Saturday, 28 May 2022

गौतमबुद्ध नगर जनपद के स्वतंत्रता संग्राम सैनानी छोंकरजादों ठाकुर लीला सिंह-

गौतमबुद्ध नगर के  स्वतंत्रता सैनानी छोंकरजादों ठाकुर लीला सिंह जी---

ठाकुर लीला सिंह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के उन सैनिकों में से थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अनवरत संघर्ष किया। इसलिए उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर सपूतों में गिना जाता है। आप गाँधी युगीन देशभक्त एवं स्वतंत्रता प्रेमी भारत माता के वीर सैनिक थे।आप में बचपन से ही स्वतंत्रता का अलख जगाने का जज्बा था जो बाद में आप ने करके दिखाया ।

जन्म एवं पारिवारिक प्रष्ठभूमि---

ठाकुर लीला सिंह का जन्म बुलन्दशहर जिले तत्कालीन गौतमबुद्ध नगर जनपद के रन्हेरा ग्राम में सन् 1917 के लगभग  छोंकर जादों राजपूत परिवार में ठाकुर लखपत सिंह के यहां हुआ था। उनका बचपन बहुत ही कठिनाइयों से भरा था। आय का साधन घर की खेतीबाड़ी ही थी। इनके दो बड़े भाई खेती करते थे। पिता बचपन में ही स्वर्ग सिधार गये।

सेना में देश सेवा--

ठाकुर लीला सिंह सन् 1934 में वे सेना में भर्ती हो गए। द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) में उन्हें जापानियों ने वर्मा में गिरफ्तार कर लिया था। कई वर्षों तक वे कैद में रहे। तब तक उनका संपर्क अपने सगे-संबंधियों से कटा रहा, जिससे उनके परिवार वालों को उनके जीवित न होने का अंदेशा हुआ।

नेताजी की आजाद हिन्द फौज के सैनिक--

इसी समय सन् 1943 में वे देश के स्वतंत्रता संग्राम के  प्रमुख नायक सुभाष चन्द्र बोस की 'आजाद हिन्द फौज के सदस्य बने और अंग्रेजों को हराने के लिए जापानी  सेना के साथ मिलकर भारत की ओर कूच किया। वह उनका राष्ट्र प्रेम ही था, जो उन्होंने पराधीन देश को स्वाधीन कराने का स्वप्न देखा और उसे व्यवहार में क्रियान्वित भी किया।

सन् 1944-45 के दौरान लड़ाई में जापान हार गया। इसके साथ ही आजाद हिन्द फौज को भी पराजय का सामना करना पड़ा। अतः मजबूरी में आत्मसमर्पण की स्थिति आने पर ठाकुर लीला सिंह भी अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। जब आई.एन.ए. के कुछ अफसरों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया तथा सैनिक अदालत ने उन्हें मृत्यु दण्ड सुनाया तो प्रबल जन-विरोध देखते हुए ब्रिटिश सरकार को अदालत के फैसले के विरुद्ध जाकर भी, आजाद हिन्द फौज के अधिकारियों को मुक्त कर देना पड़ा। इस प्रकार आजाद हिन्द फौज के अन्य सदस्यों के साथ ठाकुर लीला सिंह भी जेल से छूटकर आ गये। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन्होंने गांव में रहकर फिर से खेती का कार्य संभाला।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस में अपार श्रद्धा--

ठा. लीला सिंह की अपने नेता सुभाष चन्द्र बोस में अपार श्रद्धा थी। आप बहुत ही संयमी, कर्मशील व सिद्धांतवादी थे। आपका ईश्वर में पक्का विश्वास था। आपका पूरा जीवन सात्विक व संघर्षमय रहा।

देहान्त --

देशभक्त एवं स्वतंत्रता प्रेमी ठाकुर लीला सिंघह की मृत्यु करीब 75 वर्ष की आयु में 19 नवम्बर, 1992 को उनके पैतृक गांव रनहेरा, जिला बुलन्दशहर नवसृजित जिला गौतमबुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश में हुई।उनकी पुण्य तिथि पर आज भी उनके परिवारी जन उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। रन्हेरा गांव उनकी पुण्य स्मृति  पर उनका आदमकद चित्र भी निर्माण करा रहा है।

