मालोजी और विठोजी पड़ोसियों से अनबन होने के सबब से बाल -बच्चों सहित गाँव छोड़कर विख्यात एलोरा पहाड़ के नीचे वेरुल गाँव को चले गये ।वहां पर खेती से कम आमदनी देख वे सिन्धखेड़ के जमींदार और अहमद नगर राज्य के सेनापति लखूजी यादवराव के पास जाकर मामूली घुड़सवारों की फौज में नौकरी करने लगे।हरएक को बीस रुपये मासिक तनख्वाह मिलती थी।

शिवाजी  ऐसे वंश से संवन्धित है जिसकी वीरता जग जाहिर है।उनके पिता शाह जी भोंसला उस पवित्र राणा के शिशोदिया वंश में पैदा हुए जिसमे बड़े बड़े शूरवीर उत्पन्न हुए।यह वंश सदैव स्वतंत्र रहा।इस वंश की हर पीढ़ी अपनी जाति और देश के लिए सदैव संघर्ष करती रही।मुस्लिम शासकों से हमेशा दूरी बनाये रखी।इस कारण यह अपनी पवित्रताके कारण समस्त राजपूतों के शिरोमणी है।

शिवाजी की माता जीजाबाई दक्षिण के देवलगढ़ के जादव (यदुवंशी क्षत्रिय)  वंश से थी। जीजाबाई के पिता लखूजी जादवराव  सिन्धखेड़ के जमींदार और अहमद नगर राज्य के सेनापति थे तथा माता गिरिजाबाई बड़ी बुद्धिमती ,तेज एवं बहादुर रमणी थी।

शाहजी एवं जीजाबाई-------

सम्भवतः शाहजी एवं जीजाबाई का विवाह सन 1604ई0 में हुआ।जीजाबाई और शाहजी के आपस में सम्बन्ध बहुत मधुर नहीं रहे।सन 1630से 1636 ई0 तक शाहजी का समय लड़ाई -झगड़ों ,कठिनाइयों और अपनी हालत के। हेर-फेर में ही काटा।इस कारण उनको बहुत जगह घूमना पड़ा।सन 1636 ई0 में मुगलों के साथ उनकी लड़ाई खत्म हो गई।उस समय यधपि उन्होंने बीजापुर राज्य की नौकरी कर ली थी,परन्तु महाराष्ट्र में अधिक नहीं रहे।वे मैसूर देश में अपनी नई जागीर बसाने चले गए।वहां वे अपनी दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते और उसके लड़के व्यंकोजी (उर्फ एकोजी) के साथ रहने लगे।

शिवाजी का जन्म एवं बाल्यकाल-------

जीजाबाई के गर्भ से दो पुत्र जन्मे--शम्भुजी(सन 1623ई0 ) और शिवाजी का जन्म 19 फरवरी 1630ई0 को हुआ था।दूसरे लड़के के जन्म से पहले जीजाबाई जुन्नर शहर के नजदीक शिवनेर के पहाड़ी किले में रहती थी।माता जीजाबाई ने अपनी होने वाली सन्तान की मंगल कामना के लिए किले की अधिष्ठात्री देवी "शिवा" भवानी की मनौती माँगी थी।इस कारण लड़के का नाम रखा "शिव" जो दक्षिणियों के उच्चारण के अनुसार "शिवा" हो गया।जीजाबाई अपने दोनों पुत्रों के साथ अकेले ही शिवनेर के किले में आश्रय लेकर रहते थे।
जन्म से लेकर दस वर्ष की आयु तक शिवाजी ने अपने पिता को बहुत कम देखा था ,और उसके बाद तो पिता -पुत्र दोनों बिल्कुल ही अलग हो गये।

शिवाजी की मातृभक्ति और धर्म -शिक्षा----------

पति के प्रेम से वंचित होने के कारण जीजाबाई का मन धर्म की ओर झुका।पहले भी धर्मपरायण थीं,पर अब तो एकदम संन्यासिनी के समान रहने लगीं।फिर भी वक्त पर जमींदारी के काम -काज करती थीं।माता के इन धार्मिक भावों का प्रभाव उनके पुत्र के बाल -ह्रदय पर पड़ा।शिवाजी अकेले में बढ़ने लगे।उनके पास न तो कोई मित्र ही था , न भाई ,न बहिन और न पिता ही।कहते है इनके भाई शम्भू जी तरुण अवस्था में कनकगिरि के किले पर आक्रमण करते समय मारे गए।इतिहास उनके संम्बन्ध में मूक है।इस निर्जन जीवन के कारण मा-बेटे में बहुत घनिष्टता हो गई।शिवाजी की स्वाभाविक मातृ-भक्ति आगे चल कर एकदम देव -भक्ति तुल्य तजुर्बा हो गई।
शिवाजी ने बचपन से ही अपना काम अपने आप करना सीखा।उन्हें किसी दूसरे की आज्ञा अथवा सलाह लेने की जरूरत नहीं पड़ी।इस प्रकार जीवन के आरम्भ से ही उन्होंने जिम्मेदारी उठाना और खुद काम करने का तजुर्बा हासिल किया।

