Friday, 30 July 2021

अलीगढ़ जनपदीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जिन्दादिली की प्रतिमूर्ति ठाकुर टोडर सिंह --

अलीगढ़ जनपदीय जिन्दादिली की प्रतिमूर्ति विस्मृत स्वतंत्रता संग्राम सैनानी  ठा0 तोडरसिंह  की गौरव गाथा ---

अलीगढ़ जनपद के महात्मा गाँधीयुगीन स्वतंत्रता संग्रामों के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर टोडर सिंह  का जन्म अलीगढ़ जनपद में खैर तहसील के थाना टप्पल के गांव शादीपुर में हुआ था।इनके पिता ठाकुर गंगाप्रसाद  जी थे।युवावस्था में ही बंगभंग (सन 1905 ) के आंदोलन ने इन्हें क्रांतिकारी विचार वाला बना दिया ।गाँधी जी के आवाह्न पर सन 1914 में ये फौज में भर्ती हो गए।साथ ही सैकडों रंगरूटों की भर्ती कराने और युद्ध कोष में हजारों रुपये देने में योगदान किया।फौज में रहते हुए भी इनमें देश -प्रेम की भावना अक्षुण्य बनी रही।पूना रेजीमेंट में फौजी  अधिकारी द्वारा भोजन सामग्री में कटौती का विरोध करने के कारण इनका कोर्ट मार्शल हुआ।तत्कालीन अलीगढ़ के कलक्टर के हस्तक्षेप के कारण इन्हें अलीगढ़ वापिस भेज दिया ।
सन 1915 में इन्होंने फौज से अवकाश ग्रहण किया।इसके उपरांत ठाकुर साहब का सम्पूर्ण जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित जीवन बन गया।तत्कालीन रौलट एक्ट के प्रसंग में पंजाब में देशभक्तों पर होने वाले अत्याचारों एवं जलियांवाला बाग के अमानुषिक हत्याकांड की घटनाओं ने इन्हें विदेशी शासन का पूरी तरह विद्रोही बना दिया।स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कांग्रेस को इन्होंने अपनाया ।महात्मा गाँधी जी इनके आराध्यदेव और मार्गदर्शक बन गए।
सन 1920-21 के असहयोग और खिलाफत आंदोलन में ठाकुर साहब ने सक्रिय भाग लिया।इस संदर्भ में इनकी प्रथम जेल यात्रा हुई ।इन्हें 1 वर्ष कठोर कारावास तथा 3 मास की साधारण सजा मिली।सन 1923 के नागपुर झण्डा सत्याग्रह में भाग लेने के लिए 40 स्वयं सेवकों का जत्था लेकर उस राष्ट्रीय मोर्चे पर पहुंचे।वहां भी उन्हें जेल की यात्रा करनी पड़ी।सन 1925 की कानपुर कॉंग्रेस के अवसर पर अलीगढ़ से 100 स्वयं सेवकों को कानपुर ले जाकर वहां के प्रबंध को सुचारू रूप से चलाने पर पंडित मोतीलाल नेहरू जी व मातास्वरूप  रानी द्वारा ये प्रशंसित हुए।उक्त अवसर पर ठाकुर साहब ने संगठित -शक्ति का अदभुत परिचय दिया था।ठाकुर साहब का निवास स्थान देश की स्वाधीनता पर आत्मोसर्ग करने वाले क्रांतिकारियों का आश्रयदाता बना रहता था।

ठाकुर टोडर सिंह के घर गांव शादीपुर में अमर शहीद सरदार भगतसिंह जी का रहा था निवास----

