Friday, 31 March 2017

हमारे गौरव हिन्द के हिन्दुवा सूरज अदम्य साहसी एवं स्वाभिमानी प्रातःस्मरणीय वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप 
देश के किसी भी कोने में चले जाओ ,या विदेश की धरती पर मेवाड़ का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।राजस्थान राज्य के इस भू -भाग को जिसे मेदपात और बाद में मेवाड़ कहा गया ,सदियों से दोस्तों   ने ही नहीं दुश्मनों ने भी आदर और सम्मान से नवाजा है।
दुनियां के प्राचीनतम राजवंश का गौरव अपने ललाट पर चमकाये रखने वाली मेवाड़ की यह भूमि वीर प्रसूता ,पावन एवं पवित्रं होने के साथ साथ  पूजनीय भी है।इस भूमि और इस पर जन्मे वीरों की महिमा को शब्दों में लिखना किस लेखक के बस की बात है ?इस भूमि का गुणगान कोई कवि या लेखक क्या करेगा ?इस भूमि के राष्ट्र के लिए किये गए त्याग ,बलिदान ,वीरता ,शौर्यतापूर्ण कार्य स्वय  अपने आप में गीतों की माला है।
प्रातः स्मरणीय हिन्दुकुल सूर्य महाराणा प्रताप का नाम लेते ही प्रत्येक हिन्दुस्तानी का मस्तक श्रद्धा से नत होना स्वाभाविक ही है। मेवाड़ के इतिहास को इतना उज्जवल तथा गौरवमय बनाने का श्रेय महाराणा प्रताप को ही है।वे स्वदेशाभिमानी ,स्वतंत्रता के पुजारी ,रण कुशल ,अदम्य साहसी ,दृढ़ प्रतिज्ञ ,कुशल राजनीतिज्ञ तथा उदार ह्रदय के सच्चे वीर योद्धा थे।
मेवाड़ के महाराणा  उदय सिंह जी की सोनगरा (चौहान वंश )रानी जयंति बाई जो पाली के राव अखेराज की पुत्री थी की कोख से 9 मई 1540 को अरावली पहाड़ियों के पश्चिम छोर पर स्थित कुंभलगढ़ दुर्ग में जिस बालक का जन्म हुआ वही आगे चल कर महाराणा प्रताप के नाम से सम्पूर्ण विश्व में सुप्रसिद्ध हुआ।प्रताप के दादा महान योद्धा राणा सांगा थे और दादी महारानी कर्मवती थी।

राजस्थान की वीरों की भूमि मेवाड़ की पावन पवित्र धरती पर जन्मे अपने अदम्य साहस और दृढता से दुश्मन को भी शर्मिन्दा करने बाले वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप को कोटि कोटि नमन करते हुऐ उनकी जन्म की जयन्ती पर अपने लेखन के माध्यम से श्र्द्धा सुमन अर्पित करते हुए सादर नमन करता हूँ।अपने समाज के साथ साथ सभी नई पीढ़ी के युवाओं से विनम्र आग्रह करता हूं कि हम सब आपस में भाई चारे के साथ महाराणा के आदर्शों से सीख लेते हुए अपने आप में सद् भावना और राष्ट्र प्रेम भावना पैदा करे।जब महाराणा प्रताप  28 फरवरी 1572 में मेवाड़ के शासक बनेउस समय मेवाड़ की आर्थिक स्थति बहुत अच्छी नहीं थी। उस समय चित्तौड़ गढ़ सहित मेवाड़ के अनेकों महत्वपूण ठिकानों पर अकबर का अधिकार हो चुका था।मेवाड़ के बड़े -बड़े सरदार युद्धमें काम आ चुके थे।ऐसी विषम परिस्थितियों में महाराणा प्रताप मुट्ठी भर देशभक्त तथा विश्वासपात्र  राजपूतों व् भीलों को साथ लिए मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए कटिबद्ध हो गये।