शिवाजी के चरित्र से लें प्रेरणा ----- 

शिवाजी का चरित्र अनेक सद्गुणों से भरा था।उनकी मातृ-भक्ति ,सन्तान -प्रीति ,इन्द्रिय-निग्रह ,धर्मानुराग ,साधु -सन्तों के प्रति भक्ति ,विलासवर्जन ,श्रमशीलता और सब सम्प्रदायों के ऊपर उदार भाव उस युग के अन्य किसी राजवंश में ही नहीं ,अनेक गृहस्थों के घरों में भी अतुलनीय था।वे अपनी राज्य की सारी शक्ति लगाकर स्त्रियों के सतीत्व -रक्षा करते ,अपनी फौज की उदंडता का दमन करके सब धर्मों के उपासना -स्थलों और शास्त्रों के प्रति सम्मान दिखलाते और साधु -संतों का पालन -पोषण करते थे।

मातृशक्ति का सम्मान परम् धरम-------

शिवाजी की उम्र उस समय मात्र 14 वर्ष थी।उनके सामने एक सैनिक किसी गांव के मुखिया को पकड़ कर लाये तो घनी मूंछों वाला बड़ा ही रसूकदार व्यक्ति था ।अच्छे -अच्छे उसे देख कर डर जाते थे,मगर युवा शिवाजी पर उसके व्यक्तित्व का कोई असर नहीं हुआ।
दरसल उस व्यकि पर एक विधवा के साथ दुष्कर्म का आरोप साबित हो चुका था।शिवाजी के मन में महिलाओं के प्रति हमेशा से ही बहुत सम्मान भाव था।उन्होंने तुरन्त अपना निर्णय सुनाया, "इस व्यक्ति के दोनों हाथ -पैर काट दिए जांय।ऐसे जघन्य अपराध के लिए इससे कम सजा नहीं हो सकती।"
जब शिवाजी ने कल्याण दुर्ग पर विजय प्राप्त की थी तो उनके सेनापति ने परास्त सूबेदार की बेहद सुन्दर पुत्रबधू गौहर बानू को शिवाजी के सामने प्रस्तुत किया ।शिवाजी ने सेनापति के इस कृतित्व के लिए डाटा और गौहर बानू से क्षमा मांगी और सेउसके शौहर के पास वापस सुरक्षित भेज दिया।उसकी सुन्दरता की तारीफ भी उन्होंने अपनी मां से तुलना करके की।

गुरु को सौंप दिया राज -पाट -- ----

 शिवाजी के गुरु रामदास स्वामी महाराष्ट के बड़े प्रसिद्ध और सर्वमान्य साधु पुरुष थे।शिवाजी ने सन 1673 ई0 में सतारा का किला जीत कर तथा उससे थोड़ी दूर परली- दुर्ग पर  भी अधिकार कर लिया।इसी परली-दुर्ग को सज्जन -गढ़ (साधुओं का गढ़) नया नाम देकर शिवाजी नेअपने गुरु के लिए एक आश्रम बना दिया,और रामदास जी को वहीं लाकर रखा तथा उनके लिए मन्दिर ,मठ आदि बनवा दिये।रामदास जी अन्य साधुओं की तरह रोज भिक्षा को निकलते थे।शिवाजी इससे हैरान थे।उन्होंने सोचा ----"गुरुजी को हमने इतना धन और ऐश्वर्य दान दिया ,तब भी वे भिक्षाटन क्यों करते है?क्या करने से उनके मन की तृष्णा मिटेगी?"इसी ख्याल से उन्होंने दूसरे दिन एक कागज पर महाराष्ट्र का अपना सारा राज्य और समस्त राजकोष का दान -पात्र रामदास स्वामी जी के नाम लिख कर उस पर अपनी मोहर लगा दी ,और भिक्षा के रास्ते पर गुरु जी को पकड़कर उस दान पत्र को उनके चरणों में अर्पित कर दिया।अब मेरा राज्य आप का हुआ ।अब आप भिक्षा के लिये मत जाइए।
रामदास उसे पढ़ कर मन्द मुस्कान के साथ बोले ---
"अच्छी बात है।यह सब हम ने ले लिया।आज से हमारे गुमाश्ता मात्र रहे।अब यह राज्य तुम्हारे लिए अपने भोग -विलास और मनमानी करने की वस्तु न रहा । तुम्हारे ऊपर एक बड़ा मालिक है।उसी की यह जमींदारी  है जिसे तुम उसके विश्वासी नौकर के रूप में चला रहे हो ,इसी दायित्व के विचार से आगे राज -काज चालान ।"
राज्य के मालिक सन्यासी होने के कारण उनका गेरुआ वस्त्र ही शिवाजी की राज -पताका हुई जिसका नाम रक्खा "भगवा झंडा "।यह मनोरम दन्त कथा महाराष्ट्र में खूब प्रचलित है।