लेखक आभारी है बड़े भाई ठाकुर श्री नेपाल सिंह जी का जो ठाकुर लीला सिंह जी के पुत्र हैं  जिनके सहयोग से यह लेख ठाकुर लीला सिंह की स्मृति में मुझे लिखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

लेखक-डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव -लढोता , तहसील -सासनी 
जनपद- हाथरस, उत्तर प्रदेश ।
एसोसिएट प्रोफेसर कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ।


मथुरा जनपद के विस्मृत जादों राजपूत स्वतंत्रता संग्राम सैनानी--

मथुरा जनपद के विस्मृत जादों राजपूत स्वतंत्रता सैनानी ---

1-रसमई गांव --

रसमई गांव ने भी स्वतंत्रता के युद्ध में प्रशंसनीय भाग लिया ।यहां के अधिकांश ठाकुर अच्छे शिक्षित थे और उन्होंने स्वतंत्रता के युद्ध में सहर्ष भाग लिया और क्षत्रियोचित कार्यों से इस गांव के नाम को गौरवान्वित किया।यही नहीं यहां के पुरुषों ने भाग लिया लेकिन 1932 में तो रसमई की लक्ष्मीदेवी हरभेजी देवी ने भाग लेकर महीनों जेल की यातनाओं को सहन किया ।रसमई के देशभक्त ठाकुरों में निम्न प्रमुख थे।

1-ठाकुर गजराज सिंह पुत्र कीरत सिंह 20-6-1932 में जेल गए।
2-ठाकुर सरदार सिंह पुत्र वीरी सिंह 6 माह जेल।
3-ठाकुर भगत सिंह
4-लक्ष्मीदेवी ,8-4-1932 , 6 माह जेल।
5-हरिभेजीदेवी

2-कुंजेरा गांव--

गोवर्धन मंडल के अंतर्गत कुंजेरा गांव भी भुलाया नहीं जा सकता ।यहां के भी कुछ देश भक्तों ने अपने अनुपम त्याग से ब्रजभूमि को गौरवान्वित किया।कुंजेरा गांव भी देशभक्तों को उत्पन्न करने वाला गांव प्रमाणित हुआ।यहां के उक्त उल्लेखनीय देशभक्तों ने आगे चलकर सन 1932  के आन्दोलन में जेल यात्रा की और इनको अनेक कष्ट सहने पड़े।इन लोगों को आर्थिक कष्ट एवं संकट के दिन भी व्यतीत करने पड़े।
1-ठाकुर सोनपाल सिंह -कुंजेरा के देशभक्त ठाकुर सोनपाल सिंह की मां और धर्मपत्नी भी स्वतंत्रता के आंदोलन के पुनीत यज्ञ में सम्मलित हुई।
2-ठाकुर भोजपाल सिंह और उनकी धर्मपत्नी ने भी आन्दोलन में कार्य किया। इनको 1932 में 6 माह जेल में रहना पड़ा।
3-ठाकुर चिमन सिंह ,4-3-1932, 3माह जेल 20रुपये जुर्माना ।
4-परशराम सिंह ,4-3-1933,3 माह जेल ,20 रुपये जुर्माना ।
5-दुलारी देवी पत्नी ठाकुर सोनपाल सिंह 25-01-1932 को जेल गयी तथा 6 माह जेल में रही।
6-ग्यारसो देवी पत्नी ठाकुर पत्नी भोजपाल सिंह 25-1-1932 जेल ,6 माह जेल रही।
7-धनकोर माता ठाकुर भोजपाल सिंह 25-1 1932 , 6 माह जेल।
8-ठाकुर शेर सिंह पुत्र चन्दन सिंह 8-8-1933 ,6 माह जेल।
9-ग्यासीराम पुत्र मेंडू सिंह जेल गए।
10-शेरसिंह पुत्र लहर सिंह 2-2-1933 ,6माह जेल 20 रुपये जुर्माना ।

3-बन्दी गांव--

1-ठाकुर पोखपाल सिंह ,जेल यात्री रहे।
2-ठाकुर कृष्णपाल सिंह ,3 माह जेल 20 रुपये जुर्माना ।
3-ठाकुर मदन सिंह, 3माह जेल 20 रुपये जुर्माना ।
4-नारायण बाबा , जेल यात्री ।
5-लालाराम ,कई दफ़ाएँ इन पर लगाई ,काफी समय जेल में रहे।