सन 1927 में फरारी अवस्था में सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी सरदार भगतसिंह जी काफी समय तक बलवन्तसिंह नाम से अलीगढ़ जनपद में रहे थे ।उन्होंने अलीगढ़ जनपद के अग्रिम देशभक्त खैर तहसील के टप्पल क्षेत्र के ठाकुर टोडर सिंह  जी के गांव शादीपुर में प्रश्रय पाया था।ठाकुर साहिब क्रांतिकारियों के आश्रय दाता रहे और उन्हें हर प्रकार की सहायता देते रहते थे।सरदार भगत सिंह जी ने ठाकुर साहब के आश्रय में गुप्त रूप से शेरसिंह और नत्थन सिंह जी के साथ क्रांतिकारी संगठन सम्बन्धी कार्य किया था।
31 जनवरी सन 1929  को कांग्रेस के पूर्ण स्वाधीनता के प्रस्ताव ने अलीगढ़ के देशभक्तों में एक नवीन उत्साह और उमंग उतपन्न कर दिया।वे देश की आजादी के लिए सन्नद्ध हो गए ।सर्वप्रथम जब 26 जनवरी सन 1920 को सारे देश में प्रथम स्वाधीनता दिवस मनाया गया ।अलीगढ़ और जनपद में बड़े उत्साह और राष्ट्रीय जोश के साथ यह दिन मनाया गया।फलस्वरूप नगर और जनपद के अंतगर्त क्रांतिकारियों की ठाकुर साहब हर प्रकार से सहायता करते रहते थे।सन 1930 में नमक सत्याग्रह आरम्भ होने पर इन्होंने गांव -गांव घूमकर लोगों को स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था।विदेशी सरकार ने इन्हें गिरफ्तार किया और सन 1930-31 में कुल मिलाकर 22 माह की कठोर जेल और 100 रुपये जुर्माना का दण्ड दिया गया था।सन 1932 में भी इनको जेल यात्रा हुई।सन 1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में कुल 2 वर्ष की कड़ी कैद का दण्ड दिया गया  ।
ठाकुर साहब का कार्य क्षेत्र बड़ा व्यापक था।सन 1942 की क्रान्ति का अलख जगाने बाहर निकल पड़े।कांतिकारी गतिविधियों के कारण अन्त में ये बुलहंदशहर जनपद में गिरफ्तार कर लिए गए और इन्हें बुलन्दशहर जेल में बन्द कर दिया गया।सन 1942 को "भारत छोड़ो " क्रान्ति में इन्हें अंतिम जेल यात्रा करनी पड़ी।इस प्रकार स्वतंत्रता संग्रामों में सन 1921 से लेकर 1942 तक इनको अनेक बार विदेशी शासकों ने जेल में रखा ।जेल के कष्ट इनको उद्देश्य से डिगा नहीं सके।
सन 1937 में ये विधान परिषद के सदस्य रहे।15 अगस्त 1947 का दिन इनके जीवन का सबसे अधिक स्वर्णिम दिन था क्यों कि इन्होंने अपने जीवनकाल में अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता का सूर्योदय देखा।भारत के स्वतंत्र होने पर ये विधान सभा के सदस्य भी निर्वाचित हुए।तत्कालीन काँग्रेस में विभिन्न पदों को भी सुशोभित करते रहे ।जिले के सर्व प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी शांति अग्रदूत श्री ठाकुर टोडर सिंह जी 90 वर्ष की आयु में 16 दिसम्बर 1972 को प्रातः ब्रह्ममुहूर्त एकादशी के दिन इस संसार से विदा लेकर निर्वाण पद को प्राप्त हुए।उनकी शव यात्रा फूलों से सज्जित कर जेलरोड में चंदनिया श्मशान तक ले जाई गयी।आगे -आगे पुराने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री प्रेमप्रकाश आजाद ,आजादी के तराने गाते हुए ठाकुर साहब के जय घोष के नारे लगाते हुए चल रहे थे।जनपद के लगभग 200 स्वतंत्रता संग्राम सैनानी एवं गणमान्य महानुभाव साथ में थे।
निःसंदेह ठाकुर तोडरसिंह जी गाँधी युग के एक आदर्श मनीषी थे।इनका सम्पूर्ण जीवन गाँधी दर्शन से प्रभावित था।इनका जीवन बड़ा सरल और सात्विक था।त्याग और तपस्या पूर्ण इनका जीवन बड़ा प्रेरणादायक वन गया था।पवित्र आत्मा की झलक इनके व्यक्तित्व में पूर्णतः प्रतिविम्बित होती थी।सत्य और अहिंसा को इन्होंने पूरी तरह अपने जीवन में उतार लिया था ।कर्मयोगी और स्थितिप्रज्ञता का सुन्दर संमन्यवपूर्ण इनका जीवन भावी सन्तति के लिए आदर्श बना रहेगा ।ठाकुर साहब के संयम पूर्ण जीवन का ही परिणाम था कि इन्होंने 90 वर्ष से अधिक आयु व्यतीत की और अन्त में भौतिक शरीर को त्याग कर केवल यश शरीर को यहां छोड़ गए।इतिहास में इनका व्यक्तित्व और कृतित्व सदैव चिरस्थायी एवं स्मरणीय रहेगा।ऐसी पुण्य आत्मा को मैं सत-सत नमन करता हूँ।जय हिन्द ।जय राजपुताना ।।

लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज

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