निष्ठावान हिन्दू भक्त--- 

शिवाजी की गिनती एक महान हिन्दू  राष्ट्र भक्तों में की जाती है।उन्होंने मुगलों के विरुद्ध हिंदुओं में एकता का भाव उत्पन्न कर उसके जातीय संगठन द्वारा पुनः हिंदुराज्य स्थापित कर देना हीअपना मुख्य अभिप्राय प्रकट कियाऔर मराठा जाति में एक प्रकार का जोश उत्पन्न कर दिया।एक बार मुरार पंत ने शिवाजी को बादशाह के दरवार में चलने को कहा तो उन्होंने अप्रसन्नता प्रगट करते हुये कहा "हम हिन्दू है,बादशाह यवन है और महायवंन है।हमारा और उसका मेल नही हो सकता मैं किसी ऐसे मनुष्य  का दर्शन करना नहीं चाहता जो हमारे हिन्दू धर्म का शत्रु है मैं उसे छूना भी नहीं चाहता हूँ।सलाम तो करना और रहा मन में आता है उसे मार डालूं।जब शिवाजी को किसी तरह समझा कर दरवार ले गए लेकिन उन्होंने बादसाह को सलाम नही किया और दरवार से लौट कर स्नान किया और नए वस्त्र पहने।उनके चरित्र के विषय में तो हिन्दुस्तान ही नहीं पूरा विश्व जनता है महान चरित्रवान योद्धा थे।कट्टर मुसलमान इतिहासकार खाफीखां ने भी शिवाजी की मृत्यु पर उल्लेख करते समय शिवाजी के सच्चरित्र ,पर स्त्री को माता के समान मानना ,दया ,दाक्षिण्य और सब धर्मों को समान प्रतिष्ठा से देखना ,आदि दुर्लभ गुणों की मुक्ति कंठ से प्रशंसा की है।शिवाजी का राज्य था "हिन्दवी स्वराज" पर अन्य धर्मों के लोग भी उनके अधीन नौकरी पाते थे और ऊँचे पदों पर प्रतिष्ठित होते थे लेकिन उनमें राष्ट्र भक्ति भाव था।

सर्व धर्म -सम्प्रदायों का समान सम्मान --- -----

उनके राज्य में सब जातियाँ और सब -धर्म -संम्प्रदाय अपनी -अपनी उपासना की स्वाधीनता और संसार में उन्नति करने का समान सुयोग पाते थे।देश में शांति और सुविचार की जय और प्रजा के धन -मान की रक्षा के एक मात्र कारण वे ही थे।भारतवर्ष के समान नाना वर्ण और धर्म के लोगों से भरे हुए देश में शिवाजी द्वारा संचालित इस राजनीति से बढ़ कर उदार और कल्याण करने वाली किसी भी दूसरी नीति की कल्पना नहीं की जा सकती।

शिवाजी की प्रतिभा एवं मौलिकता---------

आदमी को देखते ही उसके चरित्र और ताकत को ठीक समझ कर हर एक को उसकी योग्यता के अनुसार काम में लगाना प्रकृत शासक के गुण है ;शिवाजी में भी यह आश्चर्यजनक गुण था।उनके चरित्र की आकर्षण शक्ति चुम्बक की तरह थी।देश के अच्छे ,चालक और बड़े लोग उनके यहां आ जुटते थे ,उनके साथ भाई की तरह व्यवहार कर ,उनको सन्तुष्ट रख कर वे उनसे आन्तरिक भक्ति और सोलहों आना विश्वास एवं सेवा पाते थे।इस लिए वे हमेशा सन्धि -विग्रह ,शासन और राजनीति में इतने सफल होते थे।फौज के साथ हमेशा हिल -मिलकर ,उनके दुःख के साथी होकर ,फ्रेंच फौज के नेपोलियन की तरह ,वे पूर्ण रूप से उनके बन्धु और उपास्य देवता हो गये थे।

जंगी बन्दोबस्त में निपुणता ------

जंगी बन्दोबस्त में श्रंखला ,दूरदर्शिता ,सब बातों के ऊपर सूक्ष्म दृष्टि डालना ,अपने हाथों में अनेकों कामों की बागडोर रखने की शक्ति ,मौलिक विचार और कार्य नैपुण्य --इन सब गुणों की उन्होंने पराकाष्ठा दिख दी।देश की यथाथ हालत और उनकी फौज के जातीय स्वभाव के लायक किस प्रणाली की लड़ाई सबसे अधिक अच्छा फल देने वाली थी ,ये सब बातें निरक्षर शिवाजी ने केवल अपनी प्रतिभा के जोर से ही मालूम की थी ,और उनका ही आश्रय लिया था।

