Monday, 9 May 2022

अलीगढ़ जनपद के स्वतंत्रता सेनानी यदुवंशी जनकवि ठाकुर खेमसिंह "नागर " नगला पदम् की गौरवगाथा---

अलीगढ़ जनपदीय  स्वतंत्रता की क्रांति के एक महानायक जनकवि  ठाकुर खेमसिंह "नागर " नगला पदम् की गौरवशाली जीवन गाथा ----

खेमसिंह नागर सर्वतो मुखी प्रतिभा के धनी जन कवि थे।जन साहित्य और कला के क्षेत्र में ही नहीं , जीवन और जगत के प्रायः सभी क्षेत्रों में इन्होंने मानवता के लिए अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है।इनका व्यक्तित्व  प्रभाव शाली था।नागर जी विकास और प्रगति के दृढ़ अंकुर थे ।जीवन के प्रत्येक क्षण में नागर जी क्रियाशील एवं प्रगतिशील रहे थे ।देश के विभिन्न जिलों में इन्होंने देहातों में जाकर स्वरचित देशभक्ति से ओतप्रोत लोकगीत गाये।देहातों में नागर जी ने स्वतंत्रता की क्रांति का स्वर किसानों ,गरीवों एवं मज़दूरों तक में भी फूंक दिया।नागर जी के गीतों का नेताओं की सभाओं और भाषणों की अपेक्षा अधिक प्रभाव पड़ रहा था।नागर जी के गीत लोकगीतों के क्षेत्र में अभूतपूर्व थे।श्रीकृष्ण एवं राधिका जी के जीवन से सम्बंधित गीत लिखे।इन्होंने इन गीतों के भाव और स्वरूप को परिवर्तित किया उनको नया रूप ,नई वाणी दी तथा नई वाणी में नव जाग्रति का संदेश जन -जन तक पहुंचाया।
अलीगढ़ के स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर टोडर सिंह जैसे मित्रों के सानिध्य में रह कर नागर जी की सरदार भगतसिंह जी जैसे महान क्रांतिकारियों से  भी भेंट हुई ।उनकी राष्ट्रवाद की क्रान्तिकारी विचारधाराओं का नागर जी ह्रदय पर गहरा प्रभाव पड़ा और स्वतंत्रता के लिए जन-आंदोलनों में भाग लेने लगे तथा देशभक्ति का लोगों में जज्बा पैदा करने के लिए अपनी देशभक्ति की गोरों के खिलाफ कविता लिखने लगे।
नागर जी प्रयास करने पर भी बहुत अधिक पढ़ नहीं पाए किन्तु राजनैतिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्रों में इन्होंने विशेष उपलब्धियां प्राप्त की।अपने पिता के साथ नागर जी बहुधा ऐसे ही निर्भीकतापूर्वक ज्ञान -चर्चा किया करते थे ।इन आध्यात्मिक संस्पर्श ने ही इन्हें दीन-दुखियों के प्रति स्नेह और सहानभूति से भर दिया जिसका वर्णन इन्होंने अपनी कविताओं में भी खूब किया था।
नागर जी बहुत अच्छे मण्डली गायक भी थे।आप ने एक गायक-मण्डली का भी गठन किया था।किसान आन्दोलन के सम्बन्ध में तथा आस-पास के जन आंदोलनों में अलीगढ़ के खेमसिंह" नागर" ,पंडित छेदालाल" मूढ़ " , किशनलाल भारद्वाज तथा साहबसिंह मेहरा जैसे लोक कवियों और गायकों  ने ब्रज क्षेत्र के लोगों में अपने ब्रजभाषा के सामूहिक लोकगीतों द्वारा क्षेत्रीय जनता एवं श्रोताओं के ह्रदय में आजादी का अलख जगाया। ये कवि होने के  साथ -साथ जिला किसान सभा के नेता और कार्यकर्ता भी थे।

नागर जी  थे किसान कवि के रूप में विख्यात---

खेमसिंह नागर जी की किसान कविता की लोकप्रियता का प्रमाण नेहरू -नागर घटना से दिया जा सकता है। किसान कवि 'खेम सिंह नागर' की कविता सुनने के लिए 1936 में किसानों ने जवाहरलाल नेहरूजी के भाषण का बहिष्कार कर दिया । वह कविता थी

“ओ मजदूर किसान 
बदल दो दुनिया ।
जग के खेवनदार 
बदल दो दुनिया । "
नेहरू की लोकप्रियता ब्रज के किसानों में लोक कवि 'खेम सिंह नागर' से कम होने के कारण किसान की माँग पहले हुई । इसलिए कहा है कि किसान की मानवीय संवेदना ही किसान कविता है। आज किसान मुक्त हो गया तो समझो 'किसान कविता' भी मुक्त हो गयी । किसान कविता मुक्ति का मतलब है-"किसान वर्ग की  संवेदना, अनुभव, बोध और सौंदर्यबोध की मुक्ति पाना।”

जब भी अलीगढ़ जनपद के लोक कवियों एवं गायकों की कभी भी चर्चा होगी तब -तब इन महान विभूतियों का स्मरण श्रद्धा एवं सम्मान के साथ जरूर किया जाएगा।ऐसा मेरा मानना है।

पारिवारिक प्रष्ठभूमि--

ठाकुर खेमसिंहनागर  (नागर साहित्यिक उपनाम) का जन्म-दिसम्बर, 1898 ई० में 
चंडौस क्षेत्र के नगला पदम, जिला-अलीगढ़ (उ. प्र.) में जादों राजपूत परिवार में हुआ था।
आप के पिता श्री बिहारीसिंह   एक धर्मजीवी किसान, अशिक्षित किन्तु प्रायः कवि एवं लोक-गायक थे। माता का नाम गौरादेवी था जो गभाना क्षेत्र के घौरोट गांव की थी। पत्नी- भूगोदेवी , पुत्र प्रेम कुमार तथा पुत्रियाँ-कलावती, लीलावती, प्रेमवती, शान्ति, सत्यवती । छोटे भाई रामप्रसाद सिंह और कमल सिंह थे।

शिक्षा एवं वैवाहिक जीवन  --

नागर जी ने प्राथमिक शिक्षा भी पूरी नहीं की थी। कक्षा 3 तक ही पढ़ाई हुई।गांव के स्कूल से इनका नाम भी कट गया।इनकी पढ़ाई बन्द हो गई।ननिहाल  घौरोट चले गए वहां पर भी पढ़ाई नहीं हो सकी।वहां कोई पढ़ा -लिखा नहीं था।पत्र पढ़वाने के लिए वहां के लोग निकट के गांव बीरपुरा जाते थे।ननिहाल में भी लाड़-प्यार के कारण नागर जी की पढ़ाई नहीं हो पाई।जनता के विश्वविद्यालयों से उच्च ज्ञान और संभवता प्राप्त की ।
     पिता की आज्ञा मानकर नागर जी को बाल -विवाह करना पड़ा।मात्र 11 वर्ष की उम्र में ही इनका विवाह हो गया था। इनकी पहली पत्नी नन्ही देवी का विवाह के दो साल बाद देहान्त हो गया।पत्नी की मृत्यु के तीन साल बाद स्वर्गीया की छोटी बहिन भूपोदेवी से विवाह हुआ।

सम्पूर्ण परिवार स्वतंत्रता प्रेमी --

नागर जी के इकलौते पुत्र प्रेमकुमार ने स्वाधीनता आन्दोलन मे  भाग लिया और जेल काटी। कहा जाता है कि नागर जी की पत्नी भी जेल में रहीं और उनके बेटे प्रेमकुमार का जन्म भी जेल में ही हुआ था।नागर जी के छोटे भाई कमलसिंह भी उन्हीं की प्रेरणा से स्वाधीनता के लिए जेल गये।



जीवन संघर्ष---

1914- आर्य समाज के प्रभाव में आर्य समाजी प्रचारक महाशय जसवंतसिंह और महाशय छज्जासिह की गायन मंडली में शामिल ।1916 में भारतीय कांग्रेस के सदस्य बने ।1923 में नागपुर झंडा सत्याग्रह में ठाकुर टोडर सिंह के नेतृत्व में 14 सत्याग्रहियों  के जत्थे में शामिल नागपुर जेल में 14 महीने की बामशक्त  कैद हुई।
1924 जनपद के प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता ठाकूर टोडर सिंह के साथ क्रांतिकारी  गतिविधियों में दिलचस्पी। सरदार भगत सिंह जी  से अलीगढ़ में मुलकात । 1931 आर्य समाज के विधिवत् सदस्य रहे।बीस रुपये के मासिक योगक्षेम पर आर्य समाज के पूर्णकालिक कार्यकर्ता । 1931 में हैदराबाद रियासत में 'सत्यार्थ प्रकाश पर प्रतिबन्ध और बन्दे मातरम् गीत पर पाबन्दी के विरोध में हैदराबाद जाकर गिरफ्तारी देना और जेल यात्रा ।1936 में कांग्रेस से नागर जी का मोहभंग हो गया । नागर जी बराबर सत्य की खोज कर रहे थे ।इसी कारण बराबर पार्टियां बदल-बदल कर सत्य का अन्वेषण करते रहे ।उसी समय सोशलिस्ट पार्टी के लोगों ने नागर जी से उनकी पार्टी की सदस्य बनने का आग्रह किया। सोशलिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।इसके बाद 1942  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता जीवन पर्यन्त इसी पार्टी में रहे। पार्टी द्वारा संचालित सभी कार्यक्रमों में सक्रिय भागेदारी। अनेको जेल यात्राएँ, धरना प्रदर्शन, सत्याग्रह और अनशन आदि में अग्रणीय भूमिका में आप रहे ।
 
जेल यात्राएँ- 

नागर जी कई बार जेल की यात्राएं की सन 1923, 1930, 1931, 1932, 1940, 1942 से 1946। लगभग दस साल जेल में रहे। सन 1945 में नागर जी आजादी के पक्ष में भाषण दे रहे थे उसी समय इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में इन्हें नागपुर ,वनारस ,आगरा की सेंट्रल जेलों में रख कर यातनाएं दी गयीं ।

