Sunday, 9 April 2017


एक ऐतिहासिक परिचय क्षत्रिय महासभा तदर्थनाम अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा स्थापना दिवस ------

A Historical Introducton of Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha Formelly called Kshatriya Mahasabha Founded by Raja Balwant Singh ji Awagarh with Co-ordination of Rajrshi  Raja Udai Pratap Singh  ji Bisen ,Bhinga and Thakur Umrao Singh ji Kotla .
स्थापना --1857 "राम दल ", 1861 "क्षत्रिय हितकारणी महासभा" 19अक्टूबर 1897 ,लखनऊ ,पंजीकरण 180/1530/1897/2150 /86 /661 /96 /75 /01
संक्षिप्त उदभव इतिहास
 1857 के स्वतंत्रता के इतिहास का अहम् योगदान  था क्षत्रिय सभा के निर्माण में  ---
अंग्रेजी शासन काल में ,प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अंग्रेजों द्वारा क्षत्रियों के विरुद्ध अपनाई गई कलुषित नीति के विरुद्ध विदेशी दासता से मुक्ति पाने के लिए एक खुली अघोषित क्रांति थी जिसका प्रमुख केंद्र बिंदु उत्तर भारत था ।शुरुआत में इसके सूत्रपात्र के दो मुख्य श्रोत  "सैनिक क्रांति "और "जन क्रांति "थे ।इसके सूत्रपात्र का जिम्मा शुरुआती दौर में उत्तरप्रदेश ,बिहार ,मध्यप्रदेश ,दिल्ली ,पंजाब (वर्तमान हरियाणा )तथा आँध्रप्रदेश के उत्पीड़ित क्षत्रिय शासकों एवं मुस्लिम नबाबों ने उठाया था ।यह क्षत्रिय -मुस्लिम एकता का अदभुत संगम था ।सयुक्त प्रान्त , आगरा एवं अवध में , अवध की वेगमों ,बनारस के राजा चेत सिंह की फांसी ,रुहेलखण्ड के क्षत्रिय सरदारों के प्रति ईस्ट इंडिया कंपनी की उपेक्षा पूर्ण नीति और दिल्ली के अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफ़र के दो बेटों को दिल्ली में बीच मार्ग पर खड़ा करके गोली मारने की घटना ने आग में घी डालने का काम किया ,साथ ही क्षत्रिय राजाओं को गोद लेने की प्रथा को समाप्त करने की लार्ड डलहौजी की घोषणा ने भी भीषण जनक्रांति को जन्म दिया ।
 परिणामस्वरूप मुग़ल शासक बहादुरशाह जफ़र के झंडे के नेतृत्व में बेगम हजरत महल ,झांसी की रानी लक्ष्मीबाई , बाजीराव पेशवा ,अवध के राजा बेनी माधव सिंह ,उन्नाव के राव रामबक्श सिंह बैस ,बाबू कुंवर वीरसिंह पंवार जगदीशपुर ,दरियाव सिंह खागा ,राजा नरपति सिंह हरदोई ,शिवरतन सिंह हिस्था सेमरी बिहार ,गालब सिंह अलुरी ,सीताराम राजू आंध्र प्रदेश तथा रानी निड़ाल नागालैंड आदि ने क्रांति कर लाखों क्रांतिकारियों के साथ क्रांति की ज्वाला को प्रज्जवलित कर दिया ।
   इसी समय गोंडा के राजा देवी बख्श सिंह बिसेन ,कालाकांकर के राजा हनुमंत सिंह ,प्रताप सिंह ,माधोसिंह ,अवध के राजा बैनी माधव सिंह ,दरियाव सिंह ,बाबूसहलन सिंह ,जोधराज सिंह खीरी आदि राजाओं ने अवध की वेगम हजरत महल के योगदान से कालाकांकर के गंगा पुलिन पर "राम दल "का 16मई 1857ई0 में गठन किया जिसका प्रतीक चिन्ह "श्री राम "के चिन्ह के साथ लाल कमल का फूल था और जिसके प्रचार तंत्र में योगी एवं साधुमहात्मा भी घर- घर जाकर क्रांति का प्रचार -प्रसार कर रहे थे ।अंग्रेजी हुकूमत में अवध के जो सरदार लगान नही देपारहे थे उनकी जमीन जप्त कर लीगयी और उनको उनके अधिकारों से वेदखल कर दिया गया ।इस कठोर नीति ने जनक्रांति को वीभत्स रूप प्रदान किया ।इसी समय अंग्रेजों के द्वारा प्रदत्त बंदूकों की गोलियों से गाय और सूअर की चरबियों के लगाने से हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों में धार्मिक उन्माद ने क्रांति के रूप में जन्म ले लिया ।