Friday, 14 April 2017


मुग़ल एवं अंग्रेज कालीन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के  रक्त -रंजित इतिहास में क्षत्राणियों का  भी था अतुलनीय बलिदान ----

भारतीय नारी के समस्त आदर्श यदि एक ही जगह कोई खोजना चाहे तो वे ,एक आदर्श  क्षत्रिय नारी में देखे जासकते है ।क्षत्रिय जाति का इस देश के इतिहास और संस्कृति के निर्माण में जोअनुठा योगदान रहा है उसे कोई नकार नहीं सकता ।धर्म और स्वतंत्रता के लिए हंसते -हंसते अपने प्राणों की बलि देना राजपूतों का प्रमुख कर्तव्य रहा है ।अपनी आन -बान समझी जाती रही है क्षत्रियों की अदभुत शौर्य -गाथाओं ,वीरत्व प्रदर्शन और गौरव गरिमा का मूल आधार क्षत्राणियां रही है ।राजपूत रमणियों को ही क्षत्रिय धर्म (रजपूती)की समुचित पालना का श्रेय जाता है ।क्षत्रियों का शौर्य ,उनकी युद्धप्रियता ,स्वामिभक्ति ,धरती प्रेम ,वचन पालन ,राष्ट्रप्रेम इत्यादि भारत तो क्या पुरे विश्व में अतुलनीय है और इसे अतुलनीय स्वरूप प्रदान करने में जीवन्त शक्ति के रूप में क्षत्राणियां ही सतत प्रेरणा दायिनी रही है ।
 
       हमारे इतिहास में क्षत्रिय वीरों की शौर्य -गाथाओं का वर्णन तो बहुत मिलता है किन्तु उन माताओं का जिन्होंने अपनी आन -बान और शान की रक्षार्थ अपने वीर पुत्रों को दूध की लाज रखने रणांगण में भेजा ,उन अर्धांगणियों को जिन्होंने देश की रक्षा व् धर्म पालन हेतु अपने चूडे की लाज बचाने रणबांकुरे पतियों को युद्ध भूमि में भेजा और वे वीरांगनाएं जो सतीत्व रक्षा के लिए जौहर की आग में जल कर भस्म हो गयी उन शक्ति रूपा सबलाओं के त्याग और शौर्य की गाथाओं का समुचित विवेचन नहीं हुआ जिन्होंने शत्रुदल का सफाया  करने स्वयं हाथ  में खड्ग धारण कर रणचंडी का रूप धारण किया ।आवश्यकता पड़ने पर मोम की तरह नरम दिखने वाली राजपूत नारी सख्त चट्टान की भांति प्रबल से प्रबल झंझावात के सम्मुख समर्थ खड़ी रही ।परन्तु दुर्भाग्यवश पुरुष के वीरत्व गर्जन के आगे नारी की अन्तः प्रवाहिनी शक्ति धारा प्रायः आँखों से ओझल ही रही ।
  क्षत्राणियों की वीरता ,साहस ,त्याग ,दृढ संकल्प ,कष्ट ,सहिष्णुता ,धर्म और पति -परायणता ,शरणागत वत्सलता स्तुत्य रही है ।अपने शील व् स्वाभिमान की रक्षा के लिए वीर माता ,वीर पत्नी और पुत्री के रूप में उसकी जो महत्वपूर्ण भूमिका रही है वह अतुलनीय व् स्मरणीय है ।

पौराणिक ,रामायणकालीन व् महाभारतकालीन क्षत्राणियों के आदर्श तत्कालीन युग के अनुरूप निर्धारित हुए ।मध्यकाल जब आया तो उस काल की मांग के अनुरूप कुछ बदलाब आया ।यो तो हर युगमें क्षत्राणियों में थोडा बहुत बदलाब आता रहा है पर मूलभूत शाश्वत संस्कारों में विशेष अंतर नहीं आया और प्राचीन मान्य आदर्शों से क्षत्राणियां सदा संस्कारित होती रही ।संस्कारित नारी सबल राष्ट्र की सबसे बड़ी पहिचान हुआ करती है ।
भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में मुगलों के शासनकाल व् अंग्रेजों के शासनकाल में भी अगणित क्षत्राणियों  को कई तरह के आत्म बलिदान करने पड़े ।क्षत्राणियां जैसी रूपवती ,शीलवती  और तेजस्वनी होती थीं ,वैसेही अवसर पड़ने पर वे अपने शासन की क्षमता भी दिखाती थी  जिनमें प्रमुख थी रानी दुर्गावती ,रानी कर्णावती ,रानी लक्ष्मीबाई ।ऐसे कई मौके आये ,जब राज्य की वागडोर रानियों को संभालनी पडी और हंसते -हंसते अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति दे डाली ।न्योछावर कर दिया अपने आप को देश व् धर्म की आन ,वान और शान की खातिर ।
 रामायण एवं महाभारत काल में भी देश ,धर्म संस्कृति एवं अस्मिता की रक्षार्थ अनेकों वीरांगनाओं द्वारा आत्मोत्सर्जन किया गया जिनमेंकौशल्या जी ,सुमित्रा जी ,  सीता जी , कैकई जी , उर्मिला , देवकी जी , रोहिणी जी , रुक्मिणी , गान्धारी जी , कुन्ती , माद्री , द्रोपदी ,सुभद्रा ,उत्तरा ,सावित्री ,दमयन्ती प्रमुख रही।
 विदेशी आक्रांताओं (यवनोंऔर मुगलों)के समय में भी अनेक क्षत्राणियों ने जिनमें महारानी रत्नकुमारी ,  रणथम्भोर के राजा हम्मीरदेव चौहान की महारानी , महारानी पद्ध्यमिनी , महारानी कर्णवती ,महारानी मनीमाता ,फूलकंवर,जसवंत दे हाडी ,मीरां ,चारुमती , हाडी रानी ,पन्ना धाय ,ताराबाई ,जीजाबाई ,अहल्याबाई ,इंदुमती ,कर्मदेवी ,कर्मवती ,कमलावती प्रमुख थी
 