निधन--
30 अक्टूबर सन 1988 को 90 वर्ष की आयु में नागर जी का निधन  हो गया। नागर जी बहुत सुडौल शरीर वाले व्यक्तित्व के धनी थे।खादी का कुर्ता -धोती एवं जाकट पहनते थे।उनका  रहन -सहन सदा जीवन एवं उच्च विचार वाला था।अंतिम समय तक स्वस्थ रहे तथा देशभक्ति ,समाजसुधार ,गरीब मजदूरों के विषय में ब्रजभाषा में अपनी रचनाएं लिखते रहे।

साहित्यिक- सृजन

राजनैतिक आन्दोलनों और गिरफ्तारियों की बजह से खेमसिंह नागर जी को साहित्यक -सर्जन का अधिक समय नहीं मिला ।इनकी अधिकतर रचनाएं जेलों में लिखी गयी ।किसान बारहमासी इनकी प्रसिद्ध रचना है।लखनऊ साथी प्रेस से प्रकाशित और प्रसिद्ध क्रान्तिकारी लेखक श्री यशपाल जी द्वारा सम्पादित "विप्लव "और वनारस से प्रकाशित "हंस " एवं "स्वतंत्र भारत " , "तारा , जनयुग"  (दिल्ली ) में बराबर नागर जी की रचनाएं प्रकाशित होती थी।

नागर जी ने 1914 में लोकगीत लिखना शुरू किया।आप ने  समाज सुधार, अछूतोद्धार और स्वदेशी के प्रचार में आर्य समाजी दृष्टिकोण से रचनाएँ की।
- 1914 से 1930 तक कई जिकड़ी भजन लिखे।
-अपने गीत, धरती के गीत (रसिया एवं होली-ग्रह) - 1940
-नल दमयन्ती (नाटक) - 1940
- शिवाजी और रोशन आरा (नाटक) - 1940
- कर्तव्य (नाटक) - 1940
- फांसी का सुहाग (नाटक) - 1940
- किसान की तकदीर (भजन - रागनी ) - 1942
-भीम प्रमिज्ञा (पौराणिक नाटक) - 1945
- मजदूरन रधिया (नाटक) - 1948 
-जन कीर्तन- 1952
- नये रसिया-1952
-किसान बारहमासी-1952
 - क्रान्ति बाटिका-1953
-सरदार भगतसिंह (नाटक) - 1957
-झांसी की रानी सांगीत नौटंकी-1959
- दहेज प्रथा (नाटक) - 1960
-अब्दुल हमीद (नाटक) - 1965
- राखी की लाज (संगीत नाटिक) - 1976
-बंटवारा (संगीत नाटिका) - 1979
- पंत नगर संग्राम (आल्हा) - 1979
— अनेको रसिया, होली, मल्हार, ढोला, आल्हा, रागनी, भजन,कीर्तन, बारहमासी, जिकड़ी भजन, गजल, कब्बाली, दादरा, सुपरी माचिंग गीत, फिल्मी पैराडी आदि लिखे और गाये ।आप की अधिकांश रचनाएँ अप्रकाशित हैं।

विशेष ज्ञातव्य ---

नागर जी और उनके अनन्य सहयोगी और मित्र पंडित छेदालाल "मूढ़ " की जोड़ी समूचे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लीजेंड बन गई थी।"मूढ़ " जी अद्वितीय गायक थे।
  नागर जी एवं पंडित छेदालाल " मूढ़ " दोनों  ने अनेक शहरों की सांस्कृतिक यात्राएँ की थीं। खेतान सेठ के निमंत्रण पर बम्बई में एक महीने तक रहे थे। नागर जी 'इप्टा' से सम्बद्ध थे। उनके नाटकों की अनेकों प्रस्तुतियां इप्टा द्वारा की गई ।आप ने सोवियत संघ की यात्रा की तथा मास्को रेडियो से उनकी रचनाएँ  भी प्रसारित हुई ।सी.पी.आई. के महासचिव का० पूरनचन्द्र जोशी उनके गाँव आकर उनकी रचनाओं को रिकार्ड करके ले गये थे ।  प्रगतिशील लेखक संघ के भिवंडी सम्मेलन में नागर-मूढ के लोक गीतों की धूम मच गई थी।
नागर जी की रचनाएँ-हंस (इलाहाबाद), स्वतन्त्र भारत, विप्लव (लखनऊ), तारा, जनयुग (दिल्ली) में भी प्रकाशित हुई।
माँ भारती सदैव अपनी कोख से ऐसे लालों को जन्म देती रही है जिनके त्याग और आदर्शों के सहारे समग्र मानवता का कल्याण होता रहा है ।नागर जी भी उन्नीसवीं सदी में जन्मे एक ऐसे ही माँ भारती के वरद पुत्रों में से एक थे।

मैं उनकी पुण्य आत्मा को अपने इस लेख के माध्यम से सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
     इस लेख को लिखने की प्रेरणा मुझे मेरे परम् सम्माननीय गुरुदेव प्रोफेसर डा0 ऋषिपाल सिंह जी से मिली ।नागर जी का गुरुदेव के घर पर आना -जाना होता था।लेख को पूर्ण करने में मुझे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से सेवा -निवृत्त प्रोफेसर डा0 भरत सिंह जी का काफी सहयोग मिला ।आप दोनों का मैं तहे दिल से आभार व्यक्त करते हुए सादर प्रणाम करता हूँ।
        । जय हिन्द ।

सन्दर्भ-
1-अलीगढ़ जनपद के जनकवि -खेमसिंह नागर लेखक डा0 रवेन्द्रपाल सिंह ।
2-क्रान्तिकारी लोक कवि -खेमसिंह नागर लेखक डा0 भरतसिंह ।

लेखक-डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव -लढोता , तहसील -सासनी  
जनपद- हाथरस, उत्तर प्रदेश ।
एसोसिएट प्रोफेसर कृषि मृदा विज्ञान 
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ।

Saturday, 31 July 2021

अलीगढ़ जनपदीय स्वतन्त्रता संग्राम सैनानी एवं जनपद के प्रथम विधायक ठाकुर नेत्रपाल सिंह --

अलीगढ़ जनपदीय स्वतन्त्रता संग्राम सैनानी एवं जनपद के प्रथम विधायक ठाकुर नेत्रपाल सिंह --

जन्मस्थान एवं शिक्षा--

अलीगढ़ जिले के समस्त गांवों में  सबसे अधिक स्वतंत्रता सैनानी पैदा करने का गौरव  जादों राजपूतों के गांव पालीरजापुर को प्राप्त है।इससे यह बात भी सिद्ध होती है कि उस समय पालीरजापुर शिक्षा के क्षेत्र में काफी अग्रणी था।पुराने बुजर्गों के द्वारा भी हम सुनते आये है  कि अलीगढ़ जिले में जादों ठाकुरों में पालीरजापुर काफी विकसित एवं शिक्षित गांव रहा है ।मैं ऐसी वीर प्रसूता भूमि को सादर नमन करता हूँ जिसमें ठाकुर नेत्रपाल सिंह जी जैसे कई स्वतंत्रता प्रेमी पैदा किये हैं ।यह गांव अलीगढ़ से 15 किलोमीटर दूर मडराक रेलवे स्टेशन के पास स्थति हैं।इस गांव के जादों  ठाकुर परिवार में श्री छत्रपाल सिंह जी उर्फ छीतर सिंह  के गृह में 5सितम्बर सन 1912 को श्री नेत्रपाल सिंह जी का जन्म हुआ। आप ने हाई स्कूल तक कि शिक्षा अपने पिता के संरक्षण में घर पर ही प्राप्त की थी।यह परीक्षा आप ने डी0 ए0 बी0 स्कूल अलीगढ़ से व्यक्तिगत छात्र के रूप में पास की थी।आगे की शिक्षा के लिए मथुरा चले गए।प्रेम महाविद्याल से शिक्षा प्राप्त कर एक समृद्ध एवं सुखी परिवार में पल्लवित ठाकुर नेत्रपाल सिंह ने देश सेवा के दुर्गम मार्ग का चयन किया।जीवन की प्रारम्भिक अवस्था में ये क्रांतिकारी विचारधारा के व्यक्ति थे।अतः राष्ट्रीय जोश के साथ ही इन्होंने सन 1928 में मथुरा में  साइमन कमीशन के बहिष्कार में भाग लिया और मथुरा स्टेशन पर काले झंडे दिखाकर विरोध किया ।अंग्रेज अधिकारियों ने इनको कोड़ों से पीटा ।इस व्यवहार से इनके अन्दर धधक रही देशभक्ति की ज्वाला ने विकराल रूप धारण कर लिया।इस घटना के साथ ही इनके राजनीतिक जीवन का प्रारम्भ हुआ।

कलकत्ता अधिवेशन में भाग लिया --

ठाकुर नेत्रपाल सिंह कांग्रेस के आव्हान  पर कलकत्ता अधिवेशन में पहुंचने को लालायित थे किंतु अंग्रेज सरकार ने इस अधिवेशन को प्रतिबन्धित कर दिया था।स्थान -स्थान पर गिरफ्तारियां हो रही थी , लेकिन ठाकुर साहब  अंग्रेजों की आंखों में धूल झौंकते हुए बहुत कठिनाइयों का सामना करते हुए अधिवेशन की निर्धारित तिथि से 3 दिन पूर्व ही कलकत्ता पहुंचने में सफल हो गए।वहां जगह -जगह छापे मारे जारहे थे फिर भी भेष बदल कर बचने में सफल रहे और अधिवेशन के दिन आयोजित स्थल कलकत्ता परेड ग्राउंड पर अपने अनेक साथियों सहित पहुंच गए।किसी प्रकार अधिवेशन में पढ़े जाने वाले प्रस्ताव पत्र की एक प्रति इन्हें भी प्राप्त हो गयी ।उस प्रस्ताव पत्र को लेकर मंच पर चढ़ गए और जोर -जोर से पढ़ने लगे ।इस साहसिक कदम से अंग्रेज पुलिस सकते में आ गयी और क्रोध में आकर इन्हें बेरहमी से पीटा और मरा हुआ समझ कर इन्हें छोड़ दिया गया।बाद में इन्हें बन्दी बनाया और कलकत्ता की अलीपुर जेल में बंधक बनाकर डाल दिया गया।
नमक सत्याग्रह के अवसर पर ये सत्याग्रहियों की टोली लेकर डांडी भी पहुंचे थे।

