
(The great personality of Purvanchal in 19th Century who inspired some Royal Families of India to give their Contribution in the field of Educational Development and Social Upliftment of Kshatriyas .
जन्म एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि ----
बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह का जन्म चंदौली जनपद (पूर्व में वाराणसी की एक तहसील )में महाइच परगना के कादिराबाद गांव के गहडवाल क्षत्रिय जमींदार परिवार में ठाकुर रघुराई सिंह जी के यहां हुआ था जो कि एक प्रगतिशील विचारधारा के जमींदार थे ।
शिक्षा -----
बाबू साहिब की प्रारंभिक शिक्षा गहमर (गाजीपुर)में हुई।वहां से मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की ।सन 1876 में सेंट्रल म्योर कालेज इलाहाबाद से स्नातक की उपाधि प्राप्त की ।इसके साथ ही बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह को देश स्तर पर क्षत्रिय वंश में प्रथम स्नातक होने के साथ वाराणसी जनपद का प्रथम स्नातक बनने का महान गौरव प्राप्त हुआ ।अपने प्रथम स्नातक युवक को देखने के लिए जन समुदाय वाराणसी में उमड़ पड़ा ।प्रतिदिन लोगों की बढ़ती भीड़ के कारण तत्कालीन काशी नरेश महाराजा ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह जी ने बाबू साहिब को काशी आमंत्रित कर राजकीय सम्मान प्रदान किया और अपने साथ हाथी पर बैठा कर काशी में घुमाया ।शाही हाथी काशी की सड़कों पर घूम रहा था और जनता गगनभेदी नारों से अपने जनपद के स्नातक युवक का फूलों से स्वागत कर रही थी ।किसी के लिए ऐसा ऐतिहासिक स्वागत गौरव की बात थी ।इस स्वागत ने बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जी को भावुक बना दिया और वे पूर्वांचल में व्याप्त अशिक्षा को दूर कर नवयुवकों को अपने जैसा ही शिक्षित बनाने के लिए एक कालेज की स्थापना का स्वप्न देखने लगे ।
क्षत्रियों के शैक्षणिक विकास एवं सामाजिक उत्थान के लिए उन्मुख ------
कुछ ही समय बाद आप कलकत्ता से कानून की डिग्री लेंकर वापस आये तो पिता जी ने उनको सरकारी अथवा वेतन पर नौकरी न करने की सौगंध दे डाली ।यहीं से बाबू साहिब अपने क्षत्रिय समाज सेवा की ओर उन्मुख हुये ।बाबू साहिब अपने छात्र जीवन से ही पूर्वांचल के क्षत्रियों में व्याप्त अशिक्षा से चिंतित रहते थे ।इस लिए उन्होंने शिक्षा के प्रसार द्वारा सामाजिक सेवा और क्षत्रिय स्वाभिमान के उत्थान को अपना प्रमुख कार्यक्षेत्र चुना ।
देश के कुछ राजपरिवारों से क्षत्रियों के शैक्षिणक विकास एवं सामाजिक उत्थान के लिए किया प्रेरित ----
बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जी ने विभिन्न प्रमुख रियासतों का व्यापक भृमण किया और राजा -महाराजाओं को शिक्षा प्रसार के लिए प्रेरित करते रहे ।अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आपने विभिन्न रियासतों मुख्यतः ग्वालियर ,अवागढ़ ,कुरीसुडौली ,भिनगा ,विजयपुर ,मांडा ,तिलोई ,और मझौली आदि रियासतों के सलाहकार के रूप में कार्य किया
और कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना कराई ।राजाओं द्वारा इस दिशा में पूर्ण सहयोग न मिलने के कारण बहुत निराश हुये फिर भी समाज उत्थान में लगे रहे ।
The Man with a Mission-----
अपने मिशन के प्रति समिर्पित बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जी ने क्षत्रिय सामाजिक संगठन का सहारा लिया क्षात्र -धर्म के संरक्षण ,सुरक्षा और अपने स्वप्नों की शिक्षा संस्था के स्थापनार्थ संसाधन के एकत्रीकरण हेतु एक मंच प्राप्त करने की दृष्टि से उन्होंने ठा0 छेदा सिंह जी और बाबू सांवल सिंह जी वनारस के सहयोग से मृतावस्था में पडी क्षत्रिय हितकारिणी सभा को पुर्नजीवित किया ।
क्षत्रिय महासभा के गठन में योगदान ----
बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जी के इस पुण्य कार्य में कुछ महानुभावों ने ,जिनमें पूर्वी क्षेत्र से राजा खड्ग बहादुर मल्ल मझौली , राजर्षि राजा उदयप्रताप सिंह जी बिसेन भिनगाऔर ठा0 रामदीन सिंह जी बांकीपुर तथा पश्चिमी क्षेत्र से राजा बलबंत सिंह जी अवागढ़ ,ठा0 उमराव सिंह जी और उनके छोटे भाई कुंवर नौनिहाल सिंह जी कोटला-जाटउ ने तन ,मन और धन से सहयोग प्रदान किया ।आप लोगों ने निश्चय किया कि देश के समस्त क्षत्रियों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक सभा संगठित की जाय ।19 अक्टूबर 1897 को क्षत्रिय महासभा का गठन किया गया जिसमें राजा बलबंत सिंह जी अवागढ़ को संस्थापक एवं प्रथम अध्यक्ष बनाया गया ।19-20 जनवरी 1898 को बनारस केबाबू सांवल सिंह जी की सभापतित्व में क्षत्रिय महासभा का प्रथम अधिवेशन आगरा में ठाकुर उमराव सिंह और उनकेछोटे भाई की कोठी "बाघ फरजाना "जो बाद में राजपूत बोर्डिंग हाउस के नाम से जानी गयी उसमे सम्पन्न हुई ।इस अधिवेशन में पूरब -पश्चिम से 300 से अधिक प्रतिष्ठित क्षत्रियों ने भाग लिया जिसमे देशकेकोने -कोने में क्षत्रिय सभाओं की स्थापना तथा क्षत्रियों में शिक्षा काप्रसार करने का प्रस्ताव स्वीकृत हुये ।
बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह के मिलन से राजर्षि में उत्पन्न हुई थी क्षत्रियों के उत्थान की बृहद चेतना ------
राजर्षि को क्षत्रियों के सामाजिक एवं शैक्षणिक उत्थान के लिए प्रोत्साहित करने में वनारस के बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह के योगदान को भी नजरन्दाज नही किया जा सकता है ।उन्ही के निरंतर आग्रह और प्रयास से भिंगा नरेश मार्च 19o3 के क्षत्रिय महासभा के 7 वें अधिवेशन में अजमेर पधारे ।ये अधिवेशन बीकानेर नरेश महाराजा बहादुर सर गंगा सिंह जी के सभापतित्व में अजमेर में हुआ था ।राजर्षि अजमेर में महासभा के शिक्षा सम्बन्धी उद्देश्यों तथा बाबू साहिब के शिक्षा सम्बन्धी योजनाओं से अत्यधिक प्रभावित हुये तथा उन्होंने हर सम्भव सहयोग का आस्वासन दिया ।तभी राजर्षि ने अपने व्यय से काशी में महासभा का अधिवेशन कराने का निश्चय भी किया।