उन्होंने प्रतिज्ञा की थी  "जब तक चित्तौड़ को वापस न लूँ तब तक मैं महलों में नहीं रहूंगा ,बिछौने पर नहीं सोऊंगा तथा सोने के बर्तनों में भोजन नहीं करूँगा।"  उधरदूसरी तरफ अकबर की बढ़ती हुई शक्ति तथा उसकी सत्तावादी नीति का मुकाबला करना।हल्दीघाटी के युद्ध से पहले ही उन्होंने जगह जगह  चौकियाँ बिठा दी तथा गुप्तचरों का जाल बिछा दिया जिससे वे अपने शत्रुओ की हर चाल से अवगत रहे।पुरानी राजपूत युद्ध प्रणाली की भांति  युद्ध में लड़ कर मर मिटने  पर प्रताप विश्वास नहीं करते थे।यही कारण था की उन्होंने किसी युद्ध में मोर्चे पर डट कर मुगलों से मुठभेड़ नहीं की।शत्रु को अपनी छावनी में घेर लेना,भागती सेना का पीछा करना  शत्रु की रसद  सामग्री को रोक लेना आदि पर उन्होंने बल दिया।इस कारन  अकबर की महान् शाक्ति भी उनको परास्त न कर सकी।इन्ही तरीकों से युद्ध कर के उन्होंने मेबाड को अपने अधीन करने का प्रयास किया।अकबर जिस प्रकार का राज्य स्थापित करना चाहता था प्रताप उसमे अपना स्थान सम्मानित नहीं मानते थे।बे अपने राज्य को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में रखकर अपने राज्य की प्रतिष्ठा तथा अपने वंश का गौरव दोनों को बनाये रखना चाहते थे।अकबर सभी प्रकार से जब महाराणा प्रताप से अपनी अधीनता स्वीकार करवाने में असफल रहा तो अंत में 12 जून सन्1576 में युद्ध प्रारम्भ हुआ।हल्दी घाटी के मैदान में जब मेवाड़ के चुने हुए राजपूत सरदार अपने राजा की प्रतीक्षा में खड़े हुए थे सिंह की भाँती राणा ने उनके बीच पदार्पण किया।सहस्त्रों सरदार पृथ्वी में झुक गये।उनकी तलवारें खनखना उठीं और पीठ पर बंधी हुई बड़ी ढालें हिल गयी।सेना ने महाराणा को देखते ही ब्रजधुवनि  से जयघोष किया।राणा ने एक ऊँचे टीले पर खड़े  होकर  अपने सरदारों और सेना को इस प्रकार संम्बोधित किया "मेरे पियारे वीरो ,वंशधरों । आज हम वह कार्य करने जारहे हैजो हमेशा हमारे पूर्वजों ने किया है।हम आज मरेंगे  अथवा विजय प्राप्त करेंगे।" हम केवल युद्ध इस लिए कर रहे है की हमारी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप हो रहा है।क्या यहां पर ऐसा कोई राजपूत है जो पराया गुलाम बना रहना पसंद करे।जो ऐसा हो उसे मेरी तरफ से स्वतंत्र है वह अपने प्राण लेकर यहां से चला जाय।परन्तु जिसने क्षत्राणी का दूध पीया है उसके लिए आज जीवन का सबसे बड़ा गौरव का दिन है।आज उसे अपने जीवन की सवसे  बड़ी साधना पुरी करनी होगी।इसके बाद राणा ने ललकार लगाई और अपनी तलवार उठायी और उच्च स्वर पुकार कर कहा 'वीरो। क्या तुम्हारे पास तलवार है।राणा ने फिर उसी तेजस्वी स्वर में कहा और तुम्हारी कलाईओं में मजबूती से पकड़ने के लिए बल है।
सेना ने फिर जयनाद किया हजारों कंठ चिल्लाकर बोले महाराज हमने केसरिया बाना पहना है हम जीते -जी और मर जाने पर भी अपनी तलवारों को  नहीं छोड़ेंगे ।हममें  यठेस्त बल है।