जेल की यातनाएं एवं जुर्माने --

सन 1932 के स्वतंत्रता संग्राम में इन्हें 6 माह की कठोर जेल और 10 रुपये का जुर्माने का दण्ड मिला।व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान सन 1941 में इन्होंने 1 वर्ष की कड़ी कैद और 50 रुपये जुर्माने की सजा पायी थी।सन 1942 में विदेशी सरकार ने इन्हें नज़रबन्द रखा था ।इनकी वीर पत्नी ने बच्चों के साथ जेल यात्रा भी की थी। 

खादी के प्रचारक --

जेल से छूटे तो इनका स्वास्थ्य बहुत खराब था।कांग्रेस ने इन्हें स्वास्थ्य लाभ और खादी के प्रचार के लिए देहरादून भेज दिया गया।वहां पर खादी आश्रम के प्रचारक बनकर जगह -जगह खादी बेचते थे ।

राजनैतिक जीवन -

ये वर्षों उत्तर प्रदेश कांग्रेस के सदस्य रहे।कोल तहसील कांग्रेस के मंत्री भी रहे।इन्होंने अलीगढ़ जिला किसान सभा में प्रधान और मन्त्री के रूप काफी समय तक कार्य किया।उत्तर प्रदेश आर्य प्रतिनिधि सभा के भी ये मंत्री और उपमन्त्री रहे। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी संगठन के अध्यक्ष रहे।जिला हरिजन सेवक संघ के (अध्यक्ष )पदाधिकारी रहे ।अपनी लोकप्रियता के कारण ये जिला परिषद के सदस्य भी निर्वाचित हुए।विधान सभा के भी सदस्य रहे।
ठाकुर नेत्रपाल सिंह जी को अलीगढ़ जनपद की  तत्कालीन राजनीति में पितामह के नाम से भी जाना जाता था।इन्होंने गांधी जी के सभी आंदोलनों में महत्वपूर्ण एवं सक्रिय भूमिका का निर्वहन किया था।आप स्वतंत्र भारत के प्रथम आएम चुनावों में वे अलीगढ़ जनपद की तत्कालीन विधानसभा क्षेत्र से आश्चर्यजनक बहुमत से विजयी हुए थे।इस लिए आप को अलीगढ़ जनपद का प्रथम विधायक भी कहा जाता है।आप 1952 से 57 तक विधायक रहे ,उस समय सिकन्दराराऊ , कोल तथा अतरौली को मिलाकर एक ही विधानसभा क्षेत्र हुआ करता था।

भूदान आंदोलन में आचार्य विनोबा भावे जी के साथ सहयोग --

 आचार्य विनोवाभावे जी के भूदान आंदोलन से आकर्षित होकर केवल अपना भू-भाग ही दान में नहीं दिया वरन सर्वोदय सेवा आश्रम की भी स्थापना की। खादी जगत के प्रचार -प्रसार के लिए आप आजीवन संघर्षशील रहे ।आप सदैव खादी का प्रयोग करते थे।आपका शिक्षा से बहुत लगाव था इस लिए आपने क्षत्रिय होते हुए भी अग्रसेन इंटरमीडिएट कालेज हरदुआगंज को 100 बीघा जमीन दान में दी थी तथा 200 बीघा जमीन भूदान आंदोलन में आचार्य विनोबा भावे जी को दान में दी थी ।इस तरह आप ने अनेकों सामाजिक संस्थाओं को कुल 800 बीघा जमीन दान में दी थी।इस प्रकार ठाकुर साहब ने विभिन्न क्षेत्रों में देश सेवा का कार्य किया।
 स्वतंत्रता सैनानी , रचनात्मक एवं सामाजिक सुधार के अग्रिम कार्य कर्ता के रूप में इन्होंने अलीगढ़ जनपद में प्रशंसनीय कार्य किये।गांधीवाद का  प्रभाव इनके जीवन में पूर्णतः प्रतिलक्षित हुआ।गाँधीदर्शन ही इनकी जीवनधारा का मार्गदर्शक रहा।ये स्वभाव में बड़े सरल ,मृदुभाषी और मिलनसार रहे।उच्च पद ने इनको कभी पथ भ्रष्ट नहीं किया ।कांग्रेस संस्था की त्यागमय वेदी से ये जीवन के बसन्त में आकर्षित हुए और उसके झंडे के नीचे ही इनके त्यागमय जीवन की पृष्ठिभूमि तैयार हुई।
 आप ने कनाडा सरकार के सहयोग से आस-पास के क्षेत्रों में नेत्र चिकित्सालय का काम किया ।जिला अस्पताल में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आरोग्य कर्ता का निर्माण कराया।
आप की सेवाएं आज भी प्रासंगिक हैं ।आप का नाम आपके राष्ट्रभक्ति एवं सामाजिक समरसतापूर्ण कार्यों की बजह से अमर रहेगा और आपका मार्ग युवाओं एवं बुद्धिजीवियों के लिए प्रेरणादायक रहेगा ।

स्वतन्त्रता सैनानी वीर प्रसुताभूमि पालीरजापुर गांव --

ठाकुर नेत्रपाल सिंह जी का पैतृक गांव पालीरजापुर 1932 से लेकर देश स्वतंत्र होने तक स्वतंत्रता के अमर सैनानियों की शरणस्थली भी रहा है ।सन 1932से लेकर 1942तक इस गांव की वीर प्रसूताभूमि को लगभग 15 स्वतन्त्रता सैनानी क्षत्रिय एवं क्षत्राणी पैदा करने का गौरव भी प्राप्त है जिन्होंने देशभक्ति की एक मिसाल दी है।मुझे इस गांव की मांटी पर गर्व है।इस गांव में ठाकुर नेत्रपाल सिंह जी के समकालीन अन्य क्षत्रिय वीरों एवं वीरांगनाओं ने भी स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया और जेल की यातनाएं भी सहीं जिनके नाम निम्न हैं।

1-ठाकुर गजाधर सिंह जी पुत्र ठाकुर करन सिंह सन1932 में 1 माह जेल में रहे।
2-ठा0 चुन्नी सिंह पुत्र ठा0 बलवन्त सिंह 1932 में 6माह की जेल एवं 15 रुपये जुर्माना।
3-ठा0 छत्तर पाल सिंह पुत्र ठा0 बन्शी सिंह ,1932 में 3माह की जेल एवं 10 रुपये जुर्माना।
4-ठा0 टीकम सिंह पुत्र ठा0 कल्याण सिंह 1930 में 1वर्ष की जेल एवं 50 रुपये जुर्माना।
5-ठा0 टीकाराम सिंह पुत्र ठा0 गुलाब सिंह ,1932 में 3माह की जेल 10 रुपये जुर्माना।
6-श्रीमती तोफादेवी पत्नी ठा0 मुरली सिंह 1941, 3 माह की जेल।
7-ठा0 नेत्रपाल सिंह 1932 में 6माह जेल ,
8-ठा0 महावीर सिंह पुत्र डम्बर सिंह 1932 में3 माह की जेल ,10 रुपये जुर्माना।
9-ठा0 प्रेम सिंह पुत्र ठा0करन सिंह 1932 में 3 माह जेल ,50 रुपये जुर्माना।
10-ठा0 बहोरी सिंह पुत्र ठाकुरदास ,1932 में 3माह जेल ,10 रुपये जुर्माना ।
11-भूरे सिंह पुत्र ठा0 ठाकुरदास ,1932 में 3 माह जेल 10 रुपये जुर्माना।
12-ठा 0सोहनपाल सिंह पुत्र रूपराम सिंह 1932 में 3माह जेल ,25 रुपये जुर्माना
13 -ठा0 राम सिंह पुत्र करन सिंह 1942 में 6माह जेल
स्वतंत्रता के इन अमर पुरोधाओं  को मैं सत-सत नमन करता हूँ।जय हिन्द।जय राजपूताना ।।

लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन 
गांव-लाढोता ,सासनी 
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रपदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान 
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज

अलीगढ़ जनपदीय स्वतंत्रता संग्राम सैनानी स्व0 ठाकुर नबाब सिंह चौहान जी --

अलीगढ़ जनपदीय स्वतंत्रता संग्राम सैनानी  स्व0 श्री नबाबसिंह चौहान जी (कंज) ---

जन्मस्थली -

श्री नबाब सिंह चौहान जी का जन्म अलीगढ़ जनपद में  16 दिसम्बर सन 1909 में  ग्राम -जवाँ बाजीदपुर में  ठाकुर बलवन्त सिंह चौहान जी के गृह में हुआ था।आप बचपन से ही बड़े होनहार एवं प्रतिभावान व्यक्तित्व के धनी थे ।

गुरु शिक्षा से एक कवि  भी बने  --

आप की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई थी।जब आप आठवीं कक्षा में पढ़ा करते थे तब हिंदी के तत्कालीन प्रख्यात कवि श्री गोकुल शर्मा जी आपके गुरु थे।उनकी प्रेरणा से ही आप ने हिन्दी कविताएं भी लिखना प्रारम्भ किया था ।उसके उपरांत आपने धर्म समाज कालेज से शिक्षा प्राप्त की थी। बाद में 'सुकवि ' के संपादक श्री गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही ' तथा अलीगढ़ जनपद के शीर्षस्थ हिन्दी कवि पंडित नाथूराम शर्मा जी 'शंकर 'के संपर्क में आकर आपने अपना उपनाम " कंज " रख लिया था।आप खड़ी बोली तथा ब्रजभाषा दोनों में ही अत्यंत सशक्त रचना किया करते थे ।आगे का अध्ययन धर्म समाज कालेज अलीगढ़ में ही हुआ।

हिन्दी रचनाएं एवं कविताएं --

आपने अपनी रचनाओं में प्राचीन गाथाओं और लोक संस्कृति का भी अच्छा चित्रण किया था।आपकी रचनाओं का एक संकलन " बुझा न दीप प्यार का " नाम से प्रकाशित हो चुका है।इस संकलन में आप की खड़ी बोली और ब्रजभाषा में लिखी गई 76 कविताओं को समाविष्ट किया गया है।
कविता तथा लेख भी पत्रिकाओं तथा रेडियो स्टेशन के लिए लिखते थे ।इससे प्राप्त धन को वह सुरक्षा कोष में उठा देते थे।आकाशवाणी से समय -समय पर आपके बताए , रूपक प्रसारित होते थे।आप के निम्न कविता संग्रह प्रकाशित हुए।
1-सुबहें समान सब हैं महान ।
2-गूँजें गीत किसान के ।
3-बुझा न दीप प्यार का ।
आप का जन्म एक ग्रामीण परिवेश में हुआ और वहां की अनेक समस्याओं का आपको बखूभी अनुभव भी , इस लिए आपने अपनी रचनाओं में वहां के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का ही चित्रण किया था।मूलतः किसान परिवार से होने के कारण आप अपने जीवन की अनेक विषमताओं को सहज ही अनुभव कर लेते थे ।ऐसी ही निकट परिस्थिति का चित्रण आपने अपनी एक रचना में कुछ इस प्रकार किया है --
जब भूख से सुख शरीर गया ,
वसुधा सु-धरा उपजाए तो क्या ।
अरविन्द को मार तुषार गया ,
मुस्कराता हुआ रवि आए तो क्या ।
कुम्हलाय गईं जब पंखुडियाँ ,
घनश्याम पीयूष चुवाये तो क्या ।
जब प्राण कलेवर छोड़ चले ,
तब "कुंज " कहो तुम आए तो क्या ।

