Friday, 31 March 2017

हे हिन्द के  हिन्दुस्तानी ।
इनकी भी याद करो कुर्वानी।।
अदम्य साहसी एवं वीर योद्धा दिल्ली के अंतिम हिन्दू  सम्राट पृथ्वीराज चौहान----वीरता व् साहस की मिसाल कहे जाने वाले चौहान वंश के वीरशिरोमनी सपूत दिल्ली के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की शौर्य गाथा अपने आप में अदिवतीय है। चौहान वंश के इस वीर शिरोमणि की बहादुरी का लोहा देशी व्  विदेशी सभी मानते थे।बारहवी सताब्दी में स्वदेशी  शक्ति का विदेशी शक्तियों से संघर्ष आरम्भ हुआ।इसके बाद सुल्तान  मुहम्मद गौरी ने भी 13 वीं सदी में कई बार हिंदुस्तान पर आक्रमण  किये।कहते है क़ि दो बार पृथ्वीराज चौहान ने मो गौरी को युद्ध में पकड़ा परतुं दया करके उसे छोड़ दिया।इस वीर योद्धा ने कभी भी अपना मस्तक किसी के सामने नहीं झुकाया।मो 0 गौरीकी नजर सौने की चिड़िया कहे जाने वाले हिन्दुस्तान पर टिकी  थी।सुलतान गौरी धन का महा लोभी था औरअपने इस्लाम धर्म का भी व्यापक रूप से प्रचार प्रसार करना चाहता था।बार बार युद्ध हारने के बाद एक दिन वह अपने दरवार में खीज कर गुस्से में आकर बोला "मुझे इस बात  पर बहुत सख्त अफशोस है क़ि मेने जब जब हिन्दुस्तान पर आक्रमण करके विजय हासिल करने की तदबीर चलाई तब तब ये हिंदुस्तान का हिंदूवादी शासक  पृथ्वीराज चौहान मेरे रास्ते का रोड़ा बन कर मेरे समक्ष चट्टान  की तरह आ खड़ा हो जाता है और मुझे पराजित कर देता है।सन्1191ई0 में तराइन के युद्ध में पृथ्वीराज  से हारने के बाद गौरी उनसे बहुत बुरी तरह से जला बैठा था।गौरी ने दूसरे ही वर्ष सन्1192 में एक लाख बीस हजार घुड़ सवारों को साथ लेकर पृथ्वीराज पर धावा बोल दिया और दिल्ली के पास थानेस्वर के मैदान में डेरा डाला।पृथ्वीराज  चौहान भी अपनी सेना  के साथ  थानेश्वर के मैदान में पहुंच गये ।पृथ्वीराज चौहान इस प्रकार अपनी सेना को  सम्बोधित  कर रहे थे कि "हे भारत भूमि के वीर योद्धाओ आज तुम्हारी परीक्षा की घड़ी आ गई है।आज वह कायर  एहसान फरामोश विदेशी यवंन गौरी फिर युद्ध के लिए तत्पर है जो हमारी मातृ भूमि पर आधमका है जिसको कई बार दया करके हमने जीवन दान दिया।लेकिन इस बार एक हिन्दुस्तान के  देशद्रोही राजा ने इसको सैनिक सहायता प्रदान की है।इस लिए हे हिन्द के वीरो इस  युद्ध हमें बहुत बहादुरी के साथ लड़ना होगाऔर इस यवनो के सरदार  गौरी को ऐसा सबक सिखाना है क़ि जिससे भविष्य में कोई भी विदेशी यवन हमारी इस  मातृ भूमि  हिन्दुस्तान की पावन पवित्र  धरती को देखने का भी साहस न कर सके"सेनापति ने कहा--आप निश्चिन्त रहें महाराज हमारे हिन्द के वीरों ने केसरिया वाना  पहन रखा है वे मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणो की बाजी लगाने को तैयार है।अंत में  दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ  जिसमें बहुत से राजपूत सरदार केशरिया वाना पहने हुए मातृ  भूमि की रक्षा में शहीद होगये ।काफी यवन भी उन्होंने मारे  किन्तु सेना कम होने से पृथ्वीराज अकेले रह गए काफी वीर सेनिक मारे जाचुके थे।एक स्थान पर पृथ्वीराज लड़ते  -लड़ते यवन सेना के बीच में फंश गए।उनके लिए बाहर निकलना  बहुत कठिन होगया था।वे क्रोध  ,शोक तथा क्षोभ से चेतना खोते जा रहे थे।उसी समय चंदबरदाई के पुत्र ने मुहम्मद गौरी की तरफ इशारा करके कहा--महाराज पृथ्वीराज  गौरी आप के ठीक सामने है।कमान पर तीर चढ़ा कर उसे मार डालो।पृथ्वीराज ने गौरी को देख कर तीर चढाया किन्तु  दुर्भाग्य से उनकी कमान के  दो टुकड़े हो गए।उन्होंने अपने जीवन की आशा छोड़ दी।फिर  अकेले तलवार लेकर यवन  सेना पर टूट पड़े।शाम होते होते हिन्दुस्तान का ये  अंतिम वीर हिन्दू सम्राट् रणभुमि में घायल हो कर गिर पड़ा।फिर क्या  था  यवनों की जीत हुई।उन्हें पकड़ कर बहुत असहनीय यातनाये  दीगयी ।लेकिन उस रनवांकुरे  वीर योद्धा ने यवनों की दासता स्वीकार नहीं की ।यवनों की गंभीर दर्दनाक असहनीय  यातनाओं को सह कर भारत माता के इस रणबांकुरे योद्धा ने अपनी मातृ भूमि की रक्षा में अपने  प्राण गमा दिए ।
 महान इतिहासकार       कर्नल जेम्स टॉड जिन्होंने राजपूताने का गौरवमय इतिहास लिखा है  ने भी इस महान योद्धा की  बहादुरी ,साहस एवं शौर्य की सराहना अपने शब्दों में   इस प्रकार की है कि ----
Prithviraj Chauhan was the flower of Rajput Chivalry.His whole life was one unbroken chain of cnivalrous deeds and glorius exploslt which hare won for him external fame and a name that will last as long as chivalry itself .Although Chauhan had always the snaked high in the list of Chivarty ,yet the seal of the order was stamped  on all who have the name of chauhan since the days of Prithviraj ,the model of every Rajput .
    "पृथ्वीराज चौहान राजपूती शौर्य का पुष्प था ।उसका सम्पूर्ण जीवन शौर्य के कार्यों और शानदार कर्मों की एक अटूट श्रृंखला है जिनसे उसने अमिट ख्याति ,नाम एवं यश अर्जित किया जो कि तब तक कायम रहेंगे जब तक स्वयं शौर्य का अस्तित्व है ।यद्धपि शौर्यवानो का शौर्य की सूची में स्थान ऊँचा होता है फिर भी पृथ्वीराज चौहान ,जो कि प्रत्येक राजपूत के लिए आदर्श है ,के समय से उसके नाम के प्रशंसकों पर उसकी गहरी छाप है ।