4-छाता --

1-हरेकृष्ण सिंह पुत्र चन्दा सिंह 23-8-1932, 1 वर्ष जेल ,कठोर यातनाएं सही।
2-खेम सिंह ,1932 ,3 माह जेल।
3-गंगाधर सिंह 17-8-1932 , 6 माह जेल ,10 रुपये जुर्माना ।
4-चरण सिंह पुत्र विरजी सिंह ,16-9-1932,6 माह जेल 10 रुपये जुर्माना।

5- नरी गांव--

1-ठाकुर विजयपाल सिंह

6-कोसी गांव-यहां के ठाकुरों ने भी इस राष्ट्र यज्ञ में राष्ट्रीय जोश के साथ भाग लिया।

7-अड़ींग गांव के जादों ठाकुरों का बलिदान (जनश्रुति के आधार पर)--

   मथुरा गोवर्धन मार्ग (सड़क) पर बसा हुआ जादों ठाकुरों  का गांव अड़ीग भी स्वतंत्रता की क्रान्ति में सक्रिय रहा था। यहां पर फोंदाराम जाट द्वारा निर्मित एक मिट्टी का किला था जो अब लगभग ध्वस्तवस्था में है।फोंदाराम भरतपुर के राजा सूरजमल (1755-63 ई0 )  का एक जागीरदार था।क्रान्तिकारियों ने यहाँ के खजाने पर अधिकार करने के लिये चढ़ाई की थी लेकिन जमींदारों और सरकारी अधिकारियों के सक्रिय अवरोध के कारण वे अपने उद्देश्य में सफल न हो सके। उन्हें सूचना मिलते ही पीछे हटने को बाध्य होना पड़ा। क्रान्तिकारियों का एक और दल उन्हीं दिनों अड़ीग आया था। यहां के पटवारी भजनलाल को जब यह सूचना मिली तो उसने अग्रेजों को अपने मकान में छिपा लिया । जब क्रान्तिकारी आये तो उसके लिये दावत भी दी। क्रान्तिकारियों को यह कल्पना नहीं थी कि उस आतिथ्य का पीछे भजनलाल का एक देशद्रोहिता पूर्ण कार्य छिपा हुआ है। अन्त में क्रान्तिकारी लोग अड़ींग को बिना किसी प्रकार की क्षति पहुंचाये हुए वहां से चले गये । 2अक्टूबर  1857 के अन्तिम दिनों ब्रिटिश पुलिस ने यहां 9 क्रान्तिकारियों को प्रचुर सोना के साथ गिरफ्तार किया था। इन्हें आगरा भेज दिया गया था और सोना पकड़ने वालों में बाँट दिया गया था। सन् 1857 के स्वातंत्र्य  युद्ध में अंडींग के  जादों ठाकुरों ने विशेषतः सक्रिय भाग लिया था । उस समय इनके 80 या 85 घर थे। प्रायः अडींग की सब जमींदारी  इन्हीं लोगों के हाथ में थी। उस समय अडींग एक तहसील थी और ऊंचे टीले पर स्थित भरतपुर राज्य के खानदानी फौदाराम जाट की हवेली थी जो आज टूटी-फूटी दशा में है। कहते हैं कि फोदाराम ने क्रान्ति के पूर्व ही जहर खाकर अपने जीवन का अन्त कर लिया था। स्वतन्त्रता के युद्ध में अड़ीग के आसपास के गांवों ने सहयोग प्रदान किया था जिसमें नैनूपटटी के जाट भी सम्मिलित थे। बाद में अडींग के लगभग 70 देशभक्त जादों ठाकुरों को तहसील लूटने के अपराध में फौदाराम जाट की हवेली में फांसी पर लटका दिया था। उनकी जमींदारियाँ जप्त करली गयीं थी।अत्याचारों के कारण यहां के ठाकुरों को बड़ी संख्या में पलायन करना पड़ा था।इस राष्ट्रमुक्ति संघर्ष में सेठ के प्रतिनिधि लाला रामवक्स ने विदेशियों को प्रश्रय देकर देश-द्रोहिता का परिचय दिया था।अंग्रेजों ने उसे तथा मुन्शी भजनलाल पटवारी को पुरस्कार भी दिया था।
स्थानीय ठाकुर रघुनाथ सिंह से प्राप्त जानकारी के अनुसार आज की टूटी-फूटी भटियारों की सराय में जो 1857 में अच्छी दशा में थी देशभक्तों को गिरफ्तार किया गया था।देशभक्त जादों ठाकुरों के परिवारों को गिन-गिन कर फांसी पर चढ़ा दिया था।यहां तक कि अबोध बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया था।जब अड़ींग के जादों ठाकुरों का उन्मूलन करने विदेशी कुकृत्य एवं विनाश में संलग्न थे उसी समय ठाकुर हरदेवसिंह की गर्भवती पत्नी किसी प्रकार बचकर कुंजेरा गांव पहुंच गई थी वहीं पर ठाकुर फकीरचन्द का जन्म हुआ ।इन्हीं के खानदान के कुछ घर अड़ींग में हैं।