एक स्वतंत्रता सैनानी बनने की इच्छा शक्ति का उदय---

आप अलीगढ़ जनपद के कर्मठ ,लोकतांत्रिक एवं गांधीवादी विचार के स्वतंत्रता सैनानी रहे थे।सन 1930 के सितंबर माह में मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए गांधी जी के आव्हान पर राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े फलस्वरूप  इनको धर्म समाज कालेज से निष्कासित कर दिया गया था और अपने जीवन को देश सेवा में अर्पित कर दिया।इनके साथ ही जिन अन्य छात्रों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए अध्ययन छोड़ा उनमें सर्वश्री रामगोपाल आजाद ,गंगासरन और स्वामी त्रिलोकीनाथ का नाम विशेष उल्लेखनीय है जिन्होंने सामाजिक कीर्तिमान स्थापित किये। इसी समय ठाकुर मलखनसिंह , श्री छेदालाल मूढ़ , श्री ठाकुर साहबसिंह , श्री फारुख अहमद के साथ गिरफ्तारियां दीं थी।भविष्य में सत्याग्रह करने के लिए दफा 108 के अंतर्गत जमानत मुचलके मांगे गए लेकिन आप सबने जमानत देना स्वीकार नहीं किया ।चौहान साहब ने लगन के साथ राष्ट्रीय कार्यों में भाग लिया।ठाकुर मलखान सिंह का इन पर वरदहस्त रहा।

जेल यात्राएँ एवं यातनाएं ---

द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने पर कांग्रेस के आदेशानुसार इन्होंने अंग्रेज सरकार की युद्धनीति का धुंआधार विरोध किया।इससे विदेशी शासन इनसे कुपित हो उठा।इनके तथा इनके साथियों के विरुद्ध दफा 108 के वारन्ट जारी हुए।कांग्रेस के आदेश पर भूमिगत न रह कर खुले रूप में प्रचार किया।ये गिरफ्तार किए गये और इन्हें 1 वर्ष का कठोर कारावास का दण्ड दिया गया ।सन 1940 -41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान 20 अप्रैल सन 1941 को फिर नज़रबन्द कर दिया गया। 22 अगस्त सन 1942 की भारत छोड़ो आंदोलन की  क्रान्ति में भी ये नजरबंद रहे।आप विभिन्न आंदोलनों में आगरा ,अलीगढ़ ,बरेली ,उन्नाव ,फैजाबाद तथा प्रतापगढ़ की जेलों में लगभग 3 वर्ष सजा काटी ।

स्वतंत्र भारत में राजनैतिक जीवन--

आप किसान वर्ग के प्रबल हिमायती एवं समर्थक रहे ।आप अखिल भारतीय स्तर की मजदूर उनियन एवं पी0 एन0 टी0 फैडरेशन के अध्यक्ष भी रहे।दो बार जिला परिषद के अध्यक्ष (1948 से 1951 तथा1963 से 1970 , भी रहे।11 वर्ष तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
ये प्रदेश कांग्रेस कमेटी के ही सदस्य रहे।भारत के स्वतंत्र होने पर एम 0 एल0 ए0 , एम0 पी0 और जिला परिषद के सदस्य रह कर कीर्तिमान स्थापित करते रहे।कांग्रेस विभाजन के पश्चात ये संगठन कांग्रेस के सक्रिय नेता रहे।सन 1977 में जनतापार्टी के निर्माण पर और कांग्रेस (स) का इसमें विलय होने पर जनतापार्टी में सम्मलित हो गए।इसी वर्ष के लोकसभा के आम चुनाव में अलीगढ़ जनपद ने जनतापार्टी टिकट पर इन्हें लोकसभा का सदस्य निर्वाचित किया ।इस दौरान संसदीय राजभाषा समिति के संयोजक तथा सुरपंचशती राष्ट्रीय समारोह के महामंत्री थे । विश्व सूर्य सम्मेलन की साहित्य समिति के संयोजक भी रहे । 5 अप्रैल 1981 को ये स्वतंत्रता के अमर पुरोधा इस संसार से विदा हो गये।चौहान साहब बौद्धिक प्रतिभा के अच्छे धनी थे।वे एक अच्छे कवि और विचारक भी थे।ब्रज भाषा में इन्होंने अनेक कविताएं भी लिखी हैं।अलीगढ़ जनपदीय स्वतंत्रता सैनानी समिति के अध्यक्ष भी रहे थे।
मैं ऐसे स्वतंत्रता के अमर पुरोधा को सत-सत नमन करता हूँ।जय हिन्द ।जय राजपूताना।।

लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज

Friday, 30 July 2021

अलीगढ़ जनपदीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जिन्दादिली की प्रतिमूर्ति ठाकुर टोडर सिंह --

अलीगढ़ जनपदीय जिन्दादिली की प्रतिमूर्ति विस्मृत स्वतंत्रता संग्राम सैनानी  ठा0 तोडरसिंह  की गौरव गाथा ---

अलीगढ़ जनपद के महात्मा गाँधीयुगीन स्वतंत्रता संग्रामों के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर टोडर सिंह  का जन्म अलीगढ़ जनपद में खैर तहसील के थाना टप्पल के गांव शादीपुर में हुआ था।इनके पिता ठाकुर गंगाप्रसाद  जी थे।युवावस्था में ही बंगभंग (सन 1905 ) के आंदोलन ने इन्हें क्रांतिकारी विचार वाला बना दिया ।गाँधी जी के आवाह्न पर सन 1914 में ये फौज में भर्ती हो गए।साथ ही सैकडों रंगरूटों की भर्ती कराने और युद्ध कोष में हजारों रुपये देने में योगदान किया।फौज में रहते हुए भी इनमें देश -प्रेम की भावना अक्षुण्य बनी रही।पूना रेजीमेंट में फौजी  अधिकारी द्वारा भोजन सामग्री में कटौती का विरोध करने के कारण इनका कोर्ट मार्शल हुआ।तत्कालीन अलीगढ़ के कलक्टर के हस्तक्षेप के कारण इन्हें अलीगढ़ वापिस भेज दिया ।
सन 1915 में इन्होंने फौज से अवकाश ग्रहण किया।इसके उपरांत ठाकुर साहब का सम्पूर्ण जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित जीवन बन गया।तत्कालीन रौलट एक्ट के प्रसंग में पंजाब में देशभक्तों पर होने वाले अत्याचारों एवं जलियांवाला बाग के अमानुषिक हत्याकांड की घटनाओं ने इन्हें विदेशी शासन का पूरी तरह विद्रोही बना दिया।स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कांग्रेस को इन्होंने अपनाया ।महात्मा गाँधी जी इनके आराध्यदेव और मार्गदर्शक बन गए।
सन 1920-21 के असहयोग और खिलाफत आंदोलन में ठाकुर साहब ने सक्रिय भाग लिया।इस संदर्भ में इनकी प्रथम जेल यात्रा हुई ।इन्हें 1 वर्ष कठोर कारावास तथा 3 मास की साधारण सजा मिली।सन 1923 के नागपुर झण्डा सत्याग्रह में भाग लेने के लिए 40 स्वयं सेवकों का जत्था लेकर उस राष्ट्रीय मोर्चे पर पहुंचे।वहां भी उन्हें जेल की यात्रा करनी पड़ी।सन 1925 की कानपुर कॉंग्रेस के अवसर पर अलीगढ़ से 100 स्वयं सेवकों को कानपुर ले जाकर वहां के प्रबंध को सुचारू रूप से चलाने पर पंडित मोतीलाल नेहरू जी व मातास्वरूप  रानी द्वारा ये प्रशंसित हुए।उक्त अवसर पर ठाकुर साहब ने संगठित -शक्ति का अदभुत परिचय दिया था।ठाकुर साहब का निवास स्थान देश की स्वाधीनता पर आत्मोसर्ग करने वाले क्रांतिकारियों का आश्रयदाता बना रहता था।

ठाकुर टोडर सिंह के घर गांव शादीपुर में अमर शहीद सरदार भगतसिंह जी का रहा था निवास----