लेकिन मुझे बड़े अफ़सोस के साथ लिखना पड रहा है क़ि कल जब मैं अपने कुछ प्राध्यापक मित्रों के साथ  इस महान वीर योद्धा के अजमेर में बने हुए स्मारक को देखने गया तो उस स्थान की कला कृतियों को  देख कर  भाव -विभोर होगया । धन्यवाद एवं आभार व्यक्त करता हूँ माननीय श्री ओंकार सिंह लखावत जी का जिनके अथक प्रयाशों की बजह से अजमेर शहर जो पृथ्वीराज चौहान की जन्मस्थली हैं में इस वीर योद्धा का स्मारक बनवाया। वे उस समय अजमेर शहर के यू0 आई0 टी0 चेरमेन थे ।लेकिन स्मारक जितना विकसित होना चाहिए था उतना आज  तक नहीं  हुआ । हमारे किसी क्षत्रिय /राजपूत संगठनों ने भी इस स्मारक के और अधिक विकास की  पहल व् मांग भी नहीं की और स्वयं अपना कोई योगदान भी नहीं  दिया इससे ऐसा महसूस होता है कि हमारे संगठन मात्र कागजों तक ही सीमित है ।इससे अपने समाज की जागृती का भी आभास होता है  कि लोग मात्र संगठनों में  पदों तक ही सिमित है । भाई लोग अजमेर तो जायेगे अपनी दूसरों से मंगत मागने के लिए परंतु बहुत कम जाते है पृथ्वीराज चौहान का स्मारक देखने के लिए।और तो क्या कहूँ हमारे राजपूत भाई भी नहीं जाते है।हम अपने बच्चों में अपने वंशजो के वीरता से परिपूर्ण इतिहास  के बारे में ही नहीं बताते और नहीं उनको उस स्थान पर घुमानेलेजाते।  तो कैसे आएंगे हमारी भावी पीढ़ी में राजपूती संस्कार जिनके लिए हम जाने जाते है ।आज तक किसी  संगठन ने भी इस वीर भारत के योद्धा के नाम पर किसी दिल्ली की बड़ी संस्था का  नामकरण करने की बात कही। जब कि दिल्ली इतिहास में पृथ्वीराज चौहान के नाम से जानी जाती है ।"दिल्ली का अन्तिम  हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान " । दिल्ली में भी इनका कोई  बड़ा ख्याति प्राप्त स्मारक नहीं है शायद।हमारा राजपूती नेतृत्व भी कहीं न कही कमजोर है ।हमारे लोग केवल बात बहुत  ऊँचे आदर्शों की करते है ।धरातल पर समाज के लिए शायद कोई योगदान नही ।आज बस इतना हीबेदना का दर्द लिखता हूँ।जय हिन्द। जय राजपूताना ।

डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन  गांव  -लढोता , सासनी  जिला -हाथरस  उ0 प्र0

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