लेखक-डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव -लढोता , तहसील -सासनी 
जनपद- हाथरस, उत्तर प्रदेश ।
एसोसिएट प्रोफेसर कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ।


Monday, 9 May 2022

अलीगढ़ जनपद के स्वतंत्रता सेनानी यदुवंशी जनकवि ठाकुर खेमसिंह "नागर " नगला पदम् की गौरवगाथा---

अलीगढ़ जनपदीय  स्वतंत्रता की क्रांति के एक महानायक जनकवि  ठाकुर खेमसिंह "नागर " नगला पदम् की गौरवशाली जीवन गाथा ----

खेमसिंह नागर सर्वतो मुखी प्रतिभा के धनी जन कवि थे।जन साहित्य और कला के क्षेत्र में ही नहीं , जीवन और जगत के प्रायः सभी क्षेत्रों में इन्होंने मानवता के लिए अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है।इनका व्यक्तित्व  प्रभाव शाली था।नागर जी विकास और प्रगति के दृढ़ अंकुर थे ।जीवन के प्रत्येक क्षण में नागर जी क्रियाशील एवं प्रगतिशील रहे थे ।देश के विभिन्न जिलों में इन्होंने देहातों में जाकर स्वरचित देशभक्ति से ओतप्रोत लोकगीत गाये।देहातों में नागर जी ने स्वतंत्रता की क्रांति का स्वर किसानों ,गरीवों एवं मज़दूरों तक में भी फूंक दिया।नागर जी के गीतों का नेताओं की सभाओं और भाषणों की अपेक्षा अधिक प्रभाव पड़ रहा था।नागर जी के गीत लोकगीतों के क्षेत्र में अभूतपूर्व थे।श्रीकृष्ण एवं राधिका जी के जीवन से सम्बंधित गीत लिखे।इन्होंने इन गीतों के भाव और स्वरूप को परिवर्तित किया उनको नया रूप ,नई वाणी दी तथा नई वाणी में नव जाग्रति का संदेश जन -जन तक पहुंचाया।
अलीगढ़ के स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर टोडर सिंह जैसे मित्रों के सानिध्य में रह कर नागर जी की सरदार भगतसिंह जी जैसे महान क्रांतिकारियों से  भी भेंट हुई ।उनकी राष्ट्रवाद की क्रान्तिकारी विचारधाराओं का नागर जी ह्रदय पर गहरा प्रभाव पड़ा और स्वतंत्रता के लिए जन-आंदोलनों में भाग लेने लगे तथा देशभक्ति का लोगों में जज्बा पैदा करने के लिए अपनी देशभक्ति की गोरों के खिलाफ कविता लिखने लगे।
नागर जी प्रयास करने पर भी बहुत अधिक पढ़ नहीं पाए किन्तु राजनैतिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्रों में इन्होंने विशेष उपलब्धियां प्राप्त की।अपने पिता के साथ नागर जी बहुधा ऐसे ही निर्भीकतापूर्वक ज्ञान -चर्चा किया करते थे ।इन आध्यात्मिक संस्पर्श ने ही इन्हें दीन-दुखियों के प्रति स्नेह और सहानभूति से भर दिया जिसका वर्णन इन्होंने अपनी कविताओं में भी खूब किया था।
नागर जी बहुत अच्छे मण्डली गायक भी थे।आप ने एक गायक-मण्डली का भी गठन किया था।किसान आन्दोलन के सम्बन्ध में तथा आस-पास के जन आंदोलनों में अलीगढ़ के खेमसिंह" नागर" ,पंडित छेदालाल" मूढ़ " , किशनलाल भारद्वाज तथा साहबसिंह मेहरा जैसे लोक कवियों और गायकों  ने ब्रज क्षेत्र के लोगों में अपने ब्रजभाषा के सामूहिक लोकगीतों द्वारा क्षेत्रीय जनता एवं श्रोताओं के ह्रदय में आजादी का अलख जगाया। ये कवि होने के  साथ -साथ जिला किसान सभा के नेता और कार्यकर्ता भी थे।