सन 1927 में फरारी अवस्था में सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी सरदार भगतसिंह जी काफी समय तक बलवन्तसिंह नाम से अलीगढ़ जनपद में रहे थे ।उन्होंने अलीगढ़ जनपद के अग्रिम देशभक्त खैर तहसील के टप्पल क्षेत्र के ठाकुर टोडर सिंह  जी के गांव शादीपुर में प्रश्रय पाया था।ठाकुर साहिब क्रांतिकारियों के आश्रय दाता रहे और उन्हें हर प्रकार की सहायता देते रहते थे।सरदार भगत सिंह जी ने ठाकुर साहब के आश्रय में गुप्त रूप से शेरसिंह और नत्थन सिंह जी के साथ क्रांतिकारी संगठन सम्बन्धी कार्य किया था।
31 जनवरी सन 1929  को कांग्रेस के पूर्ण स्वाधीनता के प्रस्ताव ने अलीगढ़ के देशभक्तों में एक नवीन उत्साह और उमंग उतपन्न कर दिया।वे देश की आजादी के लिए सन्नद्ध हो गए ।सर्वप्रथम जब 26 जनवरी सन 1920 को सारे देश में प्रथम स्वाधीनता दिवस मनाया गया ।अलीगढ़ और जनपद में बड़े उत्साह और राष्ट्रीय जोश के साथ यह दिन मनाया गया।फलस्वरूप नगर और जनपद के अंतगर्त क्रांतिकारियों की ठाकुर साहब हर प्रकार से सहायता करते रहते थे।सन 1930 में नमक सत्याग्रह आरम्भ होने पर इन्होंने गांव -गांव घूमकर लोगों को स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था।विदेशी सरकार ने इन्हें गिरफ्तार किया और सन 1930-31 में कुल मिलाकर 22 माह की कठोर जेल और 100 रुपये जुर्माना का दण्ड दिया गया था।सन 1932 में भी इनको जेल यात्रा हुई।सन 1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में कुल 2 वर्ष की कड़ी कैद का दण्ड दिया गया  ।
ठाकुर साहब का कार्य क्षेत्र बड़ा व्यापक था।सन 1942 की क्रान्ति का अलख जगाने बाहर निकल पड़े।कांतिकारी गतिविधियों के कारण अन्त में ये बुलहंदशहर जनपद में गिरफ्तार कर लिए गए और इन्हें बुलन्दशहर जेल में बन्द कर दिया गया।सन 1942 को "भारत छोड़ो " क्रान्ति में इन्हें अंतिम जेल यात्रा करनी पड़ी।इस प्रकार स्वतंत्रता संग्रामों में सन 1921 से लेकर 1942 तक इनको अनेक बार विदेशी शासकों ने जेल में रखा ।जेल के कष्ट इनको उद्देश्य से डिगा नहीं सके।
सन 1937 में ये विधान परिषद के सदस्य रहे।15 अगस्त 1947 का दिन इनके जीवन का सबसे अधिक स्वर्णिम दिन था क्यों कि इन्होंने अपने जीवनकाल में अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता का सूर्योदय देखा।भारत के स्वतंत्र होने पर ये विधान सभा के सदस्य भी निर्वाचित हुए।तत्कालीन काँग्रेस में विभिन्न पदों को भी सुशोभित करते रहे ।जिले के सर्व प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी शांति अग्रदूत श्री ठाकुर टोडर सिंह जी 90 वर्ष की आयु में 16 दिसम्बर 1972 को प्रातः ब्रह्ममुहूर्त एकादशी के दिन इस संसार से विदा लेकर निर्वाण पद को प्राप्त हुए।उनकी शव यात्रा फूलों से सज्जित कर जेलरोड में चंदनिया श्मशान तक ले जाई गयी।आगे -आगे पुराने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री प्रेमप्रकाश आजाद ,आजादी के तराने गाते हुए ठाकुर साहब के जय घोष के नारे लगाते हुए चल रहे थे।जनपद के लगभग 200 स्वतंत्रता संग्राम सैनानी एवं गणमान्य महानुभाव साथ में थे।
निःसंदेह ठाकुर तोडरसिंह जी गाँधी युग के एक आदर्श मनीषी थे।इनका सम्पूर्ण जीवन गाँधी दर्शन से प्रभावित था।इनका जीवन बड़ा सरल और सात्विक था।त्याग और तपस्या पूर्ण इनका जीवन बड़ा प्रेरणादायक वन गया था।पवित्र आत्मा की झलक इनके व्यक्तित्व में पूर्णतः प्रतिविम्बित होती थी।सत्य और अहिंसा को इन्होंने पूरी तरह अपने जीवन में उतार लिया था ।कर्मयोगी और स्थितिप्रज्ञता का सुन्दर संमन्यवपूर्ण इनका जीवन भावी सन्तति के लिए आदर्श बना रहेगा ।ठाकुर साहब के संयम पूर्ण जीवन का ही परिणाम था कि इन्होंने 90 वर्ष से अधिक आयु व्यतीत की और अन्त में भौतिक शरीर को त्याग कर केवल यश शरीर को यहां छोड़ गए।इतिहास में इनका व्यक्तित्व और कृतित्व सदैव चिरस्थायी एवं स्मरणीय रहेगा।ऐसी पुण्य आत्मा को मैं सत-सत नमन करता हूँ।जय हिन्द ।जय राजपुताना ।।

लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज

अलीगढ़ जनपदीय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी अलीगढ़ केशरी ठाकुर मलखान सिंह की गौरवगाथा--

अलीगढ़ जनपदीय देशभक्त स्वतंत्रता के अमर पुरोधा अलीगढ़ केसरी स्व0 ठा0 मलखानसिंह जी की गौरवगाथा ---

वर्तमान सन्तति को इतिहास के माध्यम से जानने के सिवाय क्या पता है कि गांधी युगीन स्वतंत्रता संग्रामों में उनके अलीगढ़ जनपद में एक गौरवर्ण वाला लम्बा चौड़ा मूछों वाला चुम्बकीयव्यक्तित्व वाला एक ठाकुर था जिसने क्षत्रितत्व की मांन मर्यादा को म्रत्यु पर्यन्त निभाया और सदा विदेशियों से काँग्रेस के झंडे को लेकर उनसे जूझता रहा।वह विदेशी शासकों के लिए सदैव भय बना हुआ था।वह क्षत्रिय जो स्वतंत्रता के लिए जीया और मरा कौन था वह था ठाकुर मलखान सिंह ।उस वीर सैनानी ने 4 अगस्त 1889 को  ठाकुर तुलसीराम सिंह जी के गृह में ग्राम हसौना जगमोहनपुर (अकराबाद ) में जन्म लिया।अकराबाद की वह भूमि जो सन 1857 के वीर शहीदों से रक्तरंजित हो चुकी थी और जिसकी कहानियाँ उसने बुजर्गों से सुनी थी , आदि वातावरण का ही प्रभाव था कि युवावस्था से मलखान सिंह में देशभक्ति की भावना ह्रदय को उद्देलित करने लगी। आप की शिक्षा -दीक्षा का शुभारम्भ गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई । आगरा कालेज से एम 0 ए0 राजनीति विज्ञान में  उच्च शिक्षा ग्रहण करने एवं वकालत की परीक्षा करने के उपरांत कुछ दिन वकालत भी की ।इसके बाद सरस्वती विद्यालय हाथरस में प्राचार्य के रूप में कार्य किया।इसके साथ  ही देश की महान संस्था कांग्रेस द्वारा छेड़े गये असहयोग और खिलाफत आंदोलन ने इस वीर युवक की ह्र्दयगत राष्ट्रीय भावना को प्रस्फुटन के लिए अवसर आखिर प्रदान कर दिया।वह स्वतंत्रता संग्राम में कूदने से पूर्व ठाकुर मलखान सिंह कोल्हापुर विश्वविद्यालय (बिहार )  में प्रोफेसर नियुक्त हुए थे। ये बचपन से ही  क्रांतिकारी स्वभाव के थे। गाँधी जी की विचार धारा ने उनमें कूट -कूट कर राष्ट्रीय भावना को पल्लवित और पुष्पित कर दिया था।उन तूफानी दिनों में बड़ी निर्भीकता से ठाकुर मलखान सिंह ने भाग लिया।गांधी जी की पुकार पर अलीगढ़ जनपद के असहयोग आंदोलन के अंर्तगत आंदोलन करने का नेतृत्व ठाकुर साहब ने किया ।आपके नेतृत्व में आंदोलनकारियों ने 5 जुलाई सन 1921 को अंग्रेजी दासता का विरोध करने के लिए एवं ब्रिटिश व्यवस्था को तहस -नहस करने के लिए अलीगढ़ रेलवे स्टेशन फूंक दिया तथा सदर , खैर , हाथरस तहसीलों पर आंदोलनकारियों द्वारा अंग्रेज प्रशासकों को हटाकर अपना कब्जा कर लिया गया और स्वतंत्र सरकार की घोषणा कर दी।इन्हीं के केस के संदर्भ में अलीगढ़-काण्ड हुआ।इस घटना से यह प्रत्यक्ष था कि जनता में बड़े लोकप्रिय नेता बन चुके थे तथा अंग्रेजों के कोपभजन बन गए। ।सन 1921-22 में विदेशी सरकार ने 42 मास की कड़ी कैद तथा 3 माह  तक सोलिटरी कैद में रखा गया था तस्थ 7 कोड़ों की अंतिम सजा दी।सन 1930 के नमक सत्याग्रह में इन्हें 2 वर्ष की कड़ी कैद की सजा दी गयी थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण 18 माह की कैद तथा 100 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई।जेल से छूटने के बाद आप फरार हो गए ।सन 1932 में आगरा में प्रदेशीय राजनैतिक कांफ्रेस करने का निश्चय हुआ।इसके सभापति ठा0 मलखान सिंह चुने गए।इन दिनों ठाकुर साहब फरारी अवस्था में अलीगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम का अलख जगा रहे थे।बड़े गुप्त रूप से इन्हें आगरा लाया गया ।नमक मंडी में  स्थित श्री रायबहादुर बाबू घनश्यामदास रिटायर जज के मकान में ठाकुर मलखान सिंह को भूमिगत रखा गया।पुलिस उनकी तलाश में थी।उसने इनामी वारंट की घोषणा भी कर रखी थी। ठाकुर साहब हजारों  स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जन -सैलाब को संबोधित कर रहे थे ।तोपों की सलामी की गड़गड़ाहट और हजारों लोगों के समूह में 20 जून सन 1932 को ठाकुर साहब को गिरफ्तार कर लिया गया।इन्हें 18 माह का कठोर दण्ड और 100 रुपये जुर्माना का दण्ड दिया गयाऔर फतेहगढ़ जेल भेज दिया गया ।जेल में उन्हें कई तरह की गम्भीर यातनाएं दी गयी।
ठाकुर साहब में एक क्रांतिकारी का जोश था जो स्वतंत्रता संग्रामों में प्रस्फुटित होता रहा।वे देश -विदेश के क्रांतिकारियों से संपर्क रखते हुए देश की आजादी की लड़ाई में जनता को उत्प्रेरित करते रहे।उनमें अपूर्व संगठन शक्ति थी।उनकी ओजपूर्ण  वाणी लोगों को प्रभावित करती थी।सदैव उन्होंने राजनीतिक विरोधियों से भी डट कर टक्कर ली।निःसन्देह वे अलीगढ़ जनपद के एक मात्र अग्रिम नेता थे।
जेल से छूट कर इन्होंने सन 1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में उन्होंने सक्रिय भाग लिया।उन्हें 18 माह का जेल  दण्ड मिला ।सन 1942 की क्रान्ति में उन्हें अपने शौर्य प्रदर्षित करने का अवसर दिया ।भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 24 फरवरी 1942 से 27 अक्टूबर सन 1945 तक इनको नज़रबन्द रखा गया । ये जेल से मुक्त हुए।

