Friday, 7 April 2017

बाह ये कैसी वीरांगना क्षत्राणी।हे हिन्द के हिंदुस्तानी।।ऐसी नहीं देखी कुर्वानी।।चुण्डावत मांगी सैनानी।सिर काट भेज दिया क्षत्राणी।।
        मेवाड़ के राणा राज सिंह की ओर से औरंगजेब की सेना से टक्कर लेने के लिए बीड़ा उठाया सलुम्बर के रावत रतन सिंह चूड़ावत ने जो युवा होने के साथ ही वीर साहसी लड़ाकू और युद्ध कौशल में पारंगत होने के साथ ही बलिष्ठ और द्रण निश्चस्यी युवक था।तभी रतन सिंह की बूंदी के हाड़ा राजपूत घराने से शादी हुई थी।एक ओर युद्ध का बिगुल बज रहा था और दूसरी ओर युवा एवम सुन्दर रानी का चेहरा चूड़ावत सरदार के मन मंदिर में खलबली मचाये हुए था।उनकी शादी को कुछ ही दिन हुए थे,कुछ माह भी नही बीते थे ,रानी के हाथों की मेंहदी भी नही सुखी थी और चूड़ावत को मातृभूमि ने याद कर लिया था ,हे ईश्वर ये कैसी परीक्षा कीघड़ी एक ओर जीवन का सुख -सागर हिलौरे ले रहा था दूसरी ओर मौत का आलिंगन निमंत्रण दे रहा था क्या करे और क्या न करे निरयण करना मुश्किल था।आखिर जीत राजपूती संस्कारों की ही हुई और चूड़ावत सरदार युद्ध में जाने को तैयार हुआ सेना सजी और कूच का आदेश हुआ।राजपूती परम्परा के अनुसार हाड़ी रानी ने माथे पर विजयी तिलक लगा कर विदा किया और खुद सेना को जाते देखने के लिए महल के गोखडे में बैठ गई। चूड़ावत का मन कुछ बिचलित था।रानी ने दूत भेज कर पुछबाया क़ि "युद्ध में जाने के समय यह हिचकिचाहट कैसी है " सरदार ने दूत से कहा क़ि रानी से कहना क़ि उनको प्रेम निशानी चाहिए तो रानी समझ गई क़ि "चूड़ावत का मन डगमगा रहा है और इस स्थित में ये युद्ध भूमि में गए तो इनकी वीरता,और साहसशायद साथ न दे और कोई अनहोनी भी हो सकती है ।राजकुमार का मन रानी के रूप सौंदर्य और प्रेम में उलझ गया है।क्षत्राणी ने कुछ पल सोचा और एक ऐसा अदभुत निर्णय लिया जो आज से पूर्व इतिहास में न तो किसी ने लिया था और न उसके बाद भी ऐसी मिसाल आज तक कायम हो सकी ।अपनी दासी को भेज कर एक थाल मगाया उसे सब कुछ समझाया और तलवार के एक वार से अपना सिर काटकर अलग कर दिया।दासी ने उसेकहे अनुसार खुले बाल का कटा सिर थाल में सजाकर चूड़ावत सरदार के सामने उपस्थित हो गई सरदार प्रेम निशानी को देख कर विस्मय और आश्चर्य में रह गया।इससे चुण्डावत के मन में तांडव का भूचाल उमड़ आया ,बड़े प्यार और आदर से उस रक्त रंजित कटे सिर को उठाया और खुले बालों वाले उस सिर को अपने गले में लटका लिया जोरदार हुंकार भरी और घोड़े को ऐडलगायी और उग्र रूप धारण करके चुण्डावत की उस सेना ने युद्ध भूमि में पहुँचने से पहले पीछे मुड़कर नही देखा।पूर्व योजना के अनुसार इस सेना ने औरंगजेव की सेना को रोके रखा और उधर महाराणा राज सिंह किशनगढ़ की राजकुमारी को ब्याह कर मेवाड़ पहुँच गये ।चुण्डावत सरदारने मुग़ल सेना में ऐसी तबाही मचायी क़ि कई मुग़ल सैनिक उनकारौद्र रूप देख कर आश्चर्य चकित रह गये।रानी के बलिदान केबाद तो सरदार को सर्वस्व बलिदान करना ही था और वैसा ही हुआ सलूम्बर के इस वीर युवा योद्धा ने युद्ध में वीरगति पाई।कहते है क़ि एक पत्नी के दुआरा अपने पति को उसका फर्जयाद दिलाने के लिए किया गया ,इतिहास में सबसे बड़ा बलिदान है।यह रानी कोई और नही थी,बल्कि बूंदी के हाड़ा शासक की बेटी और उदयपुर(मेवाड़ )के सलुमवर ठिकाने के रावत चूड़ावत की रानी थी जो इतिहास में यह हाड़ी रानी के नाम से प्रसिद्ध है।मैं दोनों के बलिदान को सत् सत् नमन करता हूँ।जब तक धरती रहेगी ,इतिहास पढ़आ जायगा तब -तब हाड़ी रानीका बलिदान अवश्य याद किया जायगा।धन्य है क्षत्रिय बाला ,धन्य है क्षत्रिय जाति ,धन्य है उनका कर्तव्य पथ और धन्य है उनका मातृ भूमि के प्रति प्रेम और आदर।जय हिन्द।जय राजपुताना।डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन गांव लरहोता सासनी जिला हाथरसउत्तरप्रदेश।

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