नागर जी  थे किसान कवि के रूप में विख्यात---

खेमसिंह नागर जी की किसान कविता की लोकप्रियता का प्रमाण नेहरू -नागर घटना से दिया जा सकता है। किसान कवि 'खेम सिंह नागर' की कविता सुनने के लिए 1936 में किसानों ने जवाहरलाल नेहरूजी के भाषण का बहिष्कार कर दिया । वह कविता थी

“ओ मजदूर किसान 
बदल दो दुनिया ।
जग के खेवनदार 
बदल दो दुनिया । "
नेहरू की लोकप्रियता ब्रज के किसानों में लोक कवि 'खेम सिंह नागर' से कम होने के कारण किसान की माँग पहले हुई । इसलिए कहा है कि किसान की मानवीय संवेदना ही किसान कविता है। आज किसान मुक्त हो गया तो समझो 'किसान कविता' भी मुक्त हो गयी । किसान कविता मुक्ति का मतलब है-"किसान वर्ग की  संवेदना, अनुभव, बोध और सौंदर्यबोध की मुक्ति पाना।”

जब भी अलीगढ़ जनपद के लोक कवियों एवं गायकों की कभी भी चर्चा होगी तब -तब इन महान विभूतियों का स्मरण श्रद्धा एवं सम्मान के साथ जरूर किया जाएगा।ऐसा मेरा मानना है।

पारिवारिक प्रष्ठभूमि--

ठाकुर खेमसिंहनागर  (नागर साहित्यिक उपनाम) का जन्म-दिसम्बर, 1898 ई० में 
चंडौस क्षेत्र के नगला पदम, जिला-अलीगढ़ (उ. प्र.) में जादों राजपूत परिवार में हुआ था।
आप के पिता श्री बिहारीसिंह   एक धर्मजीवी किसान, अशिक्षित किन्तु प्रायः कवि एवं लोक-गायक थे। माता का नाम गौरादेवी था जो गभाना क्षेत्र के घौरोट गांव की थी। पत्नी- भूगोदेवी , पुत्र प्रेम कुमार तथा पुत्रियाँ-कलावती, लीलावती, प्रेमवती, शान्ति, सत्यवती । छोटे भाई रामप्रसाद सिंह और कमल सिंह थे।

शिक्षा एवं वैवाहिक जीवन  --

नागर जी ने प्राथमिक शिक्षा भी पूरी नहीं की थी। कक्षा 3 तक ही पढ़ाई हुई।गांव के स्कूल से इनका नाम भी कट गया।इनकी पढ़ाई बन्द हो गई।ननिहाल  घौरोट चले गए वहां पर भी पढ़ाई नहीं हो सकी।वहां कोई पढ़ा -लिखा नहीं था।पत्र पढ़वाने के लिए वहां के लोग निकट के गांव बीरपुरा जाते थे।ननिहाल में भी लाड़-प्यार के कारण नागर जी की पढ़ाई नहीं हो पाई।जनता के विश्वविद्यालयों से उच्च ज्ञान और संभवता प्राप्त की ।
     पिता की आज्ञा मानकर नागर जी को बाल -विवाह करना पड़ा।मात्र 11 वर्ष की उम्र में ही इनका विवाह हो गया था। इनकी पहली पत्नी नन्ही देवी का विवाह के दो साल बाद देहान्त हो गया।पत्नी की मृत्यु के तीन साल बाद स्वर्गीया की छोटी बहिन भूपोदेवी से विवाह हुआ।

सम्पूर्ण परिवार स्वतंत्रता प्रेमी --

नागर जी के इकलौते पुत्र प्रेमकुमार ने स्वाधीनता आन्दोलन मे  भाग लिया और जेल काटी। कहा जाता है कि नागर जी की पत्नी भी जेल में रहीं और उनके बेटे प्रेमकुमार का जन्म भी जेल में ही हुआ था।नागर जी के छोटे भाई कमलसिंह भी उन्हीं की प्रेरणा से स्वाधीनता के लिए जेल गये।