दिसम्बर 1905 में क्षत्रिय महासभा का 9वां अधिवेशन काशी में कौशल किशोर मल्ल ,मझौली नरेश के सभापतित्व तथा बाबू प्रसिद्ध नारायण के कुशल प्रबंधन से बड़ी शान से सम्पन्न हुआ ।इसी अधिवेसन से राजर्षि और बाबू साहब की निकटता घनिष्ठता में बदली और भिंगा नरेश राजर्षि उनको समाज सेवा के क्षेत्र में अपना सलाहकार मानने लगे । बाबू प्रसिद्ध नारायण जी को ही श्रेय जाता है कि कुरीसुडौली के नरेश माननीय सर राजा रामपाल सिंह जी भिनगा नरेश उदय प्रताप सिंह जी बिसेन के साथ मिल कर समाज सेवा की ओर उन्मुख हुये ।इन दो क्षत्रिय महान नेताओं का मिलान समाज के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी ।बाबू साहिब ने क्षत्रिय महासभा की स्थापना तथा विकास में केंद्रीय भूमिका का निर्वाह किया परन्तु कभी कोई पद स्वीकार नहीं किया ।वे संस्था के पदाधिकारी न बन कर बाहर से अधिक कार्य करते रहे ।उन्होंने अवध और आगरा के रईसों में क्षत्रिय महासभा का व्यापक प्रचार और प्रसार किया ।मध्यप्रदेश और बिहार में भी क्षत्रिय सभाएं उनके प्रयासों से सक्रीय हुई ।क्षत्रिय महासभा का 11वां अधिवेशन 29,30 और 31 दिसंबर 1907 को लखनऊ में हुआ ।उसके सभापति राजा प्रताप बहादुर सिंह जी ,प्रतापगढ़ -अवध थे ।औपचारिकताओं के पूर्ण होने के बाद बाबू प्रसिद्ध नारायण जी ने "कॉलेज योजना "पर विचार -विमर्श का प्रस्ताव रखा ।अब तक संगठन के "शिक्षा फण्ड" में पर्याप्त धन जमा होचुका था ।सभी सदस्य उत्सुक थे कि कॉलेज स्थापना का कार्य अब प्रारम्भ कर देना चाहिए ।इस बात पर विचार होने लगा कि सेंट्रल क्षत्रिय कालेज कहाँ स्थापित किया जाय ?अभाग्यवश सदस्यों में इस बात पर मतभेद हो गया ।पूर्व और पश्चिम का प्रश्न उठा खड़ा हुआ ।पश्चिम के लोगों ने आगरा में सेंट्रल क्षत्रिय कालेज स्थापित करने पर जोर दिया और पूरब क्र लोग लखनऊ में चाहते थे ।बहुत वाद -विवाद के बाद भी ये पूरब और पश्चिम का मतभेद दूर नहीं हुआ ।कुलमिलाकर बाबू प्रसिद्ध नारायण जी की कालेज योजना मटियामेट हो गई ।इससे उनकोबड़ा आघात लगा ।लेकिन बाबू साहिब ने हार नहीं मानी कालेज स्थापना उनका समाज के विकास के लिए मुख्य ध्येय बन चूका था ।उन्होंने भिनगा नरेश को एक क्षत्रिय कालेज की स्थापना हेतु निरंतर प्रेरित करते रहते थे ।भिनगा नरेश के मन में भी विचार मंथन होनेलगा ।
पंडित मदनमोहन मालवीय जी के विचार से नही थे बाबू साहिब सहमत-----
उधर पंडित मदन मोहन मालवीय जी 1905 से ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए सभी राजपरिवारों से सहयोग राशि की याचना कर रहे थे तो उनकी निगाह भिंगा नरेश राजर्षि के संसाधनों पर भी थी।इसी निमित्त मालवीय जी ने एक बैठक कमच्छा में आयोजित की जिसमें काशी के गणमान्य नागरिक ,बुद्धिजीवी और शिक्षाविदों आमंत्रित किया ।इस बैठक में राजर्षि उदयप्रताप जी को भी विशिष्ट अथिति के रूप में आमंत्रित किया गया था।जब बाबू प्रसिद्ध नारायण जी को इस योजना की जानकारी हुई तो उन्होंने योजनावद्ध तरीके से राजर्षि को बैठक में जाने से रोका और उनका प्रतिनिधित्व स्वयं किया ।