शिवाजी की प्रतिभा कैसी मौलिक थी ,कितनी बड़ी थी ,इसे समझने के लिए यह याद रखना चाहिए कि उन्होंने मध्ययुग के भारत में एक अनहोनी बात कर दिखाई।उनके पहले कोई भी हिन्दू मध्याह्न के सूर्य के समान प्रचण्ड तेज वाले बलवान मुगल -साम्राज्य के विरुद्ध खड़े होने में समर्थ  नहीं हुआ था।सभी हार कर पिस गए, और लोप हो गए।यह देख कर भी एक साधारण जागीरदार का यह पुत्र नहीं डरा,वह विद्रोही बना ,और अन्त तक जयलाभ भी करता गया।इसका कारण था शिवाजी के चरित्र में साहस और स्थिर विचारों का समावेश।किस जगह कितना आगे बढ़ना उचित है ;कहाँ पर रुकना चाहिए ;किस समय कैसी नीति का अवलम्बन करना चाहिये :इतने लोग और इतने धन से ठीक -ठीक कौन -कौन काम करना सम्भव है -----ये सब बातें वे एक क्षण में ही समझ जाते थे।यही सब बातें उनकी ऊँची राजनीतिक प्रतिभा की परिचायक थीं।यही कार्यकुशलता और अनुभवपूर्ण बुद्धि उनके जीवन की आश्चर्यजनक सफलता के द्योतक थे।

शिवाजी का राज्य लोप हो गया।उनके वंशज आज जमींदार मात्र है ,परन्तु मराठा -जाति को नवजीवन प्रदान करने के कारण उनकी कीर्ति अमर है।उनके जीवनव्यापी परिश्रम के कारण ही बिखरे हुए ,अनेकों राज्यों में बंटे  हुये ,मुसलमान शासकों के अधीन मराठों को बुलाकर शिवाजी ने पहले अपनी कुशल कार्यप्रणाली के द्वारा यह दिखा दिया कि स्वयं अपने मालिक होकर लड़ सकते है। मराठा जाति दृढ़ हुई, उसने अपनी शक्ति को समझा और उन्नति के शिखर पर पहुंची । उसके बाद स्वाधीन राज्य की स्थापना कर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि वर्तमान (उस काल में ) समय के हिन्दू भी राष्ट्र के सभी विभागों के काम चला सकते है ।राज -काज के बन्दोबस्त करनेमें ,जल या स्थल युद्ध करने में ,साहित्य और शिल्प की पुष्टि करने में ,व्यापारी जहाज तैयार करके संचालन करने में और अपने धर्म की रक्षा करनेमें समर्थ है और देश की राष्ट्रीयता को पूर्णता प्रदान करने की शक्ति अब भी उनमें विद्यमान है।  इन सब कारणों से हम छत्रपति शिवाजी महाराज को हिन्दू -जाति का अंतिम मौलिक संगठनकर्ता और राजनीति -क्षेत्र का श्रेष्ठ कर्मवीर कह सकते है।

शिवाजी के चरित्र के ऊपर विचार करने से हमें यह शिक्षा मिलती है कि प्रयाग के अक्षयवट की तरह हिन्दू -जाति का प्राण अमर है।सैकड़ों वर्ष तक बाधाओं और विपत्तियों  को झेलकर भी पुनः सिर ऊँचा करने की और नये पल्लव फैलाने की ताकत उसमे छिपी है।
निरक्षर बालक ,शिवाजी ने कितना मामूली मसाला लेकर ,चारों ओर के कैसे भिन्न -भिन्न प्रतापी शत्रुओं से लड़कर अपने को ---साथ ही साथ उस मराठा -जाति को ---स्वाधीनता के आसन पर बैठाया था, यह कहानी भारत के इतिहास में अमर रहेगी ।उस आदि युग के गुप्त और पाल साम्राज्य के बाद शिवाजी को छोड़कर और किसी दूसरे हिन्दू ने इतना बड़ा पराक्रम नहीं दिखाया।

मैं उनकी जयन्ती के शुभ अवसर पर हिन्दुत्व एवं राष्ट -प्रेमी इस महान पुरोधा को सादर सुमन  अर्पित करते हुए सत सत नमन करता हूँ।

हमारी नई युवा पीढ़ी से आशा करता हूँ कि वह  छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी को पढ़ कर उनके उच्च आदर्शों को जीवन में आत्मसात करें।जय हिन्द।जय राजपूताना।।

लेखक -डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन  
गांव-लढोता ,  सासनी, जिला -हाथरस ,उत्तर प्रदेश
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (वांकानेर)