क्रांति के लिए निर्धारित तिथि 31 मई0 1857ई0 थी पर इसके पूर्व ही 26फरवरी 1857 ई0 को सैनिक छावनी बहरामपुर में विद्रोह हुआ लेकिन उसे दवा दिया गया ।31 मार्च 1857ई0 में मंगल पांडे ने विद्रोह कर दिया और विद्रोह की ज्वाला भड़क गयी ।बैसवाडा क्षेत्र उस समय ब्रिटिश फ़ौज की छावनी थी ,जहाँ 40000 हजारसे अधिक क्षत्रिय सरदार सेना में सैनिक थे ।करीव तीस हजार पेंशन पारहे थे इनको युद्ध का अनुभव था ।वे सभी राजाओं की क्रांति सेना में भर्ती होगये ।नवाब रुहेलखण्ड की सेना में पिचहत्तर हजार  बैस राजपूत सैनिक ,बैस वाड़ा के राजा बेनी माधव की सेना में 35 हजार सैनिक थे  ।बैस वाङा केहर परिवार से हर एक व्यक्ति उनकी सेना का अंग था ।बिहार के कुंवर वीर सिंह की सेना में 65 हजार  विद्रोही सैनिक शामिल थे  ।
 यह एक महान क्रांति का समय था ।अंग्रेज गरीब भारतीयों को धन के लालच से ईसाई बना रहे थे ।इसी समय कुछ क्षत्रिय राजाओं और नवाबों के अत्याचारों से पीड़ित थे वे परोक्ष रूप से अंग्रेजों से मिले रहे ,जिससे उनको सामाजिक उपेक्षा का शिकार तो होना ही पड़ा ,पर इसे क्षत्रियो को लामबन्द करके इस बलि बेदी पर एक सूत्र में बाँधने की आवश्यकता का अनुभव हुआ  ।कालाकांकर प्रतापगढ़ के राजा हनुमंत सिंह के नेतृत्व में गंगा -जमुना क्रांति के प्रवाह में "राम दल "नाम के संघ ने गोपनीय तरीके से क्लब के रूपमें क्षत्रिय महासभा के सूत्रपात्र को जन्म दिया और क्षत्रियों ने "राम दल " को विघटित कर उसके स्थान पर 1860 ई0 में "क्षत्रिय हितकारणी सभा का गठन किया पर यह राजाओं ,राजदरवारियों और उनके सहयोगियों का संगठन आम बन कर रह गया जिसका कार्य क्षेत्र उत्तरप्रदेश (प्रतापगढ़ ,गोरखपुर ,आजमगढ़ ,बलिया ,रायबरेली ,उन्नाव ,आगरा ,मथुरा ,हरदोई ,मैनपुरी ,गोंडा ),मध्यप्रदेश ,राजस्थान ,गुजरात ,बंगाल ,जम्बू कश्मीर ,पंजाब (वर्तमान हरियाणा )तक ही सीमित था जिसके सरपरस्त अंग्रेजों के शुभचिंतक थे इस कारण इससे क्रांति कारियों के परिवारों ने प्रायः दूरी बना कर रखी गई ।कालाकांकर जन्मी क्षत्रिय  हितकारणी सभा  ने कालान्तर में आगरा और अवध के नाम को परिवर्तित कर संयुक्त प्रान्त आगरा और अवध के नाम से पंजीकृत किया ।
   अवागढ़ ,एटा के राजा बलवंत सिंह  के नेतृत्व में तत्काल समिति के प्रतिनिधि ठाकुर उमराव सिंह कोटला , राजर्षि राजा उदयप्रताप सिंह बिसेन ,भिंगा ,राजा खडग बहादुर सिंह ,मझोली ,बिहार ,श्री रामदीन सिंह ,तथा राजा मल्ल एवं अन्य क्षत्रियों ने "क्षत्रिय हितकारणी सभा "को बदल कर इसका पुनः नामकरण "क्षत्रिय महासभा "रखा गया ।
 इसी समय में संयुक्त प्रान्त आगरा और अवध के प्रदेश 19 अक्टूबर 1897 ई0 में भारतीय सोसाइटी अधिनियम के तहत राजधानी लखनऊ (लक्ष्मणपुर )अवध में सभा का पंजीकरण हुआ ।राजा बलवंत सिंह ,अवागढ़ ,एटा को संयुक्त प्रान्त  आगरा एवं अवध को जनक (Founder )के रूप में  अध्यक्ष निर्वाचित कर इसका पंजीकरण  पंजीकृत कार्यालय 224 महात्मा गांधी मार्ग ,लखनऊ कैंट ,उत्तरप्रदेश तथा प्रधान कार्यालय मथुरा ,संयुक्त प्रान्त आगरा एवं अवध में रखा गया ।
  कालान्तर में 09 -11 -1986ई0 में महाराजा लक्ष्मण सिंह डूंगरपुर के अध्यक्ष एवं श्री कोक सिंह भदौरिया ,राष्ट्रीय महामंत्री के समय में "क्षत्रिय महासभा " यह सभा भारत में "अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा "के रूप में सम्बोधित होगी ,के नाम से पुनरावृत्ति की गयी ।

