Friday, 30 July 2021

अलीगढ़ जनपदीय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी अलीगढ़ केशरी ठाकुर मलखान सिंह की गौरवगाथा--

अलीगढ़ जनपदीय देशभक्त स्वतंत्रता के अमर पुरोधा अलीगढ़ केसरी स्व0 ठा0 मलखानसिंह जी की गौरवगाथा ---

वर्तमान सन्तति को इतिहास के माध्यम से जानने के सिवाय क्या पता है कि गांधी युगीन स्वतंत्रता संग्रामों में उनके अलीगढ़ जनपद में एक गौरवर्ण वाला लम्बा चौड़ा मूछों वाला चुम्बकीयव्यक्तित्व वाला एक ठाकुर था जिसने क्षत्रितत्व की मांन मर्यादा को म्रत्यु पर्यन्त निभाया और सदा विदेशियों से काँग्रेस के झंडे को लेकर उनसे जूझता रहा।वह विदेशी शासकों के लिए सदैव भय बना हुआ था।वह क्षत्रिय जो स्वतंत्रता के लिए जीया और मरा कौन था वह था ठाकुर मलखान सिंह ।उस वीर सैनानी ने 4 अगस्त 1889 को  ठाकुर तुलसीराम सिंह जी के गृह में ग्राम हसौना जगमोहनपुर (अकराबाद ) में जन्म लिया।अकराबाद की वह भूमि जो सन 1857 के वीर शहीदों से रक्तरंजित हो चुकी थी और जिसकी कहानियाँ उसने बुजर्गों से सुनी थी , आदि वातावरण का ही प्रभाव था कि युवावस्था से मलखान सिंह में देशभक्ति की भावना ह्रदय को उद्देलित करने लगी। आप की शिक्षा -दीक्षा का शुभारम्भ गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई । आगरा कालेज से एम 0 ए0 राजनीति विज्ञान में  उच्च शिक्षा ग्रहण करने एवं वकालत की परीक्षा करने के उपरांत कुछ दिन वकालत भी की ।इसके बाद सरस्वती विद्यालय हाथरस में प्राचार्य के रूप में कार्य किया।इसके साथ  ही देश की महान संस्था कांग्रेस द्वारा छेड़े गये असहयोग और खिलाफत आंदोलन ने इस वीर युवक की ह्र्दयगत राष्ट्रीय भावना को प्रस्फुटन के लिए अवसर आखिर प्रदान कर दिया।वह स्वतंत्रता संग्राम में कूदने से पूर्व ठाकुर मलखान सिंह कोल्हापुर विश्वविद्यालय (बिहार )  में प्रोफेसर नियुक्त हुए थे। ये बचपन से ही  क्रांतिकारी स्वभाव के थे। गाँधी जी की विचार धारा ने उनमें कूट -कूट कर राष्ट्रीय भावना को पल्लवित और पुष्पित कर दिया था।उन तूफानी दिनों में बड़ी निर्भीकता से ठाकुर मलखान सिंह ने भाग लिया।गांधी जी की पुकार पर अलीगढ़ जनपद के असहयोग आंदोलन के अंर्तगत आंदोलन करने का नेतृत्व ठाकुर साहब ने किया ।आपके नेतृत्व में आंदोलनकारियों ने 5 जुलाई सन 1921 को अंग्रेजी दासता का विरोध करने के लिए एवं ब्रिटिश व्यवस्था को तहस -नहस करने के लिए अलीगढ़ रेलवे स्टेशन फूंक दिया तथा सदर , खैर , हाथरस तहसीलों पर आंदोलनकारियों द्वारा अंग्रेज प्रशासकों को हटाकर अपना कब्जा कर लिया गया और स्वतंत्र सरकार की घोषणा कर दी।इन्हीं के केस के संदर्भ में अलीगढ़-काण्ड हुआ।इस घटना से यह प्रत्यक्ष था कि जनता में बड़े लोकप्रिय नेता बन चुके थे तथा अंग्रेजों के कोपभजन बन गए। ।सन 1921-22 में विदेशी सरकार ने 42 मास की कड़ी कैद तथा 3 माह  तक सोलिटरी कैद में रखा गया था तस्थ 7 कोड़ों की अंतिम सजा दी।सन 1930 के नमक सत्याग्रह में इन्हें 2 वर्ष की कड़ी कैद की सजा दी गयी थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण 18 माह की कैद तथा 100 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई।जेल से छूटने के बाद आप फरार हो गए ।सन 1932 में आगरा में प्रदेशीय राजनैतिक कांफ्रेस करने का निश्चय हुआ।इसके सभापति ठा0 मलखान सिंह चुने गए।इन दिनों ठाकुर साहब फरारी अवस्था में अलीगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम का अलख जगा रहे थे।बड़े गुप्त रूप से इन्हें आगरा लाया गया ।नमक मंडी में  स्थित श्री रायबहादुर बाबू घनश्यामदास रिटायर जज के मकान में ठाकुर मलखान सिंह को भूमिगत रखा गया।पुलिस उनकी तलाश में थी।उसने इनामी वारंट की घोषणा भी कर रखी थी। ठाकुर साहब हजारों  स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जन -सैलाब को संबोधित कर रहे थे ।तोपों की सलामी की गड़गड़ाहट और हजारों लोगों के समूह में 20 जून सन 1932 को ठाकुर साहब को गिरफ्तार कर लिया गया।इन्हें 18 माह का कठोर दण्ड और 100 रुपये जुर्माना का दण्ड दिया गयाऔर फतेहगढ़ जेल भेज दिया गया ।जेल में उन्हें कई तरह की गम्भीर यातनाएं दी गयी।
ठाकुर साहब में एक क्रांतिकारी का जोश था जो स्वतंत्रता संग्रामों में प्रस्फुटित होता रहा।वे देश -विदेश के क्रांतिकारियों से संपर्क रखते हुए देश की आजादी की लड़ाई में जनता को उत्प्रेरित करते रहे।उनमें अपूर्व संगठन शक्ति थी।उनकी ओजपूर्ण  वाणी लोगों को प्रभावित करती थी।सदैव उन्होंने राजनीतिक विरोधियों से भी डट कर टक्कर ली।निःसन्देह वे अलीगढ़ जनपद के एक मात्र अग्रिम नेता थे।
जेल से छूट कर इन्होंने सन 1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में उन्होंने सक्रिय भाग लिया।उन्हें 18 माह का जेल  दण्ड मिला ।सन 1942 की क्रान्ति में उन्हें अपने शौर्य प्रदर्षित करने का अवसर दिया ।भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 24 फरवरी 1942 से 27 अक्टूबर सन 1945 तक इनको नज़रबन्द रखा गया । ये जेल से मुक्त हुए।