राणा ने कहा सतेज स्वर में "तब चलो हम अपनी स्वाधीनता के युद्ध में अपने जीवन और अपने नाम को सार्थक करें।एक गगनभेदी वाणी से सारा वातावरण  भर गया।प्रताप उछल कर अपने चेतक पर सवार होगयेऔर मुग़ल सेना को चीरते हुएसेना के बीच आगये।भीषण युद्ध हुआ राजपूत और मुग़ल सेना के बीच।राणा केघोड़े चेतक का एक पैर जख्मी हो गया।तब राजपूत वीरों ने राणा को किसी तरह भीड़ से बचा कर निकाला।
घायल चेतक अधिक दूर नहीं चल पाया।मार्ग में ही वह स्वर्ग चला गया।राणा बहुत दुखी हुए।इस युद्ध को राजपूत और मुगलों ने अपनी अपने जीत माना।हल्दीघाटी के युद्ध के बाद राणा को जंगलों और पहाड़ों में भटकना पड़ा ऐसा कहा जाता है
महाराणा ने अकबर द्वारा किये गए लगातार आक्रमणों का मुकावला बड़े ही धैर्य व् साहस के साथ किया।हल्दी घाटी के युद्ध में राणा ने अकबर को नाको चने चबा दिए थे महाराणा प्रताप का आदर्श वाक्य था "जो द्रण राखे धर्म को ,तिहि राखें करतार "अर्थात जो अपने धर्म के प्रति द्रण रहता है ,ईश्वर सदैव उसकी सहायता करते है ।इसी आदर्श के सहारे महाराणा प्रताप ने धीरे -धीरे मेवाड़ की बहुत सी खोई हुई भूमि को पुनः प्राप्त कर लिया ।केवल चित्तोड़ और माण्डलगढ़ राणा के अधिकार में नहीं आ सके।चित्तौड़ पर अधिकार नहीं कर पाने का दुःख उन्हें अंतिम समय तक रहा।
सन्1585  से1597 का  जो समय राणा को मिला जिसमे उन्होंने अपने राज्य की स्थति सुधारी और19 जनवरी 1597 को चावंड में उनका स्वर्गवास हो गया।कहा जाता है कि महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर स्तब्ध रह गया था व् उसकी आँखों से आंसू भी निकल पड़े थे।उसकी आँखों से आंसू इस लिए नहीं छलके कि उसे कोई  भौतिक दुःख था अथवा दैहिक पीड़ा थी ।वह रोया इस लिए था कि उसने एक जांबाज विरोधी को खो दिया था ,महान देशभक्त संसार से उठ गया था।
ऐसा था महाराणा का व्यक्तित्वव जिन्होंने अपने अदम्य साहस और द्रढता से दुश्मन को भी शर्मिन्दा कर दीया।अकबर की उच्च महत्वाकांछा  शासन निपुणता और अपार साधन भी इस मेवाड़ की पावन पवित्र भूमि पर जन्मे इस वीर शिरोमणी को झुकने पर मजबूर ना कर सके।ये एक ऐसे वीर सपूत थे जिन्हें अपनी धरती माँ पर किसी विदेशी का आधिपत्य स्वीकार नहीं था।वे सम्पूर्ण देश को एक सूत्र में बाधना चाहते थे।उनकी मृत्यूने एक युग की समाप्ती करदी।इस लिए महाराणा का नाम हमारे देश में स्वाभिमान और देश की गौरव रक्षा के रूप में अमर है।स्वंत्रता का महान स्तम्भ होने के नाते तथा वीर  नैतिक  आचरण व् सद्कार्यों  का समर्थक होने के कारण प्रताप का नाम  असंख्य हिन्दुस्तानियों। के लिए प्रेरणा का श्रोत है। महाराणा प्रताप के लिए एक कवि कहता है ---
माईऐहड़ा पूत जण ,जेहड़ा राणा प्रताप ।
अकबर सूतो औझ के ,जांण सिराणें सांप ।।
अर्थात हे माता तुम ऐसे पुत्र को जन्म दो जैसा कि महाराणा प्रताप है जिसको सिरहाने रक्खा सांप जानकर अकबर नींद में भी चौंक पड़ता है।