तुम हमको यूँ ही भुला न पाओगे

देश जब अंग्रेजों की गुलामी की जंजीर में जकड़ा हुआ था उस समय आम राजपूत की आर्थिक एवं शैक्षनिक स्थित बहुत ही दयनीय थी । एक तरफ सामाजिक संगठन का आभाव  व् दूसरी तरफ अशिक्षा ने समाज की उन्नति को खोखला कर रखा था । अधिकांश बड़े बड़े राजा व् महाराजा अंग्रेजों के कठपुतली बन चुके थे ।सामाजिक चेतना की जागृति करने का तो किसी ने सोचा भी नही था ।जादातर राजवाड़े अपनी सुख -सुविधाओं को बनाये रखने के लिए ही अंग्रेजों के आधीन थे ।उन्हें समाज के उत्थान से कोई लेना -देना भी नही था । देशके कुछ गिने -चुने छोटे राजाओं और जागीरदारों के मन में यह विचार आया कि क्षत्रिय समाज का कैसे उत्थान सम्भव है क्यों कि परिस्थितियां उस समय बहुत प्रतिकूल थी । कुछ जागीरदार एवं शिक्षित राजपूतो ने विचार कर समाज के शैक्षणिक विकास व् सामाजिक उत्थान के लिए संगठन बनाने का मंथन और चिंतन किया जिसमें राजा बलवंत सिंह अवागढ़ ,राजर्षि राजा उदयप्रताप सिंह बिसेन ,ठाकुर उमराव सिंह ,राजा प्रताप सिंह जी जम्बू कश्मीर ने प्रचार प्रसार करके क्षत्रियों में शिक्षा व् सामाजिक उत्थान के लिए जागृति के लिए अभियान चलाया ।
     ये हमारे लिए बड़े हर्ष एवँ स्वाभिमान का विषय है क़ि ये उन तीनों महापुरुषो के द्वारा बनाया गया क्षत्रियों का संगठन " क्षत्रिय महासभा" तदर्थ नाम "अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा "  आज इतना बड़ा बट वृक्ष का रूप ले चुका है कि देश के सभी प्रान्तों  के जिलों में विद्यमान है और राजपूत हितों के लिए कार्य कर रहा है ।कितनी उच्च कोटि की सोच थी ये राजपूत समाज के  विकास के लिए उन महान व्यकित्व की ।केवल सोच ही नही थी इन तीनो राजपूत राजाओं  ने समाज के सामाजिक विकास के अलावा शैक्षणिक विकास के लियेअपना महान योगदान भी दिया  जिस आज हमारा समाज राजा बलवंत सिंह महाविद्यालय आगराऔर उदयप्रताप कॉलेज वनारस के रूप में  देखते भी है और उसका हमने लाभ भी लिया जिसके लिए हम उनके हमेशा ऋणी भी रहेंगे। अधिकांश देश के पुराने शिक्षित राजपूत इन्हीं दोनों कॉलेज के पढे हुये है  ।इन महाविद्यालयों का राजपूतों के शैक्षणिक विकास में आज भी बहुत बड़ा योगदान है और हर राजपूत विद्यार्थी बड़े गर्व से फक्र महसूस करते हुए कहता है कि मैं बलवंत राजपूत कॉलेज आगरा या राजा बलवंत सिंह कॉलेज आगरा और उदय प्रताप कॉलेज वनारस का शिक्षित व् संस्कारी क्षात्र हूँ ।सौभाग्य से मैं भी आर0 बी0 एस0 कॉलेज आगरा का छात्र रहा । आज हमारे समाज में केवल ये ही सोच है कि "मैं और मेरा परिवार "।
     अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की प्रथम सभा आगरा में ठाकुर उमराव सिंह जी और उनके छोटे भाई नौ निहाल सिंह जी की कोठी "बाघ फरजाना "जिसको बाद में राजपूत बोर्डिंग हाउस का नाम दिया गया उसमें संपन्न हुई थी ।
    20जनवरी 1898को राजा बलवंत सिंह जी और उनके दोनों सहयोगी राजा उदय प्रताप सिंह जी भिंगा और कोटिला के राजा उमराव सिंह ने बनारस के बाबू सांवल सिंह जी की अध्यक्षता में प्रस्ताव पारित करके क्षत्रिय समाज में एकता और जागृती लाने के उदेश्य से एक समाचार पत्र जिसका नाम "राजपूत मासिक "दिया गया प्रकाशित कर वाया गया जिसके माध्यम से देश के विभिन्न भागों में फैले हुए समस्त क्षत्रिय समाज में उनकी सामाजिक ,शैक्षणिक विकास एवं समस्याओं के निराकरण के जनसम्पर्क और नुक्कड़ सभाएं शुरू हुई ।
  इस अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा संगठन का निर्माण करके इन तीनों महापुरुषोंने समाज में एकता लाने के महत्व को समझाया और इसके साथ साथ राजपूत समाज के  शैक्षणिक विकास में अपना सब कुछ न्योछावर करके महान योगदान का परिचय करके भी दिखाया जिसे समाज आज भी प्रत्यक्ष रूप में आगरा और वनारस में देख सकता है जो बहुत बड़े राजा और महाराजाओं ने भी समाज के लिए नही किया ।इन्होंने समाजपीड़ा और परिस्थिती को गंभीरता से समझा और समाज के विकास के लिए सार्थक प्रयास किये ।यही उच्च कोटि की समाज के विकास के प्रति देश के सभी राजा और महाराजाओं की होती तो शायद आज राजपूतों के विकास की तस्वीर ही कुछ और होती ।
   इसके बाद महाराजा प्रताप सिंह जी जम्बू एंड कश्मीर ने लाहौर से "राजपूत गजट"नामक उर्दू समाचार पत्र प्रकाशित किया जिसको ठाकुर शुखराम दास चौहान ने एडिट किया था ।इन समाचार पत्रों के माध्यम से अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने दूसरे क्षत्रिय संगठनो के सहयोग से देश में जिले और तालुका स्तर पर सभाओं की सूचनाओं के द्वारा समाज में एकता और जागृति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।