अलीगढ़ केशरी की उपाधि से नवाजा गया ---
27 अक्टूबर 1945 के बाद जेल से रिहा होने के बाद उत्तर प्रदेश के आंदोलनकारी क्षत्रियों द्वारा तत्कालीन अलीगढ़ जनपद के गांव बांदनूँ में राष्ट्रीय स्तर का क्षत्रिय सम्मेलन आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता ठाकुर मलखान सिंह जी ने की थी ।मुख्य अथिति के रुप में शेरकोट स्टेट की महारानी फूलकुमारी साहिबा पधारी थी जिनके द्वारा ठाकुर मलखान सिंह जी को हजारों स्वतंत्रता सेनानियों के मध्य "अलीगढ़ केशरी "की उपाधि से विभूषित किया गया।तभी से इन्हें अलीगढ़ केशरी के नाम से पहचाना गया।

ठाकुर मलखान सिंह का जीवन जिन्दादिली का जीवन था ।उनका एक योद्धा का जीवन था।जिला स्तर से प्रांतीय स्तर तक काँग्रेस के पदाधिकारी रहे।अखिल भारतीय कांग्रेस के भी वर्षों सदस्य रहे।वे अपने विचारों में पूर्ण समाजवादी थे ।आचार्य नरेन्द्र देव की सलाह से ही वे काँग्रेस छोड़कर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में सम्मलित हुए थे।जब कांग्रेस ने समाजवादी विचारधारा विचार धारा को अपना लिया तो वे स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री जी के आग्रह पर पुनः अपनी मातृ -संस्था कांग्रेस में आ गए।भारत के स्वतंत्र होने पर वे एक बार अलीगढ़ से तथा दूसरी बार सिकन्दराराउ (हाथरस ) से विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। ठाकुर मलखानसिंह का जीवन निःसन्देह गांधी युगीन एक कर्मठ और कर्मयोगी का जीवन था ।24 जनवरी 19632 को 73 वर्ष की आयु में यह स्वतंत्रता का अमर पुरोधा संसार से विदा हो गया।आज ठाकुर साहब यद्धपि नहीं रहे लेकिन इतिहास में वे सदैव अमर रहेंगे और उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रेरणाश्रोत बना रहेगा। उनके निधन के बाद उनकी स्मृति में अलीगढ़ में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके नाम से मलखान सिंह जिला अस्पताल का निर्माण कराया।उनके नाम से कई संस्थाएं संचालित हैं।मैं ऐसे महान स्वतंत्रता प्रेमी को कोटिशः प्रणाम एवं सत -सत नमन करता हूँ।जय हिन्द।जय राजपूताना ।।

जिन्दगी जिन्दादिली को जान ए रोशन ।
यों तो कितने ही हुए और मरते हैं।।

लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज

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