बैठक के दौरान मालवीय जी ने प्रसिद्धनारायण जी को संम्बोधित करते हुए कहा "बाबू साहब आप राजा साहब *राजर्षि"को समझाओ कि जब वनारस में काशी विश्वविद्यालय खुल ही रहा हैतो अलग से राजपूत कॉलेज खोलने का कोई औचित्य नहीं है ।वे उसी में अपना महान योगदान दें।जवाव में मालवीय जी से राजर्षि पर दबाव न डालने का आग्रह करते हुए बाबू साहब ने कहा ,"पंडित जी आप का उद्देश्य गंगा को स्वच्छ करना है ,मैं नाले को स्वच्छ करना चाहता हूँ ।यदि मैं अपने उद्देश्य में असफल रहा तो आप की गंगा भी स्वच्छ नहीं हो पाएगी और बैठक से विदा हो लिए ।दूसरे दिन ठा0 काली प्रसाद सिंह जी ने इस घटना से राजर्षि को अवगत कराया ।राजर्षि ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि "प्रसिद्धि बाबू ने अच्छा किया वरना मालवीय अन्त तक घेरते "।
राजर्षि को पुत्र के देहान्त से हुई थी घोर निराशा------
राजर्षि के पुत्र महेंद्र विक्रम सिंह जी का चेचक से निधन होगया ।पहले से ही वैराग्य मय जीवन व्यतीत कर रहे राजर्षि महा निराशा में डूब गये ।जब यह सूचना और राजर्षि की स्थिति की जानकारी बाबू प्रसिद्धिनारायन सिंह को हुई तो उन्होंने बाबू चन्द्रिका प्रसाद सिंह जी (शिवपुर दीयर ,बलिया )और ठा0 काली प्रसाद सिंह के साथ शोक संवेदना व्यक्त करने पहुचे ।बाबु साहिब ने ही पहल करते हुऐ कहा --"महाराज पुत्र -वियोग जैसा दुःख इस धरा पर दूसरा कोई नहीं ।कितना ही बड़ा सार्थक प्रयास क्यों न हो उस स्थान की पूर्ति सम्भव नहीं ।फिर भी ज्यादा शोकाकुल होना आप जैसे महापुरुष की गरिमा के अनुकूल नहीं ।आप तो वह कार्य करने में सक्षम हैं जिससे एक क्या हजारों पुत्र पैदा हो सकते है ,जो देश और जाति की सेवा कर सदियों तक आपके नाम को अमर कर सकते है ।"राजर्षि में जैसे चेतना लौट आयी ,उनमें सोया हुआ महापुरुष जाग उठा ,उन्होंने महारानी साहिबा को बुला कर बाबू प्रसिद्ध नारायण के शब्दों को अक्षरशः दोहराया,"अब में बही कार्य करूँगा जिससे मेरे एक नहीं हजारों पुत्र पैदा हों ,जो देश और क्षत्रिय जाति की सेवा करें ।"
हिवेट क्षत्रिय हाई स्कूल की स्थापना----
सन 1908 में राजर्षि ने साढे दस लाख रूपये का अमर दान देकर काशी में एक विद्यालय खोलने का संकल्प लिया ।स्थान के चयन और विद्यालय के स्थापना की जिम्मेदारी बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह ने सम्हाली ।राजर्षि की इच्छा थी कि विद्यालय शहर से दूर हो ।तदनुसार वरूणा पार काशी के पश्चिमोत्तर सीमा पर कुर्ग स्टेट (कर्नाटक)की 50 एकड़ के भू -खण्ड का चुनाव कियागया ।इसके लिए राजर्षि ने संयुक्तप्रान्त के गवर्नर सर जान हिवेट को पत्र लिखा ।बाबू साहिब ने भी जान हिवेट से अपनी मित्रता का उपयोग कियाऔर उस भू -खण्ड को सांकेतिक मूल्य पर "क्षत्रिया खैरात सोसाइटी "के पक्ष में अधिग्रहीत कराया।बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह की देख -रेख में 25 नवम्बर 1909 को तत्कालीन गवर्नर सर जान हिवेट ने विद्यालय का शिलान्यास किया ।बाबू साहिब ने नींव पूजन का संकल्प लिया ।सात नदियों के जल से भूमि का शोधन किया गया ।गर्वरनर के नाम पर विद्यालय का नाम "हिवेट क्षत्रिय हाई स्कूल "पड़ा ।बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जी को प्रबंध सिमित का अध्यक्ष बनाया गया ।
बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जी चाहते थे वाराणसी में सेंट्रल क्षत्रिय कॉलेज स्थापित करना ----
अपनी इस आकांक्षा की पूर्ति हेतु बाबु साहिब 1917 में "क्षत्रिय उपकारिणी महासभा कालेज -बनारस का प्रस्ताव लेकर एक बार पुनः कर्मभूमि में उतर पड़े ।प्रस्तावित कॉलेज की स्थापना और संचालन केलिए क्षत्रिय उपकारिणी महासभा की प्रतिनिधि सभा द्वारा निर्वाचित 25 सदस्यों से एक प्रोविजनल बोर्ड ऑफ ट्रास्ट्रीज का गठन किया गया ।इस ट्रस्ट के सचिव कुरीसुडौली के राजा सर रामपाल सिंह जी तथा अध्यक्ष जम्बू और कश्मीर के महाराजा प्रताप सिंह जी थे ।परंतु बाबु साहिब का ये पवित्र प्रयास भी पुनः असफल रहा ।अब तो भिनगा नरेश और अवगढ़नारेश का भी साथ और संरक्षण भी नही था ।इस योजना हेतु 6 लाख रुपया एकत्र किया गया था ।योजना के असफल होने पर इस धन का उपयोग कुछ मेघावी क्षत्रिय विद्यार्थियों को अध्ययन हेतु छात्रवर्ती देने /विदेश भेजने में किया ।ऐसे विद्यार्थीयों में डा0 रामकरन सिंह जी ,भूतपूर्व प्राचार्य राजा बलवंत सिंह कॉलेज आगरा प्रमुख थे ।
इसके अलावा बाबु प्रसिद्ध नारायण सिंह जी 29 दिसंबर 1925 को बनारस डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के प्रथम निर्वाचित चेयरमैन हुए ।आप के कुशल नेतृत्व में बोर्ड का जो जन कल्याणकारी स्वरूप उभर कर सामने आया उसकी भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड इर्विन ने भी सराहना की थी ।
गांधी जी द्वारा प्रेरित सभी आंदोलनों को बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंघजी ने पूर्वांचल में अत्यंत सफलता से संचालित किया ।आप उन विरले जमींदारों में से थे जो स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थे ।
मैं ऐसे महान सामाजिक ,देशभक्त और उच्च विचारक व्यक्तित्व को सादर सत सत नमन करता हूँ ।आशा करता हूँ कि हमारे समाज के बुद्धिजीवी महानुभाव और भामाशाह उनके जीवन परिचय से अनुग्रहित होकर कुछ समाज सेवा में योगदान देने की अवश्य शिक्षा लेगें ।
लेखक आभारी है बड़े भाई साहिब प्रोफेसर विनोद कुमार सिंह जी ,कृषि अर्थशास्त्र विभाग ,उदय प्रताप ऑटोनोमस कॉलेज वनारस ,जिनकी मदद एवं प्रोत्साहन से मैने इस महान व्यक्तित्व का समाज के शैक्षिक उन्नयन में योगदान का वर्णन किया ।मैं पुनः उनका ससम्मान आभार व् धन्यवाद व्यक्त करता हूँ वे मुझे हमेशा प्रोत्साहित एवं मार्गदर्शन देते रहते है ।जयहिंद ।जय राजपुताना ।।
लेखक --डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव -लढोता ,सासनी ,जिला हाथरस उत्तरप्रदेश ।
मिडिया एडवाइजर नार्थ इंडिया
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा
(अध्यक्ष ,।महाराजा दिग्विजय सिंह जी वांकानेर)
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