  Great Contribution of these three Great personalities in Educational Development of Kshatriyas /Rajputs .
  
1--राजा बलवंत सिंह जी अवागढ़ का राजपूतों के शैक्षणिक विकास में महान योगदान ---
       राजा बलवंत सिंह जी अधिक पढे लिखे नही थे ।इस पीड़ा से उनके ह्रदय में राजपूतों के शैक्षणिक विकासकी भावना का दर्द जाग्रत हुआ और इसके लिए उन्होंने साक्षरता के प्रसार की ओर दूरगामी दृष्टि डाली ।सन् 1885स्वर्गीय पंडित मदन मोहन मालवीय जी और कोटिला के राजा उमराव सिंह जी के परामर्श से राजा साहिब ने राजपूत बोर्डिंग हाउस को राजपूत हाई स्कूल में अपग्रेड करवाया जिसके लिए राजा साहिब ने 150000 रूपये ,भवन और 50 एकड़ जमीन दान दी ।जो बाद में 1928 में इंटर मीडिएट कॉलेज में क्रमोन्नत हुआ और जिसका नाम बलवंत राजपूत कॉलेज किया गया ।सन् 1940 में ये डिग्री कॉलेज बनगया जिसके विकास में अवागढ़ राजपरिवार का महत्वपूर्ण योगदान रहा जो आज दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा कॉलेज है जिसके पास लगभग 1000 एकड़ कृषि फ़ार्म है ।राजा साहिब ने स्वर्गीय रवीन्द्रनाथ टैगौर को भी शांतिनिकेतन के निर्माण में आर्थिक मदद की थी ।

Contribution of Raja Udai Pratap Singh Ji of Bhinga in Educational Development of Rajput Community.