अलीगढ़ केशरी की उपाधि से नवाजा गया ---
27 अक्टूबर 1945 के बाद जेल से रिहा होने के बाद उत्तर प्रदेश के आंदोलनकारी क्षत्रियों द्वारा तत्कालीन अलीगढ़ जनपद के गांव बांदनूँ में राष्ट्रीय स्तर का क्षत्रिय सम्मेलन आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता ठाकुर मलखान सिंह जी ने की थी ।मुख्य अथिति के रुप में शेरकोट स्टेट की महारानी फूलकुमारी साहिबा पधारी थी जिनके द्वारा ठाकुर मलखान सिंह जी को हजारों स्वतंत्रता सेनानियों के मध्य "अलीगढ़ केशरी "की उपाधि से विभूषित किया गया।तभी से इन्हें अलीगढ़ केशरी के नाम से पहचाना गया।

ठाकुर मलखान सिंह का जीवन जिन्दादिली का जीवन था ।उनका एक योद्धा का जीवन था।जिला स्तर से प्रांतीय स्तर तक काँग्रेस के पदाधिकारी रहे।अखिल भारतीय कांग्रेस के भी वर्षों सदस्य रहे।वे अपने विचारों में पूर्ण समाजवादी थे ।आचार्य नरेन्द्र देव की सलाह से ही वे काँग्रेस छोड़कर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में सम्मलित हुए थे।जब कांग्रेस ने समाजवादी विचारधारा विचार धारा को अपना लिया तो वे स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री जी के आग्रह पर पुनः अपनी मातृ -संस्था कांग्रेस में आ गए।भारत के स्वतंत्र होने पर वे एक बार अलीगढ़ से तथा दूसरी बार सिकन्दराराउ (हाथरस ) से विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। ठाकुर मलखानसिंह का जीवन निःसन्देह गांधी युगीन एक कर्मठ और कर्मयोगी का जीवन था ।24 जनवरी 19632 को 73 वर्ष की आयु में यह स्वतंत्रता का अमर पुरोधा संसार से विदा हो गया।आज ठाकुर साहब यद्धपि नहीं रहे लेकिन इतिहास में वे सदैव अमर रहेंगे और उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रेरणाश्रोत बना रहेगा। उनके निधन के बाद उनकी स्मृति में अलीगढ़ में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके नाम से मलखान सिंह जिला अस्पताल का निर्माण कराया।उनके नाम से कई संस्थाएं संचालित हैं।मैं ऐसे महान स्वतंत्रता प्रेमी को कोटिशः प्रणाम एवं सत -सत नमन करता हूँ।जय हिन्द।जय राजपूताना ।।

जिन्दगी जिन्दादिली को जान ए रोशन ।
यों तो कितने ही हुए और मरते हैं।।

लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज

Sunday, 25 July 2021

अलीगढ़ जनपद में अकराबाद के अमर शहीद ठाकुर मंगल सिंह एवं महताब सिंह के बलिदान की गौरव गाथा ---

 

इनकी भी याद करो कुर्वानी--अलीगढ़ जनपदीय अकराबाद के अमर शहीद ठाकुर मंगल सिंह एवं महताब सिंह के बलिदान की गौरवगाथा ---

सन 1857 क्रान्ति के प्रारम्भ काल से ही सिकन्दराराऊ ,अतरौली ,अकराबाद ,हरदुआगंज आदि के क्षेत्रों में क्रांति का विस्तार हो गया था।सिकन्दराराऊ , अतरौली और अकराबाद की तहसीलों को क्रान्तिकारियों ने नष्ट -भ्रष्ट कर दिया था ।सिकन्दराऊ के अकराबाद क्षेत्र के पुंडीर राजपूतों के एक दल ने 1857 के स्वाधीनता संग्राम में अहम भूमिका अदा की थी जिनमें अकराबाद के पुंडीर राजपूत नारायन सिंह के दो पुत्र  मंगलसिंह और महताब सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए कान्तिकारियों का एक शक्तिशाली संगठन बना लिया था । इनके साथ में  मदापुर के मंगलसेन और खेरा के सीताराम सिंह भी रहे थे।अतरौली से  बडगुजर राजपूतों ने विदेशी सत्ता को मिटा दिया था।यहां के कान्तिकारियों ने विदेशीसत्ता के ज्वाइन्ट मजिस्टेट मुहम्मदअली को तहसील के फाटक पर मार डाला था।
6 अक्टूबर सन 1857 को अकराबाद में क्रांतिकारियों और अंग्रेज सेनापति ग्रीथेड़ की विदेशी सेना के बीच रूह को कंपाने वाला अंतिम खूनी संघर्ष हुआ।अकराबाद की ओर बढ़ती हुई विदेशी सेना को रोकने के प्रयत्न में लगभग 250 क्रांतिकारी शहीद हुए क्यों कि ये कर्नल ग्रीथेड़ द्वारा भेजे हुए मेजर ओवरी द्वारा मारे गए थे।
अकराबाद पहुंच कर अंग्रेजों ने वहां के प्रमुख क्रान्तिकारी नेता दो सगे भाई मंगल सिंह और महताब सिंह को फांसी पर लटका दिया गया।साथ ही अनेक देशभक्तों को फाँसी दी गयी।अकराबाद में उनकी गढ़ी को अंग्रेजों ने ध्वस्त कर दिया ।इन दोनों भाइयों ने अपने क्षेत्रीय साथियों के साथ अंग्रेजी सेना के साथ खूनी से संघर्ष किया और अंग्रेजो को विजयगढ़ किले की ओर जाने से रोक कर घमासान युद्ध करके वीरता एवं देशभक्ति का परिचय दिया। अकराबाद के शहीदों के स्वजातीय एवं विदेशी शासन भक्त तेजसिंह और जवाहर सिंह ने इस स्वतंत्रता संग्राम में देशद्रोहिता का भी परिचय दिया ।स्वाधीनता के पवित्र यज्ञ में इन्होंने अपनी कुछ पुंडीर राजपूतों को भी भाग लेने से रोका था। महताब सिंह और मंगल सिंह की फांसी के बाद , अक्टूबर 9 , 1857 को ग्रीथेड़ की सेना ने विजयगढ़ में प्रवेश किया और वहां के देशभक्तों का दमन किया ।
अकराबाद के इन दोनों अमर शहीदों की दो छतरियाँ आज भी देशभक्तों के ह्रदयों को स्पंदित कर देती हैं कि यही उन देश भक्तों के स्मारक हैं , जिन्होंने विदेशी दसता के युग में वीर राजपूतों के नाम को सार्थक करने के लिए विदेशी शासकों के विरुद्ध उठ खड़े होने का संकल्प किया था ।इन्होंने क्रान्ति में सक्रिय भाग लिया और अपने इलाके में क्रांतिकारियों का क्षत्रिय परम्परा के अनुसार नेतृत्व किया।विदेशी सत्ता के प्रतीक अकराबाद तहसील के खजाने को लूट वाने में इन्होंने प्रमुख भाग लिया ।वहां के सभी कागजात अग्नि को भेंट कर दिए गए।उत्तरी -पश्चिमी प्रान्त के चीफ कमिश्नर एच0 फ्रेजर के पत्र से जो उसने 31 अक्टूबर सन 1857 को गवर्नर जनरल को लिखा था , यह प्रकट होता है कि अकराबाद के इन दोनों क्रांतिकारी देशभक्तों को नष्ट करने के लिए 2000 सैनिक तैनात किए गए थे।कर्नल ग्रीथेड़ की सेना ने अक्टूबर माह में जब अकराबाद पर आक्रमण किया ।उस समय ये दोनों भाई पकड़े गए और इन्हें फांसी पर लटका दिया गया ।इनकी गढ़ी को ध्वस्त कर दिया गया ।आज इन राजपूत वीरों की अकराबाद में गढ़ी के खंडहर इनकी गौरवगाथा सुनाते हुए प्रतीत होते हैं ।
नाई गांव के ठाकुर कुन्दन सिंह पुंडीर ने 1857 के अकराबाद के क्रांतिकारियों के विरुद्ध अंग्रेजों की मदद की थी जिसके पुरस्कार में उनको नाई के अतिरिक्त दो गावों की जमींदारी भी अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदान की गई और उनको  बाद में अंग्रेजी सरकार की मदद की एवज में सिकन्दराराऊ का नाजिम बनाया गया ।इन्होंने देशद्रोहिता का परिचय दिया ।ये अकराबाद क्षेत्र के प्रभावशाली व्यक्ति थे जिनका प्रभाव क्षेत्र के लोगों पर अधिक था ।
अन्त में स्वतंत्रता के इन अमर शहीदों को सत-सत नमन करता हूँ और अकराबाद क्षेत्र के राजपूत भाइयों से आग्रह भी करता हूँ के वे अकराबाद में इन देशभक्त बलिदानी भारत माता के सपूतों की स्मृति में इनकी पुण्यतिथि 6 अक्टूबर को जरूर श्राद्ध सुमन अर्पित करके स्मरण करें।जय हिन्द ।जय राजपुताना।।

संदर्भ --

1-Aligarh :A gazetted of the district gazetteers of United Provinces of Agra &Qudh ,Bill .4 , by H.R.Nevill , 1909.
2-Aligarh District :A Historical Survey ,Aligarh ,Chap.VII , p.173-189.by J.M.Siddiqi .
3-Statistical ,descriptive and historical account of the north -western Provinces of India ,Meerut division pt.I ,1874. Allahabad ,Bill.II.
4-J.Thorton , Report upon .The settlement of pergunnah Moordhany .Zillah Allyaarh ,Vide Allygurh ,Statics.pp.236 ,noted in Aligarh district.
5-Indian Journal of Archaeology , Voll 2 ,No .4 ,2017 . Archaeological Gazetteer of Aligarh and Hathras districts with special reference to OCP and other Proti-Historic cultures of Indo-Gangetic plains by Editor Chief Vijay Kumar.
6-Smith W.H.settlement Report . 345 Aligarh district .Allahabad.
7-Statistical , description and Historical account of the North-western Provinces of India .Vol .3 Edited by Alkinson ,Edwin Thomas.
8-aligarh janpad ka Itihas author Prof.Chintamani Shula.

लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज

Tuesday, 19 February 2019

  आज  17 वीं सदी के हिन्दुत्व रक्षक,उच्च विचारक , राष्ट्रप्रेमी वीर शिरोमणी  राजाधिराज छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के शुभअवसर पर मेरा उनकी स्मृति में समर्पित ये लेख-------

प्रेरक प्रसंग केवल सुनकर भूल जाने के लिए नहीं होते।प्रेरणा कुछ पलों की नहीं ,बल्कि जीवन भर के लिए होनी चाहिए।उनमे बहुत गहरी सीख छुपी होती है।छत्रपति शिवाजी बहुत साहसी ,निडर ,दयालु और न्यायप्रिय शासक थे।अपनी बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता के साथ उन्होंने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त की थीं।अक्सर बच्चों को उनके जीवन से जुड़े विभिन्न किस्से सुनाये जाते हैं।सिर्फ बच्चों को ही नहीं ,हर व्यक्ति को इन प्रसंगों में मौजूद सीख को सुनना और आत्मसात करना चाहिए।
बचपन से ही शिवाजी बहुत निडर और साहसी थे।आगे चल कर उन्होंने पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी।अपने चातुर्य के बल पर वे बड़ी -बड़ी मुश्किलों से चुटकियों में बाहर आ जाते थे।प्राचीन काल से लेकर अब तक हिन्दुस्तान की इस पावन पवित्र वीरों की भूमि में अनेक योद्धा उत्पन्न हुए है।छत्रपति शिवाजी का नाम भी उन्ही योद्धाओ में से एक है।

छत्रपति शिवाजी के वंश एवं परिवार का परिचय--------

ईसा की सोलहवीं शताब्दी के मध्य में शिवाजी के पूर्वज बाबाजी भोंसले पूना जिले के हिंगनी और देवलगांव नामक दो गांवों के पटेल का काम करते थे।बाबाजी भोंसले की मृत्यु के बाद उनके दो लड़के मालोजी और विठोजी पड़ोसियों से अनबन होने के सबब से बाल -बच्चों सहित गाँव छोड़कर विख्यात एलोरा पहाड़ के नीचे वेरुल गाँव को चले गये ।वहां पर खेती से कम आमदनी देख वे सिन्धखेड़ के जमींदार और अहमद नगर राज्य के सेनापति लखूजी यादवराव के पास जाकर मामूली घुड़सवारों की फौज में नौकरी करने लगे।हरएक को बीस रुपये मासिक तनख्वाह मिलती थी।

शिवाजी  ऐसे वंश से संवन्धित है जिसकी वीरता जग जाहिर है।उनके पिता शाह जी भोंसला उस पवित्र राणा के शिशोदिया वंश में पैदा हुए जिसमे बड़े बड़े शूरवीर उत्पन्न हुए।यह वंश सदैव स्वतंत्र रहा।इस वंश की हर पीढ़ी अपनी जाति और देश के लिए सदैव संघर्ष करती रही।मुस्लिम शासकों से हमेशा दूरी बनाये रखी।इस कारण यह अपनी पवित्रताके कारण समस्त राजपूतों के शिरोमणी है।

शिवाजी की माता जीजाबाई दक्षिण के देवलगढ़ के जादव (यदुवंशी क्षत्रिय)  वंश से थी। जीजाबाई के पिता लखूजी जादवराव  सिन्धखेड़ के जमींदार और अहमद नगर राज्य के सेनापति थे तथा माता गिरिजाबाई बड़ी बुद्धिमती ,तेज एवं बहादुर रमणी थी।

शाहजी एवं जीजाबाई-------

सम्भवतः शाहजी एवं जीजाबाई का विवाह सन 1604ई0 में हुआ।जीजाबाई और शाहजी के आपस में सम्बन्ध बहुत मधुर नहीं रहे।सन 1630से 1636 ई0 तक शाहजी का समय लड़ाई -झगड़ों ,कठिनाइयों और अपनी हालत के। हेर-फेर में ही काटा।इस कारण उनको बहुत जगह घूमना पड़ा।सन 1636 ई0 में मुगलों के साथ उनकी लड़ाई खत्म हो गई।उस समय यधपि उन्होंने बीजापुर राज्य की नौकरी कर ली थी,परन्तु महाराष्ट्र में अधिक नहीं रहे।वे मैसूर देश में अपनी नई जागीर बसाने चले गए।वहां वे अपनी दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते और उसके लड़के व्यंकोजी (उर्फ एकोजी) के साथ रहने लगे।

शिवाजी का जन्म एवं बाल्यकाल-------

जीजाबाई के गर्भ से दो पुत्र जन्मे--शम्भुजी(सन 1623ई0 ) और शिवाजी का जन्म 19 फरवरी 1630ई0 को हुआ था।दूसरे लड़के के जन्म से पहले जीजाबाई जुन्नर शहर के नजदीक शिवनेर के पहाड़ी किले में रहती थी।माता जीजाबाई ने अपनी होने वाली सन्तान की मंगल कामना के लिए किले की अधिष्ठात्री देवी "शिवा" भवानी की मनौती माँगी थी।इस कारण लड़के का नाम रखा "शिव" जो दक्षिणियों के उच्चारण के अनुसार "शिवा" हो गया।जीजाबाई अपने दोनों पुत्रों के साथ अकेले ही शिवनेर के किले में आश्रय लेकर रहते थे।
जन्म से लेकर दस वर्ष की आयु तक शिवाजी ने अपने पिता को बहुत कम देखा था ,और उसके बाद तो पिता -पुत्र दोनों बिल्कुल ही अलग हो गये।

शिवाजी की मातृभक्ति और धर्म -शिक्षा----------

पति के प्रेम से वंचित होने के कारण जीजाबाई का मन धर्म की ओर झुका।पहले भी धर्मपरायण थीं,पर अब तो एकदम संन्यासिनी के समान रहने लगीं।फिर भी वक्त पर जमींदारी के काम -काज करती थीं।माता के इन धार्मिक भावों का प्रभाव उनके पुत्र के बाल -ह्रदय पर पड़ा।शिवाजी अकेले में बढ़ने लगे।उनके पास न तो कोई मित्र ही था , न भाई ,न बहिन और न पिता ही।कहते है इनके भाई शम्भू जी तरुण अवस्था में कनकगिरि के किले पर आक्रमण करते समय मारे गए।इतिहास उनके संम्बन्ध में मूक है।इस निर्जन जीवन के कारण मा-बेटे में बहुत घनिष्टता हो गई।शिवाजी की स्वाभाविक मातृ-भक्ति आगे चल कर एकदम देव -भक्ति तुल्य तजुर्बा हो गई।
शिवाजी ने बचपन से ही अपना काम अपने आप करना सीखा।उन्हें किसी दूसरे की आज्ञा अथवा सलाह लेने की जरूरत नहीं पड़ी।इस प्रकार जीवन के आरम्भ से ही उन्होंने जिम्मेदारी उठाना और खुद काम करने का तजुर्बा हासिल किया।

शिवाजी के चरित्र से लें प्रेरणा ----- 

शिवाजी का चरित्र अनेक सद्गुणों से भरा था।उनकी मातृ-भक्ति ,सन्तान -प्रीति ,इन्द्रिय-निग्रह ,धर्मानुराग ,साधु -सन्तों के प्रति भक्ति ,विलासवर्जन ,श्रमशीलता और सब सम्प्रदायों के ऊपर उदार भाव उस युग के अन्य किसी राजवंश में ही नहीं ,अनेक गृहस्थों के घरों में भी अतुलनीय था।वे अपनी राज्य की सारी शक्ति लगाकर स्त्रियों के सतीत्व -रक्षा करते ,अपनी फौज की उदंडता का दमन करके सब धर्मों के उपासना -स्थलों और शास्त्रों के प्रति सम्मान दिखलाते और साधु -संतों का पालन -पोषण करते थे।

मातृशक्ति का सम्मान परम् धरम-------

शिवाजी की उम्र उस समय मात्र 14 वर्ष थी।उनके सामने एक सैनिक किसी गांव के मुखिया को पकड़ कर लाये तो घनी मूंछों वाला बड़ा ही रसूकदार व्यक्ति था ।अच्छे -अच्छे उसे देख कर डर जाते थे,मगर युवा शिवाजी पर उसके व्यक्तित्व का कोई असर नहीं हुआ।
दरसल उस व्यकि पर एक विधवा के साथ दुष्कर्म का आरोप साबित हो चुका था।शिवाजी के मन में महिलाओं के प्रति हमेशा से ही बहुत सम्मान भाव था।उन्होंने तुरन्त अपना निर्णय सुनाया, "इस व्यक्ति के दोनों हाथ -पैर काट दिए जांय।ऐसे जघन्य अपराध के लिए इससे कम सजा नहीं हो सकती।"
जब शिवाजी ने कल्याण दुर्ग पर विजय प्राप्त की थी तो उनके सेनापति ने परास्त सूबेदार की बेहद सुन्दर पुत्रबधू गौहर बानू को शिवाजी के सामने प्रस्तुत किया ।शिवाजी ने सेनापति के इस कृतित्व के लिए डाटा और गौहर बानू से क्षमा मांगी और सेउसके शौहर के पास वापस सुरक्षित भेज दिया।उसकी सुन्दरता की तारीफ भी उन्होंने अपनी मां से तुलना करके की।