जीवन संघर्ष---

1914- आर्य समाज के प्रभाव में आर्य समाजी प्रचारक महाशय जसवंतसिंह और महाशय छज्जासिह की गायन मंडली में शामिल ।1916 में भारतीय कांग्रेस के सदस्य बने ।1923 में नागपुर झंडा सत्याग्रह में ठाकुर टोडर सिंह के नेतृत्व में 14 सत्याग्रहियों  के जत्थे में शामिल नागपुर जेल में 14 महीने की बामशक्त  कैद हुई।
1924 जनपद के प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता ठाकूर टोडर सिंह के साथ क्रांतिकारी  गतिविधियों में दिलचस्पी। सरदार भगत सिंह जी  से अलीगढ़ में मुलकात । 1931 आर्य समाज के विधिवत् सदस्य रहे।बीस रुपये के मासिक योगक्षेम पर आर्य समाज के पूर्णकालिक कार्यकर्ता । 1931 में हैदराबाद रियासत में 'सत्यार्थ प्रकाश पर प्रतिबन्ध और बन्दे मातरम् गीत पर पाबन्दी के विरोध में हैदराबाद जाकर गिरफ्तारी देना और जेल यात्रा ।1936 में कांग्रेस से नागर जी का मोहभंग हो गया । नागर जी बराबर सत्य की खोज कर रहे थे ।इसी कारण बराबर पार्टियां बदल-बदल कर सत्य का अन्वेषण करते रहे ।उसी समय सोशलिस्ट पार्टी के लोगों ने नागर जी से उनकी पार्टी की सदस्य बनने का आग्रह किया। सोशलिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।इसके बाद 1942  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता जीवन पर्यन्त इसी पार्टी में रहे। पार्टी द्वारा संचालित सभी कार्यक्रमों में सक्रिय भागेदारी। अनेको जेल यात्राएँ, धरना प्रदर्शन, सत्याग्रह और अनशन आदि में अग्रणीय भूमिका में आप रहे ।
 
जेल यात्राएँ- 

नागर जी कई बार जेल की यात्राएं की सन 1923, 1930, 1931, 1932, 1940, 1942 से 1946। लगभग दस साल जेल में रहे। सन 1945 में नागर जी आजादी के पक्ष में भाषण दे रहे थे उसी समय इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में इन्हें नागपुर ,वनारस ,आगरा की सेंट्रल जेलों में रख कर यातनाएं दी गयीं ।

निधन--
30 अक्टूबर सन 1988 को 90 वर्ष की आयु में नागर जी का निधन  हो गया। नागर जी बहुत सुडौल शरीर वाले व्यक्तित्व के धनी थे।खादी का कुर्ता -धोती एवं जाकट पहनते थे।उनका  रहन -सहन सदा जीवन एवं उच्च विचार वाला था।अंतिम समय तक स्वस्थ रहे तथा देशभक्ति ,समाजसुधार ,गरीब मजदूरों के विषय में ब्रजभाषा में अपनी रचनाएं लिखते रहे।

साहित्यिक- सृजन

राजनैतिक आन्दोलनों और गिरफ्तारियों की बजह से खेमसिंह नागर जी को साहित्यक -सर्जन का अधिक समय नहीं मिला ।इनकी अधिकतर रचनाएं जेलों में लिखी गयी ।किसान बारहमासी इनकी प्रसिद्ध रचना है।लखनऊ साथी प्रेस से प्रकाशित और प्रसिद्ध क्रान्तिकारी लेखक श्री यशपाल जी द्वारा सम्पादित "विप्लव "और वनारस से प्रकाशित "हंस " एवं "स्वतंत्र भारत " , "तारा , जनयुग"  (दिल्ली ) में बराबर नागर जी की रचनाएं प्रकाशित होती थी।