     राजा उदय प्रताप सिंह जी भिंगा राजपरिवार का भी राजपूतों के सामाजिक विकास के अतरिक्त शैक्षणिक विकास मेंभी महत्वपूर्ण व् सराहनीय योगदान रहा था ।वे स्वयं भी बहुत शिक्षित थे ।राजपूतों के शैक्षणिक विकास में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा ।उन्होंने वाराणसी में सन् 1909 में हेवेत्त क्षत्रिय हाई स्कूल की स्थापना की जिसके लिए 100000 0रूपये दान दिए जो 1921 में इंटरमीडिएट कॉलेज में अपग्रेड हुआ जो बाद मेंउदय प्रताप इंटरमीडिएट कॉलेज के नाम से जाना गया ।बाद में 1949में डिग्री कॉलेज में अपग्रेड हुआ और जिसका नाम उदय प्रताप  ऑटोनोमस कॉलेज हुआ ।राजा उदय प्रताप सिंह जी ने क्षत्रिय उपकर्णी महासभा की स्थापना की जिसके लिए भींगा राज क्षत्रियों के लिए 35000रूपये दान दिए ।इसके अलावा वे हर साल क्षत्रिय ग्रेजुएट को ऑक्सफ़ोर्ड और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में शिक्षा पाने के लिए11000रूपये क्षात्रवृति के रूप में देते थे ।
   राजा साहिब स्वर्गीय पंडित मदन मोहन मालवीय जी की विचाधारा के अनुयायी थे ।उन्होंने उदय प्रताप कॉलेज के आलावा कई दूसरी संस्थाओं  को आर्थिक सहायता प्रदान की ।राजा साहिब ने वाराणसी के कमच्छा में उर्फन्स होम ,भिनगा राज अनाथालय एस्टेब्लिशद किये जिसके लिए 123000रूपये खर्चे के लिए दान दिए ।उन्होंने लाखों रूपये दूसरे सामाजिक संगठनो को दान दिए जिनमें के0 जी0 मेडिकल कॉलेज लखनऊ ,कैल्विन तालुकुदार कॉलेज लखनऊ ,मूलघंध कुतिविहार ,सारनाथ ,हिंदी प्रचारिणी सभा  सम्लित है ।उन्होंने राजपूत छात्रों के लिए कई छात्रवृति के रूप में फण्ड दिए जिसके लिए वे हमेशा याद किये जाएंगे ।
   
   Contribution of Raja Umrao Singh ji of Kotila Rajpriwar in Rajput Educational Development . 