प्रताप का भारतीय पक्ष ---प्रताप भारत की संप्रभुता और स्वतंत्रता के प्रतीक , भारतीय संस्कृति और प्राचीन भारतीय धरोहर के रक्षक , भारतीय राष्ट्रवाद के प्रतीक थे ।अर्थात प्रताप भारत की आभा ज्योति है ,वह भारत का आत्मा के समान आधार है ।इतिहासकार डा0 श्रीवास्तव के अनुसार --"तत्कालीन भारत के हिन्दू समाज ने पूरे देश में प्रताप का समर्थन किया था जो कि उस समय के संस्कृत और हिंदी के साहित्य में स्पस्ट झलकता है " तबकते अकबरी के लेखक अहमद निजामी ने भी लिखा है कि प्रताप ने भारत के सभी हिन्दू राजाओं को बुलाया था ।प्रताप का संघर्ष पुरे भारत का संघर्ष था ।वे भारत और भारतीयता , भारत की राष्ट्रीयता जिसे उस समय हिंदुवांण कहा जाता था के प्रतीक बन गये थे ।भारत की राष्ट्रीयता का ही नाम हिंदुत्व था और प्रताप को हिन्दुनाथ , राव हिन्दुवा तथा रायां तिलक हिंदवां कह कर प्राचीन राजस्थानी काव्य में संबोधित किया गया है --
हिंदुपति परताप ,पत राखी हिंदुवांण री
सहे विपति संताप , सत्य सपथ कर आपणी
अकबर का पक्ष --अकबर एक विदेशी आक्रमणकारी की बादशाहत का उत्तराधिकारी विदेशी भाषा , सभ्यता , विदेशी मत और संस्कृति का प्रतिनिधि था ।भारत पर उसका शासन भारत की स्वतंत्रता का विलोप और अपमान था ।एक आक्रमणकारी का शासन मानवता , स्वाभिमान , सभ्यता और संस्कृति का अपमान था ।अकबर का शासन भारतीयों की स्वेच्छा पर नहीं वरन् विदेशी जोर  जबरदस्ती पर टिका था ।एक आक्रमणकारी चाहे कितना ही अच्छा बनने की कोशिस करे , उसका शासन अच्छाई के विरुद्ध हमला ही है ।अपने शासन को जनता की स्वीकृति से स्थाई बनाने के लिए वह आक्रमणकारी अच्छाई प्रदर्शित करता है ।अन्यथा जब उसने आरम्भ ही आक्रमण से किया है तो फिर उसे स्वीकृति देना अपने आप में कायरता का अपराध है ।प्रताप ने ये स्वीकृति अकबर कोनहीं दी और इसी कारण अकबर भारत का अपराधी ही रहेगा ।कुछ मुगलकालीन मुग़ल इतिहासकारों ने अकबर को महान् कहा है जो कि सरासर गलत है।  हिन्द के इतिहास में हिन्दुवा सूरज प्रातःकालीन स्मरणीय वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप महान थे ।

जब में अपने परिवार के साथ इस वीर योद्धा की जन्म भुमि मेवाड़ व् हल्दी घाटी को देखने गया तो वहां की इनकी कलाकार्तिओं को देख कर रोना भी आया और कुछ क्षण बाद गौर्वाणित  भी हुआ।पर अफशोस इस बात का है की हमारे भाई बंध ताजमहल तो देखने परिवार सहित जरूर जायेंगे  ,लेकिन बहुत कम जाते है ऐसे वीरों की जन्मभूमि को देखने जहाँ से हम अपनी नई पीढ़ी में कुछ संस्कारों का संचार कर सकें ।जय हिन्द ।जय महाराणा ।जय राजपूताना ।
लेखक -- डा0 धीरेन्द्र सिंह  जादौन,
गांव -लढोता ,  सासनी ,जिला हाथरस , उत्तरप्रदेश 
मिडिया एडवाइजर नार्थ इंडिया
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा
(अध्यक्ष राजा दिग्विजय सिंह जी वांकानेर

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