Saturday, 31 July 2021

अलीगढ़ जनपदीय स्वतंत्रता संग्राम सैनानी स्व0 ठाकुर नबाब सिंह चौहान जी --

अलीगढ़ जनपदीय स्वतंत्रता संग्राम सैनानी  स्व0 श्री नबाबसिंह चौहान जी (कंज) ---

जन्मस्थली -

श्री नबाब सिंह चौहान जी का जन्म अलीगढ़ जनपद में  16 दिसम्बर सन 1909 में  ग्राम -जवाँ बाजीदपुर में  ठाकुर बलवन्त सिंह चौहान जी के गृह में हुआ था।आप बचपन से ही बड़े होनहार एवं प्रतिभावान व्यक्तित्व के धनी थे ।

गुरु शिक्षा से एक कवि  भी बने  --

आप की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई थी।जब आप आठवीं कक्षा में पढ़ा करते थे तब हिंदी के तत्कालीन प्रख्यात कवि श्री गोकुल शर्मा जी आपके गुरु थे।उनकी प्रेरणा से ही आप ने हिन्दी कविताएं भी लिखना प्रारम्भ किया था ।उसके उपरांत आपने धर्म समाज कालेज से शिक्षा प्राप्त की थी। बाद में 'सुकवि ' के संपादक श्री गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही ' तथा अलीगढ़ जनपद के शीर्षस्थ हिन्दी कवि पंडित नाथूराम शर्मा जी 'शंकर 'के संपर्क में आकर आपने अपना उपनाम " कंज " रख लिया था।आप खड़ी बोली तथा ब्रजभाषा दोनों में ही अत्यंत सशक्त रचना किया करते थे ।आगे का अध्ययन धर्म समाज कालेज अलीगढ़ में ही हुआ।

हिन्दी रचनाएं एवं कविताएं --

आपने अपनी रचनाओं में प्राचीन गाथाओं और लोक संस्कृति का भी अच्छा चित्रण किया था।आपकी रचनाओं का एक संकलन " बुझा न दीप प्यार का " नाम से प्रकाशित हो चुका है।इस संकलन में आप की खड़ी बोली और ब्रजभाषा में लिखी गई 76 कविताओं को समाविष्ट किया गया है।
कविता तथा लेख भी पत्रिकाओं तथा रेडियो स्टेशन के लिए लिखते थे ।इससे प्राप्त धन को वह सुरक्षा कोष में उठा देते थे।आकाशवाणी से समय -समय पर आपके बताए , रूपक प्रसारित होते थे।आप के निम्न कविता संग्रह प्रकाशित हुए।
1-सुबहें समान सब हैं महान ।
2-गूँजें गीत किसान के ।
3-बुझा न दीप प्यार का ।
आप का जन्म एक ग्रामीण परिवेश में हुआ और वहां की अनेक समस्याओं का आपको बखूभी अनुभव भी , इस लिए आपने अपनी रचनाओं में वहां के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का ही चित्रण किया था।मूलतः किसान परिवार से होने के कारण आप अपने जीवन की अनेक विषमताओं को सहज ही अनुभव कर लेते थे ।ऐसी ही निकट परिस्थिति का चित्रण आपने अपनी एक रचना में कुछ इस प्रकार किया है --
जब भूख से सुख शरीर गया ,
वसुधा सु-धरा उपजाए तो क्या ।
अरविन्द को मार तुषार गया ,
मुस्कराता हुआ रवि आए तो क्या ।
कुम्हलाय गईं जब पंखुडियाँ ,
घनश्याम पीयूष चुवाये तो क्या ।
जब प्राण कलेवर छोड़ चले ,
तब "कुंज " कहो तुम आए तो क्या ।