     ये कोटिला जादौन राजपूतों की बहुत पुरानी रियासत है जो संवत 1225 के लगभग बनी थी।इस रियासत के पूर्वज संवत 1100 में बयाना से माइग्रेट होकर जलेसर आकर बसे थे ।पहले ये रियासत उमारगढ़ कोटिला के नाम से आगरा जिले के अंतर्गत आती थी जो आज फिरोजावाद जिले में है ।
राजपूतों के शैक्षणिक विकास में कोटिला के राजा उमराव सिंह जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा था ।कोटिला राजपरिवार के लोग उस समय शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी थे ।वे शिक्षा की महत्ता को समझते थे ।इस लिए उनकी सोच राजपूतों की शिक्षा के लिए दूरगामी भी थी ।उनकी जयपुर राजपरिवार से भी नजदीकी रिलेशन था ।राजा मान सिंह जी दुतीय जो ईसरदा ठिकाने से जयपुर की गद्दी पर बिराजे थे उनकी ननिहाल कोटिला जादौन राजपरिवार में उमराव सिंह जी के यहाँ थी ।सन् 1878में एक शिक्षण संस्था की स्थापना का प्रयत्न कुछ विचारशील व्यक्तिओं के द्वारा एक काल्पनिक योजना को मूर्तरूप देने का प्रयास किया गया था ।उस समय आगरा ही शिक्षा का इस क्षेत्र में बड़ा विकसित शहर था ।कोटिला के राजा उमराव सिंह जी और उनके छोटे भाई नौ निहाल सिंह जी के निजी निवास स्थान के आउट हाउस में केवल 20 राजपूत छात्रों को रहने व् पढ़ने के लिए एक बोर्डिंग हाउस खोल गया ।उनकी ये कोठी बाग़ फरजाना नाम से आगरा में मशहूर थी ।उसमे एक वार्डन व् एक ट्यूटर भी रखा गया ।इस संस्था को आगे सुचारू रूप से संचालन के लिए दूसरे प्रमुख जादौन राजपूत जमींदारों का भी सहयोग लिया गया जिनमें मुख्य रूप से राजा बलदेव सिंह जी अवागढ़ ,राजा लक्षमण सिंह जी बजीर पूरा जिला आगरा ,ठाकुर लेखराज सिंह जी गभाना रियासत ,अलीगढ ,ठाकुर कल्याण सिंह जी ठिकाना जलालपुर ,अलीगढ थे ।
   इसके बाद समाज के कुछ बुद्धिजीविओं के मन में विचार आया कि इस बोर्डिंग हाउस से काम नही चलने बाला ।सन् 1905 में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का इसी राजपूत बोर्डिंग हाउस में 9वां अधिवेशन हुआ जिसमे आगरा में एक सेंट्रल राजपूत कॉलेज खोलने का प्रस्ताव रखा गया लेकिन किन्ही कारणों से पूर्ण न होसका ।इसके बाद फिर सन् 1910में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का 14 वां अधिवेशन महाराजा जम्बू &कश्मीर  H .H .Major General Sir Prtap Singh ji की अध्यक्षता में हुई जिसमें केंद्रीय राजपूत कॉलेज आगरा में खोलने का प्रस्ताव पुनः पारित किया गया लेकिन इलाहावाद यूनिवर्सिटी ने इस प्रस्ताव को मान्यता देने से इनकार कर दिया ।उस समय आगरा अंग्रेजी शिक्षा के लिए उपर्युक्त शहर था ।इसके बाद अवागढ़ राजपरिवार ने राजपूतों की शिक्षा के लिए सराहनीय योगदान दिया
    इसके बाद शुरू हुआ देश के अन्य राजपूत शासकों के द्वारा अन्य प्रांतों में राजपूतों के लिए राजपूत बोर्डिंग हाउस और स्कूल खोलने प्रचलन जिसमें ईडर के राजा प्रताप सिंह जी ने जोधपुर में चौपान्सी स्कूल खोला ।इसके बाद राजकोट ,अजमेर ,लाहौर ,रायपुर और इंदौर शहरों में राजपूतों की शिक्षा के लिए स्कूल आरम्भ हुये जिससे समाज में शिक्षा का काफी स्तर ऊंचा हुआ ।
    अंत मैं अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की सभी इकाइयों से विनम्र आग्रह करता हूँ कि वे 19 अक्टूबर को हर वर्ष इस संगठन के स्थापना दिवस के रूप में मनायें तो हमारे समाज के युवाओं में जागृति का संचार होगा और इस अवसर पर हम इन तीनो महान पुन्य आत्माओं के समाज के विकास में योगदान को श्र्द्धा सुमन अर्पित करके स्मरण करें । लेकिन मुझे बड़े अफशोस के साथ ये भी लिखना पड़ रहा है कि में आज कल अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभाओं के वैनरो को भी फेसबुक के माध्यम से देख रहा हूँ कि जिस पर संगठन के पदाधिकारी लोग केवल अपने फ़ोटो व् नाम लिखा कर अपना प्रचार  प्रसार कर रहे है कोई सामाजिक जनचेतना किसी भी क्षेत्र में दिखाई नही देरही ।और तो क्या कहूँ संगठन के संस्थापक का फ़ोटो व् नाम भी संगठन के बैनर पर लिखना मुनासिब नही समझते हमारे समाज के बुद्धिजीवी पदाधिकारी लोग ।तो कैसे समझूँ कि ये संगठन इतने बड़े राजपूत समाज को कोई नई सकारात्मक दिशा दे पयेगा जिसमे अपने ही महापुरुषों को याद नहीं किया जाता है ।मैं,आज इस संगठन के 120 वें स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर इन तीनो महान आत्माओं को सत् सत् नमन करता हुआ श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ तथा अपनी आज की इस पोस्ट को इन तीनों महापुरुषों को समर्पित करता हूँ ।जय हिन्द ।जय राजपूताना ।।
1 -राजा बलवंत सिंह जी, अवागढ़ ,जादौन रियासत एटा
2-राजा उदय प्रताप सिंह जी बिसेन भिनगा रियासत
3-राजा उमराव सिंह जी कोटिला जादौन रियासत

   लेखक -डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन ,
   गांव -लाढोता ,सासनी ,जिला -हाथरस ,उत्तरप्रदेश 
   मिडिया एडवाइजर नार्थ इंडिया
   अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा 
   (अध्यक्ष ,महाराजा डा0 दिग्विजय सिंह जी वांकानेर)



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