गुरु को सौंप दिया राज -पाट -- ----

 शिवाजी के गुरु रामदास स्वामी महाराष्ट के बड़े प्रसिद्ध और सर्वमान्य साधु पुरुष थे।शिवाजी ने सन 1673 ई0 में सतारा का किला जीत कर तथा उससे थोड़ी दूर परली- दुर्ग पर  भी अधिकार कर लिया।इसी परली-दुर्ग को सज्जन -गढ़ (साधुओं का गढ़) नया नाम देकर शिवाजी नेअपने गुरु के लिए एक आश्रम बना दिया,और रामदास जी को वहीं लाकर रखा तथा उनके लिए मन्दिर ,मठ आदि बनवा दिये।रामदास जी अन्य साधुओं की तरह रोज भिक्षा को निकलते थे।शिवाजी इससे हैरान थे।उन्होंने सोचा ----"गुरुजी को हमने इतना धन और ऐश्वर्य दान दिया ,तब भी वे भिक्षाटन क्यों करते है?क्या करने से उनके मन की तृष्णा मिटेगी?"इसी ख्याल से उन्होंने दूसरे दिन एक कागज पर महाराष्ट्र का अपना सारा राज्य और समस्त राजकोष का दान -पात्र रामदास स्वामी जी के नाम लिख कर उस पर अपनी मोहर लगा दी ,और भिक्षा के रास्ते पर गुरु जी को पकड़कर उस दान पत्र को उनके चरणों में अर्पित कर दिया।अब मेरा राज्य आप का हुआ ।अब आप भिक्षा के लिये मत जाइए।
रामदास उसे पढ़ कर मन्द मुस्कान के साथ बोले ---
"अच्छी बात है।यह सब हम ने ले लिया।आज से हमारे गुमाश्ता मात्र रहे।अब यह राज्य तुम्हारे लिए अपने भोग -विलास और मनमानी करने की वस्तु न रहा । तुम्हारे ऊपर एक बड़ा मालिक है।उसी की यह जमींदारी  है जिसे तुम उसके विश्वासी नौकर के रूप में चला रहे हो ,इसी दायित्व के विचार से आगे राज -काज चालान ।"
राज्य के मालिक सन्यासी होने के कारण उनका गेरुआ वस्त्र ही शिवाजी की राज -पताका हुई जिसका नाम रक्खा "भगवा झंडा "।यह मनोरम दन्त कथा महाराष्ट्र में खूब प्रचलित है।

निष्ठावान हिन्दू भक्त--- 

शिवाजी की गिनती एक महान हिन्दू  राष्ट्र भक्तों में की जाती है।उन्होंने मुगलों के विरुद्ध हिंदुओं में एकता का भाव उत्पन्न कर उसके जातीय संगठन द्वारा पुनः हिंदुराज्य स्थापित कर देना हीअपना मुख्य अभिप्राय प्रकट कियाऔर मराठा जाति में एक प्रकार का जोश उत्पन्न कर दिया।एक बार मुरार पंत ने शिवाजी को बादशाह के दरवार में चलने को कहा तो उन्होंने अप्रसन्नता प्रगट करते हुये कहा "हम हिन्दू है,बादशाह यवन है और महायवंन है।हमारा और उसका मेल नही हो सकता मैं किसी ऐसे मनुष्य  का दर्शन करना नहीं चाहता जो हमारे हिन्दू धर्म का शत्रु है मैं उसे छूना भी नहीं चाहता हूँ।सलाम तो करना और रहा मन में आता है उसे मार डालूं।जब शिवाजी को किसी तरह समझा कर दरवार ले गए लेकिन उन्होंने बादसाह को सलाम नही किया और दरवार से लौट कर स्नान किया और नए वस्त्र पहने।उनके चरित्र के विषय में तो हिन्दुस्तान ही नहीं पूरा विश्व जनता है महान चरित्रवान योद्धा थे।कट्टर मुसलमान इतिहासकार खाफीखां ने भी शिवाजी की मृत्यु पर उल्लेख करते समय शिवाजी के सच्चरित्र ,पर स्त्री को माता के समान मानना ,दया ,दाक्षिण्य और सब धर्मों को समान प्रतिष्ठा से देखना ,आदि दुर्लभ गुणों की मुक्ति कंठ से प्रशंसा की है।शिवाजी का राज्य था "हिन्दवी स्वराज" पर अन्य धर्मों के लोग भी उनके अधीन नौकरी पाते थे और ऊँचे पदों पर प्रतिष्ठित होते थे लेकिन उनमें राष्ट्र भक्ति भाव था।

सर्व धर्म -सम्प्रदायों का समान सम्मान --- -----

उनके राज्य में सब जातियाँ और सब -धर्म -संम्प्रदाय अपनी -अपनी उपासना की स्वाधीनता और संसार में उन्नति करने का समान सुयोग पाते थे।देश में शांति और सुविचार की जय और प्रजा के धन -मान की रक्षा के एक मात्र कारण वे ही थे।भारतवर्ष के समान नाना वर्ण और धर्म के लोगों से भरे हुए देश में शिवाजी द्वारा संचालित इस राजनीति से बढ़ कर उदार और कल्याण करने वाली किसी भी दूसरी नीति की कल्पना नहीं की जा सकती।

शिवाजी की प्रतिभा एवं मौलिकता---------

आदमी को देखते ही उसके चरित्र और ताकत को ठीक समझ कर हर एक को उसकी योग्यता के अनुसार काम में लगाना प्रकृत शासक के गुण है ;शिवाजी में भी यह आश्चर्यजनक गुण था।उनके चरित्र की आकर्षण शक्ति चुम्बक की तरह थी।देश के अच्छे ,चालक और बड़े लोग उनके यहां आ जुटते थे ,उनके साथ भाई की तरह व्यवहार कर ,उनको सन्तुष्ट रख कर वे उनसे आन्तरिक भक्ति और सोलहों आना विश्वास एवं सेवा पाते थे।इस लिए वे हमेशा सन्धि -विग्रह ,शासन और राजनीति में इतने सफल होते थे।फौज के साथ हमेशा हिल -मिलकर ,उनके दुःख के साथी होकर ,फ्रेंच फौज के नेपोलियन की तरह ,वे पूर्ण रूप से उनके बन्धु और उपास्य देवता हो गये थे।

जंगी बन्दोबस्त में निपुणता ------

जंगी बन्दोबस्त में श्रंखला ,दूरदर्शिता ,सब बातों के ऊपर सूक्ष्म दृष्टि डालना ,अपने हाथों में अनेकों कामों की बागडोर रखने की शक्ति ,मौलिक विचार और कार्य नैपुण्य --इन सब गुणों की उन्होंने पराकाष्ठा दिख दी।देश की यथाथ हालत और उनकी फौज के जातीय स्वभाव के लायक किस प्रणाली की लड़ाई सबसे अधिक अच्छा फल देने वाली थी ,ये सब बातें निरक्षर शिवाजी ने केवल अपनी प्रतिभा के जोर से ही मालूम की थी ,और उनका ही आश्रय लिया था।

शिवाजी की प्रतिभा कैसी मौलिक थी ,कितनी बड़ी थी ,इसे समझने के लिए यह याद रखना चाहिए कि उन्होंने मध्ययुग के भारत में एक अनहोनी बात कर दिखाई।उनके पहले कोई भी हिन्दू मध्याह्न के सूर्य के समान प्रचण्ड तेज वाले बलवान मुगल -साम्राज्य के विरुद्ध खड़े होने में समर्थ  नहीं हुआ था।सभी हार कर पिस गए, और लोप हो गए।यह देख कर भी एक साधारण जागीरदार का यह पुत्र नहीं डरा,वह विद्रोही बना ,और अन्त तक जयलाभ भी करता गया।इसका कारण था शिवाजी के चरित्र में साहस और स्थिर विचारों का समावेश।किस जगह कितना आगे बढ़ना उचित है ;कहाँ पर रुकना चाहिए ;किस समय कैसी नीति का अवलम्बन करना चाहिये :इतने लोग और इतने धन से ठीक -ठीक कौन -कौन काम करना सम्भव है -----ये सब बातें वे एक क्षण में ही समझ जाते थे।यही सब बातें उनकी ऊँची राजनीतिक प्रतिभा की परिचायक थीं।यही कार्यकुशलता और अनुभवपूर्ण बुद्धि उनके जीवन की आश्चर्यजनक सफलता के द्योतक थे।

शिवाजी का राज्य लोप हो गया।उनके वंशज आज जमींदार मात्र है ,परन्तु मराठा -जाति को नवजीवन प्रदान करने के कारण उनकी कीर्ति अमर है।उनके जीवनव्यापी परिश्रम के कारण ही बिखरे हुए ,अनेकों राज्यों में बंटे  हुये ,मुसलमान शासकों के अधीन मराठों को बुलाकर शिवाजी ने पहले अपनी कुशल कार्यप्रणाली के द्वारा यह दिखा दिया कि स्वयं अपने मालिक होकर लड़ सकते है। मराठा जाति दृढ़ हुई, उसने अपनी शक्ति को समझा और उन्नति के शिखर पर पहुंची । उसके बाद स्वाधीन राज्य की स्थापना कर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि वर्तमान (उस काल में ) समय के हिन्दू भी राष्ट्र के सभी विभागों के काम चला सकते है ।राज -काज के बन्दोबस्त करनेमें ,जल या स्थल युद्ध करने में ,साहित्य और शिल्प की पुष्टि करने में ,व्यापारी जहाज तैयार करके संचालन करने में और अपने धर्म की रक्षा करनेमें समर्थ है और देश की राष्ट्रीयता को पूर्णता प्रदान करने की शक्ति अब भी उनमें विद्यमान है।  इन सब कारणों से हम छत्रपति शिवाजी महाराज को हिन्दू -जाति का अंतिम मौलिक संगठनकर्ता और राजनीति -क्षेत्र का श्रेष्ठ कर्मवीर कह सकते है।

शिवाजी के चरित्र के ऊपर विचार करने से हमें यह शिक्षा मिलती है कि प्रयाग के अक्षयवट की तरह हिन्दू -जाति का प्राण अमर है।सैकड़ों वर्ष तक बाधाओं और विपत्तियों  को झेलकर भी पुनः सिर ऊँचा करने की और नये पल्लव फैलाने की ताकत उसमे छिपी है।
निरक्षर बालक ,शिवाजी ने कितना मामूली मसाला लेकर ,चारों ओर के कैसे भिन्न -भिन्न प्रतापी शत्रुओं से लड़कर अपने को ---साथ ही साथ उस मराठा -जाति को ---स्वाधीनता के आसन पर बैठाया था, यह कहानी भारत के इतिहास में अमर रहेगी ।उस आदि युग के गुप्त और पाल साम्राज्य के बाद शिवाजी को छोड़कर और किसी दूसरे हिन्दू ने इतना बड़ा पराक्रम नहीं दिखाया।

मैं उनकी जयन्ती के शुभ अवसर पर हिन्दुत्व एवं राष्ट -प्रेमी इस महान पुरोधा को सादर सुमन  अर्पित करते हुए सत सत नमन करता हूँ।

हमारी नई युवा पीढ़ी से आशा करता हूँ कि वह  छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी को पढ़ कर उनके उच्च आदर्शों को जीवन में आत्मसात करें।जय हिन्द।जय राजपूताना।।

लेखक -डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन  
गांव-लढोता ,  सासनी, जिला -हाथरस ,उत्तर प्रदेश
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (वांकानेर)