राजस्थान के इतिहास की वह घटना है जब एक रानी ने विवाह के सिर्फ 7 दिन वाद ही अपना शीश अपने हाथों से काट कर युद्ध के लिए तैयार अपने पति को भिजवा दी ताकि उनका पति अपनी नई नवेली पत्नी की खूबसूरती में उलझकर अपना कर्तव्य भूल न जाय ।कहते है एक पत्नी द्वारा अपने पति को उसका फर्ज याद दिलाने के लिए किया गया इतिहास में सबसे बड़ा वलिदान है ।यह कोई और नहीं ,बल्कि बूंदी के हाडा शासक की बेटी थी और उदयपुर (मेवाड़)के सलूम्बर ठिकाने के रावत चूडावत की रानी थी इतिहास में हाड़ी रानी के नाम से प्रसिद्ध है।
चूडावत माँगी सैनानी ।
    सिर काट भेज दियो क्षत्राणी।।
 
        सन 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी क्षत्राणियों ने भी अपनी देश रक्षा में आन ,वान और शान के साथ वीरता ,साहस ,युद्ध कौसल ,देशभक्ति , का अनुकरणीय योगदान दिया था।यहां तक कि इस मातृशक्ति ने भी इस ग़दर के समय रणचंडी साक्षात माँ दुर्गा का रूप धारण करके अंग्रेजों से भयंकर युद्ध कियाऔर मातृभूमि की रक्षार्थ अपने प्राणों की भी आहुति देकर अमर गाथा में अपना नाम हमेशा के लिए अमर करगयी लेकिन जीते जी गोरों की दासता को स्वीकार नहीं किया जिनमे मुख्य रूप से झांसी की रानी लक्ष्मी बाई , तुलसीपुर की रानी ईश्वरी कुमारी ,अमोरहा की रानी जगतकंवर ,रानी राजेंद्र कँवर महोबा और बुंदेलखंड की लीडर ,रानी द्रोपदी बाई धार ,रानी तपस्वनी बाई ,महारानी जिन्दा , रानी जैतपुर (बुंदेलखंड), चौहान रानी अनूपनगर , रानी अवंतीबाई ,रानी जिंदल कौर पंजाब ,रानी किंटूर कर्नाटक चेन्नम्मा ,सुभद्राकुमारी चौहान प्रमुख थी ।
 
  अंग्रेजों से रानी लक्ष्मीबाई के द्वारा देश के मान सम्मान के लिए किये गये युद्ध के विषय में सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ये कविता दिल को दहलाने वाली है ।

सिंहासन हिल उठे ,राजवंशों ने भृकुटी तानी थी ,
बूढ़े भारत में भी आई ,फिर से नई जवानी थी ।
गुमी हुई आजादी की कीमत ,सबने पहचानी थी ,
दूर फिरंगी को करने की ,सबने मन में ठानी थी ।
चमक उठी सन् सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी ,
बुंदेले हरबोलों के मुख ,हमने सूनी कहानी थी ।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो ,झांसी वाली रानी थी ।।

    इस कविता ने जिसे अमर कर दिया ,उस कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने केवल वीरोचित गीत ही नहीं लिखे ,स्वतंत्रता -संग्राम में स्वयं भी अपने पति लक्ष्मण सिंह चौहान के साथ भाग लिया ।पति -पत्नी दोनों के देश -कार्य में व्यस्त रहने तथा समय -समय पर जेल जाने के कारण ,उन्होंने अपार आर्थिक -पारवारिक कष्ट भी सहे ।सुभद्रा कुमारी चौहान एक सच्ची देशभक्त ,स्वतंत्रताप्रेमी ,सह्रदय लेखिका और ओजस्वी कवयित्री थी ।
शक्ति और भक्ति की गंगा -यमुना की पावन धारा में क्षत्राणियों ने जो अवगाहन किया वह स्तुत्य ,प्रशंसनीय और अनुकरणीय है ।

राष्ट कवि मैथिलीशरण गुप्तजी ने राजपूताने के चित्तौड़ ,रणथम्भोर ,जैसलमेर ,बयाना तथा अन्य स्थानों पर विदेशी आक्रांताओं के काल में वीरांगना क्षत्राणियों के द्वारा किये गये बलिदान तथा जौहर का इस प्रकार वर्णन किया।गुप्तजी के  अनुसार----

विख्यात है जौहर जगत में,आज भी इस देश में ।
हम मग्न है उन वीरांगनाओं देवीयों के शोक में ।।
क्षत्रिय स्त्रियां निज धर्म पर जलती हुई डरती नहीं ।
ऐसी सर्व सतित्व शिक्षा ,विश्व में मिलती नही ।।
   
 मैं इन सभी क्षत्राणी वीरांगनाओं के बलिदान को सत सत नमन करता हूँ ।जय हिन्द।जय मातृशक्ति ।जय राजपूताना ।

लेखक -डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव -लढोता ,सासनी ,जिला हाथरस ,उत्तरप्रदेश ।
मीडिया सलाहकार नार्थ इंडिया
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा
(राष्ट्रीय अध्यक्ष  माननीय महाराजा दिग्विजय सिंह जी ,वांकानेर)



 

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