एक स्वतंत्रता सैनानी बनने की इच्छा शक्ति का उदय---

आप अलीगढ़ जनपद के कर्मठ ,लोकतांत्रिक एवं गांधीवादी विचार के स्वतंत्रता सैनानी रहे थे।सन 1930 के सितंबर माह में मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए गांधी जी के आव्हान पर राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े फलस्वरूप  इनको धर्म समाज कालेज से निष्कासित कर दिया गया था और अपने जीवन को देश सेवा में अर्पित कर दिया।इनके साथ ही जिन अन्य छात्रों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए अध्ययन छोड़ा उनमें सर्वश्री रामगोपाल आजाद ,गंगासरन और स्वामी त्रिलोकीनाथ का नाम विशेष उल्लेखनीय है जिन्होंने सामाजिक कीर्तिमान स्थापित किये। इसी समय ठाकुर मलखनसिंह , श्री छेदालाल मूढ़ , श्री ठाकुर साहबसिंह , श्री फारुख अहमद के साथ गिरफ्तारियां दीं थी।भविष्य में सत्याग्रह करने के लिए दफा 108 के अंतर्गत जमानत मुचलके मांगे गए लेकिन आप सबने जमानत देना स्वीकार नहीं किया ।चौहान साहब ने लगन के साथ राष्ट्रीय कार्यों में भाग लिया।ठाकुर मलखान सिंह का इन पर वरदहस्त रहा।

जेल यात्राएँ एवं यातनाएं ---

द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने पर कांग्रेस के आदेशानुसार इन्होंने अंग्रेज सरकार की युद्धनीति का धुंआधार विरोध किया।इससे विदेशी शासन इनसे कुपित हो उठा।इनके तथा इनके साथियों के विरुद्ध दफा 108 के वारन्ट जारी हुए।कांग्रेस के आदेश पर भूमिगत न रह कर खुले रूप में प्रचार किया।ये गिरफ्तार किए गये और इन्हें 1 वर्ष का कठोर कारावास का दण्ड दिया गया ।सन 1940 -41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान 20 अप्रैल सन 1941 को फिर नज़रबन्द कर दिया गया। 22 अगस्त सन 1942 की भारत छोड़ो आंदोलन की  क्रान्ति में भी ये नजरबंद रहे।आप विभिन्न आंदोलनों में आगरा ,अलीगढ़ ,बरेली ,उन्नाव ,फैजाबाद तथा प्रतापगढ़ की जेलों में लगभग 3 वर्ष सजा काटी ।

स्वतंत्र भारत में राजनैतिक जीवन--

आप किसान वर्ग के प्रबल हिमायती एवं समर्थक रहे ।आप अखिल भारतीय स्तर की मजदूर उनियन एवं पी0 एन0 टी0 फैडरेशन के अध्यक्ष भी रहे।दो बार जिला परिषद के अध्यक्ष (1948 से 1951 तथा1963 से 1970 , भी रहे।11 वर्ष तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
ये प्रदेश कांग्रेस कमेटी के ही सदस्य रहे।भारत के स्वतंत्र होने पर एम 0 एल0 ए0 , एम0 पी0 और जिला परिषद के सदस्य रह कर कीर्तिमान स्थापित करते रहे।कांग्रेस विभाजन के पश्चात ये संगठन कांग्रेस के सक्रिय नेता रहे।सन 1977 में जनतापार्टी के निर्माण पर और कांग्रेस (स) का इसमें विलय होने पर जनतापार्टी में सम्मलित हो गए।इसी वर्ष के लोकसभा के आम चुनाव में अलीगढ़ जनपद ने जनतापार्टी टिकट पर इन्हें लोकसभा का सदस्य निर्वाचित किया ।इस दौरान संसदीय राजभाषा समिति के संयोजक तथा सुरपंचशती राष्ट्रीय समारोह के महामंत्री थे । विश्व सूर्य सम्मेलन की साहित्य समिति के संयोजक भी रहे । 5 अप्रैल 1981 को ये स्वतंत्रता के अमर पुरोधा इस संसार से विदा हो गये।चौहान साहब बौद्धिक प्रतिभा के अच्छे धनी थे।वे एक अच्छे कवि और विचारक भी थे।ब्रज भाषा में इन्होंने अनेक कविताएं भी लिखी हैं।अलीगढ़ जनपदीय स्वतंत्रता सैनानी समिति के अध्यक्ष भी रहे थे।
मैं ऐसे स्वतंत्रता के अमर पुरोधा को सत-सत नमन करता हूँ।जय हिन्द ।जय राजपूताना।।

लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज

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