नागर जी ने 1914 में लोकगीत लिखना शुरू किया।आप ने  समाज सुधार, अछूतोद्धार और स्वदेशी के प्रचार में आर्य समाजी दृष्टिकोण से रचनाएँ की।
- 1914 से 1930 तक कई जिकड़ी भजन लिखे।
-अपने गीत, धरती के गीत (रसिया एवं होली-ग्रह) - 1940
-नल दमयन्ती (नाटक) - 1940
- शिवाजी और रोशन आरा (नाटक) - 1940
- कर्तव्य (नाटक) - 1940
- फांसी का सुहाग (नाटक) - 1940
- किसान की तकदीर (भजन - रागनी ) - 1942
-भीम प्रमिज्ञा (पौराणिक नाटक) - 1945
- मजदूरन रधिया (नाटक) - 1948 
-जन कीर्तन- 1952
- नये रसिया-1952
-किसान बारहमासी-1952
 - क्रान्ति बाटिका-1953
-सरदार भगतसिंह (नाटक) - 1957
-झांसी की रानी सांगीत नौटंकी-1959
- दहेज प्रथा (नाटक) - 1960
-अब्दुल हमीद (नाटक) - 1965
- राखी की लाज (संगीत नाटिक) - 1976
-बंटवारा (संगीत नाटिका) - 1979
- पंत नगर संग्राम (आल्हा) - 1979
— अनेको रसिया, होली, मल्हार, ढोला, आल्हा, रागनी, भजन,कीर्तन, बारहमासी, जिकड़ी भजन, गजल, कब्बाली, दादरा, सुपरी माचिंग गीत, फिल्मी पैराडी आदि लिखे और गाये ।आप की अधिकांश रचनाएँ अप्रकाशित हैं।

विशेष ज्ञातव्य ---

नागर जी और उनके अनन्य सहयोगी और मित्र पंडित छेदालाल "मूढ़ " की जोड़ी समूचे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लीजेंड बन गई थी।"मूढ़ " जी अद्वितीय गायक थे।
  नागर जी एवं पंडित छेदालाल " मूढ़ " दोनों  ने अनेक शहरों की सांस्कृतिक यात्राएँ की थीं। खेतान सेठ के निमंत्रण पर बम्बई में एक महीने तक रहे थे। नागर जी 'इप्टा' से सम्बद्ध थे। उनके नाटकों की अनेकों प्रस्तुतियां इप्टा द्वारा की गई ।आप ने सोवियत संघ की यात्रा की तथा मास्को रेडियो से उनकी रचनाएँ  भी प्रसारित हुई ।सी.पी.आई. के महासचिव का० पूरनचन्द्र जोशी उनके गाँव आकर उनकी रचनाओं को रिकार्ड करके ले गये थे ।  प्रगतिशील लेखक संघ के भिवंडी सम्मेलन में नागर-मूढ के लोक गीतों की धूम मच गई थी।
नागर जी की रचनाएँ-हंस (इलाहाबाद), स्वतन्त्र भारत, विप्लव (लखनऊ), तारा, जनयुग (दिल्ली) में भी प्रकाशित हुई।
माँ भारती सदैव अपनी कोख से ऐसे लालों को जन्म देती रही है जिनके त्याग और आदर्शों के सहारे समग्र मानवता का कल्याण होता रहा है ।नागर जी भी उन्नीसवीं सदी में जन्मे एक ऐसे ही माँ भारती के वरद पुत्रों में से एक थे।

मैं उनकी पुण्य आत्मा को अपने इस लेख के माध्यम से सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
     इस लेख को लिखने की प्रेरणा मुझे मेरे परम् सम्माननीय गुरुदेव प्रोफेसर डा0 ऋषिपाल सिंह जी से मिली ।नागर जी का गुरुदेव के घर पर आना -जाना होता था।लेख को पूर्ण करने में मुझे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से सेवा -निवृत्त प्रोफेसर डा0 भरत सिंह जी का काफी सहयोग मिला ।आप दोनों का मैं तहे दिल से आभार व्यक्त करते हुए सादर प्रणाम करता हूँ।
        । जय हिन्द ।

सन्दर्भ-
1-अलीगढ़ जनपद के जनकवि -खेमसिंह नागर लेखक डा0 रवेन्द्रपाल सिंह ।
2-क्रान्तिकारी लोक कवि -खेमसिंह नागर लेखक डा0 भरतसिंह ।

लेखक-डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव -लढोता , तहसील -सासनी  
जनपद- हाथरस, उत्तर प्रदेश ।
एसोसिएट प्रोफेसर कृषि मृदा विज्ञान 
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ।