Saturday, 31 July 2021
अलीगढ़ जनपदीय स्वतन्त्रता संग्राम सैनानी एवं जनपद के प्रथम विधायक ठाकुर नेत्रपाल सिंह --
अलीगढ़ जनपदीय स्वतंत्रता संग्राम सैनानी स्व0 ठाकुर नबाब सिंह चौहान जी --
अलीगढ़ जनपदीय स्वतंत्रता संग्राम सैनानी स्व0 श्री नबाबसिंह चौहान जी (कंज) ---
जन्मस्थली -
श्री नबाब सिंह चौहान जी का जन्म अलीगढ़ जनपद में 16 दिसम्बर सन 1909 में ग्राम -जवाँ बाजीदपुर में ठाकुर बलवन्त सिंह चौहान जी के गृह में हुआ था।आप बचपन से ही बड़े होनहार एवं प्रतिभावान व्यक्तित्व के धनी थे ।
गुरु शिक्षा से एक कवि भी बने --
आप की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई थी।जब आप आठवीं कक्षा में पढ़ा करते थे तब हिंदी के तत्कालीन प्रख्यात कवि श्री गोकुल शर्मा जी आपके गुरु थे।उनकी प्रेरणा से ही आप ने हिन्दी कविताएं भी लिखना प्रारम्भ किया था ।उसके उपरांत आपने धर्म समाज कालेज से शिक्षा प्राप्त की थी। बाद में 'सुकवि ' के संपादक श्री गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही ' तथा अलीगढ़ जनपद के शीर्षस्थ हिन्दी कवि पंडित नाथूराम शर्मा जी 'शंकर 'के संपर्क में आकर आपने अपना उपनाम " कंज " रख लिया था।आप खड़ी बोली तथा ब्रजभाषा दोनों में ही अत्यंत सशक्त रचना किया करते थे ।आगे का अध्ययन धर्म समाज कालेज अलीगढ़ में ही हुआ।
हिन्दी रचनाएं एवं कविताएं --
आपने अपनी रचनाओं में प्राचीन गाथाओं और लोक संस्कृति का भी अच्छा चित्रण किया था।आपकी रचनाओं का एक संकलन " बुझा न दीप प्यार का " नाम से प्रकाशित हो चुका है।इस संकलन में आप की खड़ी बोली और ब्रजभाषा में लिखी गई 76 कविताओं को समाविष्ट किया गया है।
कविता तथा लेख भी पत्रिकाओं तथा रेडियो स्टेशन के लिए लिखते थे ।इससे प्राप्त धन को वह सुरक्षा कोष में उठा देते थे।आकाशवाणी से समय -समय पर आपके बताए , रूपक प्रसारित होते थे।आप के निम्न कविता संग्रह प्रकाशित हुए।
1-सुबहें समान सब हैं महान ।
2-गूँजें गीत किसान के ।
3-बुझा न दीप प्यार का ।
आप का जन्म एक ग्रामीण परिवेश में हुआ और वहां की अनेक समस्याओं का आपको बखूभी अनुभव भी , इस लिए आपने अपनी रचनाओं में वहां के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का ही चित्रण किया था।मूलतः किसान परिवार से होने के कारण आप अपने जीवन की अनेक विषमताओं को सहज ही अनुभव कर लेते थे ।ऐसी ही निकट परिस्थिति का चित्रण आपने अपनी एक रचना में कुछ इस प्रकार किया है --
जब भूख से सुख शरीर गया ,
वसुधा सु-धरा उपजाए तो क्या ।
अरविन्द को मार तुषार गया ,
मुस्कराता हुआ रवि आए तो क्या ।
कुम्हलाय गईं जब पंखुडियाँ ,
घनश्याम पीयूष चुवाये तो क्या ।
जब प्राण कलेवर छोड़ चले ,
तब "कुंज " कहो तुम आए तो क्या ।
एक स्वतंत्रता सैनानी बनने की इच्छा शक्ति का उदय---
आप अलीगढ़ जनपद के कर्मठ ,लोकतांत्रिक एवं गांधीवादी विचार के स्वतंत्रता सैनानी रहे थे।सन 1930 के सितंबर माह में मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए गांधी जी के आव्हान पर राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े फलस्वरूप इनको धर्म समाज कालेज से निष्कासित कर दिया गया था और अपने जीवन को देश सेवा में अर्पित कर दिया।इनके साथ ही जिन अन्य छात्रों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए अध्ययन छोड़ा उनमें सर्वश्री रामगोपाल आजाद ,गंगासरन और स्वामी त्रिलोकीनाथ का नाम विशेष उल्लेखनीय है जिन्होंने सामाजिक कीर्तिमान स्थापित किये। इसी समय ठाकुर मलखनसिंह , श्री छेदालाल मूढ़ , श्री ठाकुर साहबसिंह , श्री फारुख अहमद के साथ गिरफ्तारियां दीं थी।भविष्य में सत्याग्रह करने के लिए दफा 108 के अंतर्गत जमानत मुचलके मांगे गए लेकिन आप सबने जमानत देना स्वीकार नहीं किया ।चौहान साहब ने लगन के साथ राष्ट्रीय कार्यों में भाग लिया।ठाकुर मलखान सिंह का इन पर वरदहस्त रहा।
जेल यात्राएँ एवं यातनाएं ---
द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने पर कांग्रेस के आदेशानुसार इन्होंने अंग्रेज सरकार की युद्धनीति का धुंआधार विरोध किया।इससे विदेशी शासन इनसे कुपित हो उठा।इनके तथा इनके साथियों के विरुद्ध दफा 108 के वारन्ट जारी हुए।कांग्रेस के आदेश पर भूमिगत न रह कर खुले रूप में प्रचार किया।ये गिरफ्तार किए गये और इन्हें 1 वर्ष का कठोर कारावास का दण्ड दिया गया ।सन 1940 -41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान 20 अप्रैल सन 1941 को फिर नज़रबन्द कर दिया गया। 22 अगस्त सन 1942 की भारत छोड़ो आंदोलन की क्रान्ति में भी ये नजरबंद रहे।आप विभिन्न आंदोलनों में आगरा ,अलीगढ़ ,बरेली ,उन्नाव ,फैजाबाद तथा प्रतापगढ़ की जेलों में लगभग 3 वर्ष सजा काटी ।
स्वतंत्र भारत में राजनैतिक जीवन--
आप किसान वर्ग के प्रबल हिमायती एवं समर्थक रहे ।आप अखिल भारतीय स्तर की मजदूर उनियन एवं पी0 एन0 टी0 फैडरेशन के अध्यक्ष भी रहे।दो बार जिला परिषद के अध्यक्ष (1948 से 1951 तथा1963 से 1970 , भी रहे।11 वर्ष तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
ये प्रदेश कांग्रेस कमेटी के ही सदस्य रहे।भारत के स्वतंत्र होने पर एम 0 एल0 ए0 , एम0 पी0 और जिला परिषद के सदस्य रह कर कीर्तिमान स्थापित करते रहे।कांग्रेस विभाजन के पश्चात ये संगठन कांग्रेस के सक्रिय नेता रहे।सन 1977 में जनतापार्टी के निर्माण पर और कांग्रेस (स) का इसमें विलय होने पर जनतापार्टी में सम्मलित हो गए।इसी वर्ष के लोकसभा के आम चुनाव में अलीगढ़ जनपद ने जनतापार्टी टिकट पर इन्हें लोकसभा का सदस्य निर्वाचित किया ।इस दौरान संसदीय राजभाषा समिति के संयोजक तथा सुरपंचशती राष्ट्रीय समारोह के महामंत्री थे । विश्व सूर्य सम्मेलन की साहित्य समिति के संयोजक भी रहे । 5 अप्रैल 1981 को ये स्वतंत्रता के अमर पुरोधा इस संसार से विदा हो गये।चौहान साहब बौद्धिक प्रतिभा के अच्छे धनी थे।वे एक अच्छे कवि और विचारक भी थे।ब्रज भाषा में इन्होंने अनेक कविताएं भी लिखी हैं।अलीगढ़ जनपदीय स्वतंत्रता सैनानी समिति के अध्यक्ष भी रहे थे।
मैं ऐसे स्वतंत्रता के अमर पुरोधा को सत-सत नमन करता हूँ।जय हिन्द ।जय राजपूताना।।
लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज
Friday, 30 July 2021
अलीगढ़ जनपदीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जिन्दादिली की प्रतिमूर्ति ठाकुर टोडर सिंह --
अलीगढ़ जनपदीय जिन्दादिली की प्रतिमूर्ति विस्मृत स्वतंत्रता संग्राम सैनानी ठा0 तोडरसिंह की गौरव गाथा ---
अलीगढ़ जनपद के महात्मा गाँधीयुगीन स्वतंत्रता संग्रामों के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर टोडर सिंह का जन्म अलीगढ़ जनपद में खैर तहसील के थाना टप्पल के गांव शादीपुर में हुआ था।इनके पिता ठाकुर गंगाप्रसाद जी थे।युवावस्था में ही बंगभंग (सन 1905 ) के आंदोलन ने इन्हें क्रांतिकारी विचार वाला बना दिया ।गाँधी जी के आवाह्न पर सन 1914 में ये फौज में भर्ती हो गए।साथ ही सैकडों रंगरूटों की भर्ती कराने और युद्ध कोष में हजारों रुपये देने में योगदान किया।फौज में रहते हुए भी इनमें देश -प्रेम की भावना अक्षुण्य बनी रही।पूना रेजीमेंट में फौजी अधिकारी द्वारा भोजन सामग्री में कटौती का विरोध करने के कारण इनका कोर्ट मार्शल हुआ।तत्कालीन अलीगढ़ के कलक्टर के हस्तक्षेप के कारण इन्हें अलीगढ़ वापिस भेज दिया ।
सन 1915 में इन्होंने फौज से अवकाश ग्रहण किया।इसके उपरांत ठाकुर साहब का सम्पूर्ण जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित जीवन बन गया।तत्कालीन रौलट एक्ट के प्रसंग में पंजाब में देशभक्तों पर होने वाले अत्याचारों एवं जलियांवाला बाग के अमानुषिक हत्याकांड की घटनाओं ने इन्हें विदेशी शासन का पूरी तरह विद्रोही बना दिया।स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कांग्रेस को इन्होंने अपनाया ।महात्मा गाँधी जी इनके आराध्यदेव और मार्गदर्शक बन गए।
सन 1920-21 के असहयोग और खिलाफत आंदोलन में ठाकुर साहब ने सक्रिय भाग लिया।इस संदर्भ में इनकी प्रथम जेल यात्रा हुई ।इन्हें 1 वर्ष कठोर कारावास तथा 3 मास की साधारण सजा मिली।सन 1923 के नागपुर झण्डा सत्याग्रह में भाग लेने के लिए 40 स्वयं सेवकों का जत्था लेकर उस राष्ट्रीय मोर्चे पर पहुंचे।वहां भी उन्हें जेल की यात्रा करनी पड़ी।सन 1925 की कानपुर कॉंग्रेस के अवसर पर अलीगढ़ से 100 स्वयं सेवकों को कानपुर ले जाकर वहां के प्रबंध को सुचारू रूप से चलाने पर पंडित मोतीलाल नेहरू जी व मातास्वरूप रानी द्वारा ये प्रशंसित हुए।उक्त अवसर पर ठाकुर साहब ने संगठित -शक्ति का अदभुत परिचय दिया था।ठाकुर साहब का निवास स्थान देश की स्वाधीनता पर आत्मोसर्ग करने वाले क्रांतिकारियों का आश्रयदाता बना रहता था।
ठाकुर टोडर सिंह के घर गांव शादीपुर में अमर शहीद सरदार भगतसिंह जी का रहा था निवास----
सन 1927 में फरारी अवस्था में सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी सरदार भगतसिंह जी काफी समय तक बलवन्तसिंह नाम से अलीगढ़ जनपद में रहे थे ।उन्होंने अलीगढ़ जनपद के अग्रिम देशभक्त खैर तहसील के टप्पल क्षेत्र के ठाकुर टोडर सिंह जी के गांव शादीपुर में प्रश्रय पाया था।ठाकुर साहिब क्रांतिकारियों के आश्रय दाता रहे और उन्हें हर प्रकार की सहायता देते रहते थे।सरदार भगत सिंह जी ने ठाकुर साहब के आश्रय में गुप्त रूप से शेरसिंह और नत्थन सिंह जी के साथ क्रांतिकारी संगठन सम्बन्धी कार्य किया था।
31 जनवरी सन 1929 को कांग्रेस के पूर्ण स्वाधीनता के प्रस्ताव ने अलीगढ़ के देशभक्तों में एक नवीन उत्साह और उमंग उतपन्न कर दिया।वे देश की आजादी के लिए सन्नद्ध हो गए ।सर्वप्रथम जब 26 जनवरी सन 1920 को सारे देश में प्रथम स्वाधीनता दिवस मनाया गया ।अलीगढ़ और जनपद में बड़े उत्साह और राष्ट्रीय जोश के साथ यह दिन मनाया गया।फलस्वरूप नगर और जनपद के अंतगर्त क्रांतिकारियों की ठाकुर साहब हर प्रकार से सहायता करते रहते थे।सन 1930 में नमक सत्याग्रह आरम्भ होने पर इन्होंने गांव -गांव घूमकर लोगों को स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था।विदेशी सरकार ने इन्हें गिरफ्तार किया और सन 1930-31 में कुल मिलाकर 22 माह की कठोर जेल और 100 रुपये जुर्माना का दण्ड दिया गया था।सन 1932 में भी इनको जेल यात्रा हुई।सन 1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में कुल 2 वर्ष की कड़ी कैद का दण्ड दिया गया ।
ठाकुर साहब का कार्य क्षेत्र बड़ा व्यापक था।सन 1942 की क्रान्ति का अलख जगाने बाहर निकल पड़े।कांतिकारी गतिविधियों के कारण अन्त में ये बुलहंदशहर जनपद में गिरफ्तार कर लिए गए और इन्हें बुलन्दशहर जेल में बन्द कर दिया गया।सन 1942 को "भारत छोड़ो " क्रान्ति में इन्हें अंतिम जेल यात्रा करनी पड़ी।इस प्रकार स्वतंत्रता संग्रामों में सन 1921 से लेकर 1942 तक इनको अनेक बार विदेशी शासकों ने जेल में रखा ।जेल के कष्ट इनको उद्देश्य से डिगा नहीं सके।
सन 1937 में ये विधान परिषद के सदस्य रहे।15 अगस्त 1947 का दिन इनके जीवन का सबसे अधिक स्वर्णिम दिन था क्यों कि इन्होंने अपने जीवनकाल में अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता का सूर्योदय देखा।भारत के स्वतंत्र होने पर ये विधान सभा के सदस्य भी निर्वाचित हुए।तत्कालीन काँग्रेस में विभिन्न पदों को भी सुशोभित करते रहे ।जिले के सर्व प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी शांति अग्रदूत श्री ठाकुर टोडर सिंह जी 90 वर्ष की आयु में 16 दिसम्बर 1972 को प्रातः ब्रह्ममुहूर्त एकादशी के दिन इस संसार से विदा लेकर निर्वाण पद को प्राप्त हुए।उनकी शव यात्रा फूलों से सज्जित कर जेलरोड में चंदनिया श्मशान तक ले जाई गयी।आगे -आगे पुराने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री प्रेमप्रकाश आजाद ,आजादी के तराने गाते हुए ठाकुर साहब के जय घोष के नारे लगाते हुए चल रहे थे।जनपद के लगभग 200 स्वतंत्रता संग्राम सैनानी एवं गणमान्य महानुभाव साथ में थे।
निःसंदेह ठाकुर तोडरसिंह जी गाँधी युग के एक आदर्श मनीषी थे।इनका सम्पूर्ण जीवन गाँधी दर्शन से प्रभावित था।इनका जीवन बड़ा सरल और सात्विक था।त्याग और तपस्या पूर्ण इनका जीवन बड़ा प्रेरणादायक वन गया था।पवित्र आत्मा की झलक इनके व्यक्तित्व में पूर्णतः प्रतिविम्बित होती थी।सत्य और अहिंसा को इन्होंने पूरी तरह अपने जीवन में उतार लिया था ।कर्मयोगी और स्थितिप्रज्ञता का सुन्दर संमन्यवपूर्ण इनका जीवन भावी सन्तति के लिए आदर्श बना रहेगा ।ठाकुर साहब के संयम पूर्ण जीवन का ही परिणाम था कि इन्होंने 90 वर्ष से अधिक आयु व्यतीत की और अन्त में भौतिक शरीर को त्याग कर केवल यश शरीर को यहां छोड़ गए।इतिहास में इनका व्यक्तित्व और कृतित्व सदैव चिरस्थायी एवं स्मरणीय रहेगा।ऐसी पुण्य आत्मा को मैं सत-सत नमन करता हूँ।जय हिन्द ।जय राजपुताना ।।
लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज
अलीगढ़ जनपदीय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी अलीगढ़ केशरी ठाकुर मलखान सिंह की गौरवगाथा--
अलीगढ़ जनपदीय देशभक्त स्वतंत्रता के अमर पुरोधा अलीगढ़ केसरी स्व0 ठा0 मलखानसिंह जी की गौरवगाथा ---
वर्तमान सन्तति को इतिहास के माध्यम से जानने के सिवाय क्या पता है कि गांधी युगीन स्वतंत्रता संग्रामों में उनके अलीगढ़ जनपद में एक गौरवर्ण वाला लम्बा चौड़ा मूछों वाला चुम्बकीयव्यक्तित्व वाला एक ठाकुर था जिसने क्षत्रितत्व की मांन मर्यादा को म्रत्यु पर्यन्त निभाया और सदा विदेशियों से काँग्रेस के झंडे को लेकर उनसे जूझता रहा।वह विदेशी शासकों के लिए सदैव भय बना हुआ था।वह क्षत्रिय जो स्वतंत्रता के लिए जीया और मरा कौन था वह था ठाकुर मलखान सिंह ।उस वीर सैनानी ने 4 अगस्त 1889 को ठाकुर तुलसीराम सिंह जी के गृह में ग्राम हसौना जगमोहनपुर (अकराबाद ) में जन्म लिया।अकराबाद की वह भूमि जो सन 1857 के वीर शहीदों से रक्तरंजित हो चुकी थी और जिसकी कहानियाँ उसने बुजर्गों से सुनी थी , आदि वातावरण का ही प्रभाव था कि युवावस्था से मलखान सिंह में देशभक्ति की भावना ह्रदय को उद्देलित करने लगी। आप की शिक्षा -दीक्षा का शुभारम्भ गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई । आगरा कालेज से एम 0 ए0 राजनीति विज्ञान में उच्च शिक्षा ग्रहण करने एवं वकालत की परीक्षा करने के उपरांत कुछ दिन वकालत भी की ।इसके बाद सरस्वती विद्यालय हाथरस में प्राचार्य के रूप में कार्य किया।इसके साथ ही देश की महान संस्था कांग्रेस द्वारा छेड़े गये असहयोग और खिलाफत आंदोलन ने इस वीर युवक की ह्र्दयगत राष्ट्रीय भावना को प्रस्फुटन के लिए अवसर आखिर प्रदान कर दिया।वह स्वतंत्रता संग्राम में कूदने से पूर्व ठाकुर मलखान सिंह कोल्हापुर विश्वविद्यालय (बिहार ) में प्रोफेसर नियुक्त हुए थे। ये बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के थे। गाँधी जी की विचार धारा ने उनमें कूट -कूट कर राष्ट्रीय भावना को पल्लवित और पुष्पित कर दिया था।उन तूफानी दिनों में बड़ी निर्भीकता से ठाकुर मलखान सिंह ने भाग लिया।गांधी जी की पुकार पर अलीगढ़ जनपद के असहयोग आंदोलन के अंर्तगत आंदोलन करने का नेतृत्व ठाकुर साहब ने किया ।आपके नेतृत्व में आंदोलनकारियों ने 5 जुलाई सन 1921 को अंग्रेजी दासता का विरोध करने के लिए एवं ब्रिटिश व्यवस्था को तहस -नहस करने के लिए अलीगढ़ रेलवे स्टेशन फूंक दिया तथा सदर , खैर , हाथरस तहसीलों पर आंदोलनकारियों द्वारा अंग्रेज प्रशासकों को हटाकर अपना कब्जा कर लिया गया और स्वतंत्र सरकार की घोषणा कर दी।इन्हीं के केस के संदर्भ में अलीगढ़-काण्ड हुआ।इस घटना से यह प्रत्यक्ष था कि जनता में बड़े लोकप्रिय नेता बन चुके थे तथा अंग्रेजों के कोपभजन बन गए। ।सन 1921-22 में विदेशी सरकार ने 42 मास की कड़ी कैद तथा 3 माह तक सोलिटरी कैद में रखा गया था तस्थ 7 कोड़ों की अंतिम सजा दी।सन 1930 के नमक सत्याग्रह में इन्हें 2 वर्ष की कड़ी कैद की सजा दी गयी थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण 18 माह की कैद तथा 100 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई।जेल से छूटने के बाद आप फरार हो गए ।सन 1932 में आगरा में प्रदेशीय राजनैतिक कांफ्रेस करने का निश्चय हुआ।इसके सभापति ठा0 मलखान सिंह चुने गए।इन दिनों ठाकुर साहब फरारी अवस्था में अलीगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम का अलख जगा रहे थे।बड़े गुप्त रूप से इन्हें आगरा लाया गया ।नमक मंडी में स्थित श्री रायबहादुर बाबू घनश्यामदास रिटायर जज के मकान में ठाकुर मलखान सिंह को भूमिगत रखा गया।पुलिस उनकी तलाश में थी।उसने इनामी वारंट की घोषणा भी कर रखी थी। ठाकुर साहब हजारों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जन -सैलाब को संबोधित कर रहे थे ।तोपों की सलामी की गड़गड़ाहट और हजारों लोगों के समूह में 20 जून सन 1932 को ठाकुर साहब को गिरफ्तार कर लिया गया।इन्हें 18 माह का कठोर दण्ड और 100 रुपये जुर्माना का दण्ड दिया गयाऔर फतेहगढ़ जेल भेज दिया गया ।जेल में उन्हें कई तरह की गम्भीर यातनाएं दी गयी।
ठाकुर साहब में एक क्रांतिकारी का जोश था जो स्वतंत्रता संग्रामों में प्रस्फुटित होता रहा।वे देश -विदेश के क्रांतिकारियों से संपर्क रखते हुए देश की आजादी की लड़ाई में जनता को उत्प्रेरित करते रहे।उनमें अपूर्व संगठन शक्ति थी।उनकी ओजपूर्ण वाणी लोगों को प्रभावित करती थी।सदैव उन्होंने राजनीतिक विरोधियों से भी डट कर टक्कर ली।निःसन्देह वे अलीगढ़ जनपद के एक मात्र अग्रिम नेता थे।
जेल से छूट कर इन्होंने सन 1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में उन्होंने सक्रिय भाग लिया।उन्हें 18 माह का जेल दण्ड मिला ।सन 1942 की क्रान्ति में उन्हें अपने शौर्य प्रदर्षित करने का अवसर दिया ।भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 24 फरवरी 1942 से 27 अक्टूबर सन 1945 तक इनको नज़रबन्द रखा गया । ये जेल से मुक्त हुए।
अलीगढ़ केशरी की उपाधि से नवाजा गया ---
27 अक्टूबर 1945 के बाद जेल से रिहा होने के बाद उत्तर प्रदेश के आंदोलनकारी क्षत्रियों द्वारा तत्कालीन अलीगढ़ जनपद के गांव बांदनूँ में राष्ट्रीय स्तर का क्षत्रिय सम्मेलन आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता ठाकुर मलखान सिंह जी ने की थी ।मुख्य अथिति के रुप में शेरकोट स्टेट की महारानी फूलकुमारी साहिबा पधारी थी जिनके द्वारा ठाकुर मलखान सिंह जी को हजारों स्वतंत्रता सेनानियों के मध्य "अलीगढ़ केशरी "की उपाधि से विभूषित किया गया।तभी से इन्हें अलीगढ़ केशरी के नाम से पहचाना गया।
ठाकुर मलखान सिंह का जीवन जिन्दादिली का जीवन था ।उनका एक योद्धा का जीवन था।जिला स्तर से प्रांतीय स्तर तक काँग्रेस के पदाधिकारी रहे।अखिल भारतीय कांग्रेस के भी वर्षों सदस्य रहे।वे अपने विचारों में पूर्ण समाजवादी थे ।आचार्य नरेन्द्र देव की सलाह से ही वे काँग्रेस छोड़कर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में सम्मलित हुए थे।जब कांग्रेस ने समाजवादी विचारधारा विचार धारा को अपना लिया तो वे स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री जी के आग्रह पर पुनः अपनी मातृ -संस्था कांग्रेस में आ गए।भारत के स्वतंत्र होने पर वे एक बार अलीगढ़ से तथा दूसरी बार सिकन्दराराउ (हाथरस ) से विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। ठाकुर मलखानसिंह का जीवन निःसन्देह गांधी युगीन एक कर्मठ और कर्मयोगी का जीवन था ।24 जनवरी 19632 को 73 वर्ष की आयु में यह स्वतंत्रता का अमर पुरोधा संसार से विदा हो गया।आज ठाकुर साहब यद्धपि नहीं रहे लेकिन इतिहास में वे सदैव अमर रहेंगे और उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रेरणाश्रोत बना रहेगा। उनके निधन के बाद उनकी स्मृति में अलीगढ़ में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके नाम से मलखान सिंह जिला अस्पताल का निर्माण कराया।उनके नाम से कई संस्थाएं संचालित हैं।मैं ऐसे महान स्वतंत्रता प्रेमी को कोटिशः प्रणाम एवं सत -सत नमन करता हूँ।जय हिन्द।जय राजपूताना ।।
जिन्दगी जिन्दादिली को जान ए रोशन ।
यों तो कितने ही हुए और मरते हैं।।
लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज
Sunday, 25 July 2021
अलीगढ़ जनपद में अकराबाद के अमर शहीद ठाकुर मंगल सिंह एवं महताब सिंह के बलिदान की गौरव गाथा ---
इनकी भी याद करो कुर्वानी--अलीगढ़ जनपदीय अकराबाद के अमर शहीद ठाकुर मंगल सिंह एवं महताब सिंह के बलिदान की गौरवगाथा ---
सन 1857 क्रान्ति के प्रारम्भ काल से ही सिकन्दराराऊ ,अतरौली ,अकराबाद ,हरदुआगंज आदि के क्षेत्रों में क्रांति का विस्तार हो गया था।सिकन्दराराऊ , अतरौली और अकराबाद की तहसीलों को क्रान्तिकारियों ने नष्ट -भ्रष्ट कर दिया था ।सिकन्दराऊ के अकराबाद क्षेत्र के पुंडीर राजपूतों के एक दल ने 1857 के स्वाधीनता संग्राम में अहम भूमिका अदा की थी जिनमें अकराबाद के पुंडीर राजपूत नारायन सिंह के दो पुत्र मंगलसिंह और महताब सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए कान्तिकारियों का एक शक्तिशाली संगठन बना लिया था । इनके साथ में मदापुर के मंगलसेन और खेरा के सीताराम सिंह भी रहे थे।अतरौली से बडगुजर राजपूतों ने विदेशी सत्ता को मिटा दिया था।यहां के कान्तिकारियों ने विदेशीसत्ता के ज्वाइन्ट मजिस्टेट मुहम्मदअली को तहसील के फाटक पर मार डाला था।
6 अक्टूबर सन 1857 को अकराबाद में क्रांतिकारियों और अंग्रेज सेनापति ग्रीथेड़ की विदेशी सेना के बीच रूह को कंपाने वाला अंतिम खूनी संघर्ष हुआ।अकराबाद की ओर बढ़ती हुई विदेशी सेना को रोकने के प्रयत्न में लगभग 250 क्रांतिकारी शहीद हुए क्यों कि ये कर्नल ग्रीथेड़ द्वारा भेजे हुए मेजर ओवरी द्वारा मारे गए थे।
अकराबाद पहुंच कर अंग्रेजों ने वहां के प्रमुख क्रान्तिकारी नेता दो सगे भाई मंगल सिंह और महताब सिंह को फांसी पर लटका दिया गया।साथ ही अनेक देशभक्तों को फाँसी दी गयी।अकराबाद में उनकी गढ़ी को अंग्रेजों ने ध्वस्त कर दिया ।इन दोनों भाइयों ने अपने क्षेत्रीय साथियों के साथ अंग्रेजी सेना के साथ खूनी से संघर्ष किया और अंग्रेजो को विजयगढ़ किले की ओर जाने से रोक कर घमासान युद्ध करके वीरता एवं देशभक्ति का परिचय दिया। अकराबाद के शहीदों के स्वजातीय एवं विदेशी शासन भक्त तेजसिंह और जवाहर सिंह ने इस स्वतंत्रता संग्राम में देशद्रोहिता का भी परिचय दिया ।स्वाधीनता के पवित्र यज्ञ में इन्होंने अपनी कुछ पुंडीर राजपूतों को भी भाग लेने से रोका था। महताब सिंह और मंगल सिंह की फांसी के बाद , अक्टूबर 9 , 1857 को ग्रीथेड़ की सेना ने विजयगढ़ में प्रवेश किया और वहां के देशभक्तों का दमन किया ।
अकराबाद के इन दोनों अमर शहीदों की दो छतरियाँ आज भी देशभक्तों के ह्रदयों को स्पंदित कर देती हैं कि यही उन देश भक्तों के स्मारक हैं , जिन्होंने विदेशी दसता के युग में वीर राजपूतों के नाम को सार्थक करने के लिए विदेशी शासकों के विरुद्ध उठ खड़े होने का संकल्प किया था ।इन्होंने क्रान्ति में सक्रिय भाग लिया और अपने इलाके में क्रांतिकारियों का क्षत्रिय परम्परा के अनुसार नेतृत्व किया।विदेशी सत्ता के प्रतीक अकराबाद तहसील के खजाने को लूट वाने में इन्होंने प्रमुख भाग लिया ।वहां के सभी कागजात अग्नि को भेंट कर दिए गए।उत्तरी -पश्चिमी प्रान्त के चीफ कमिश्नर एच0 फ्रेजर के पत्र से जो उसने 31 अक्टूबर सन 1857 को गवर्नर जनरल को लिखा था , यह प्रकट होता है कि अकराबाद के इन दोनों क्रांतिकारी देशभक्तों को नष्ट करने के लिए 2000 सैनिक तैनात किए गए थे।कर्नल ग्रीथेड़ की सेना ने अक्टूबर माह में जब अकराबाद पर आक्रमण किया ।उस समय ये दोनों भाई पकड़े गए और इन्हें फांसी पर लटका दिया गया ।इनकी गढ़ी को ध्वस्त कर दिया गया ।आज इन राजपूत वीरों की अकराबाद में गढ़ी के खंडहर इनकी गौरवगाथा सुनाते हुए प्रतीत होते हैं ।
नाई गांव के ठाकुर कुन्दन सिंह पुंडीर ने 1857 के अकराबाद के क्रांतिकारियों के विरुद्ध अंग्रेजों की मदद की थी जिसके पुरस्कार में उनको नाई के अतिरिक्त दो गावों की जमींदारी भी अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदान की गई और उनको बाद में अंग्रेजी सरकार की मदद की एवज में सिकन्दराराऊ का नाजिम बनाया गया ।इन्होंने देशद्रोहिता का परिचय दिया ।ये अकराबाद क्षेत्र के प्रभावशाली व्यक्ति थे जिनका प्रभाव क्षेत्र के लोगों पर अधिक था ।
अन्त में स्वतंत्रता के इन अमर शहीदों को सत-सत नमन करता हूँ और अकराबाद क्षेत्र के राजपूत भाइयों से आग्रह भी करता हूँ के वे अकराबाद में इन देशभक्त बलिदानी भारत माता के सपूतों की स्मृति में इनकी पुण्यतिथि 6 अक्टूबर को जरूर श्राद्ध सुमन अर्पित करके स्मरण करें।जय हिन्द ।जय राजपुताना।।
संदर्भ --
1-Aligarh :A gazetted of the district gazetteers of United Provinces of Agra &Qudh ,Bill .4 , by H.R.Nevill , 1909.
2-Aligarh District :A Historical Survey ,Aligarh ,Chap.VII , p.173-189.by J.M.Siddiqi .
3-Statistical ,descriptive and historical account of the north -western Provinces of India ,Meerut division pt.I ,1874. Allahabad ,Bill.II.
4-J.Thorton , Report upon .The settlement of pergunnah Moordhany .Zillah Allyaarh ,Vide Allygurh ,Statics.pp.236 ,noted in Aligarh district.
5-Indian Journal of Archaeology , Voll 2 ,No .4 ,2017 . Archaeological Gazetteer of Aligarh and Hathras districts with special reference to OCP and other Proti-Historic cultures of Indo-Gangetic plains by Editor Chief Vijay Kumar.
6-Smith W.H.settlement Report . 345 Aligarh district .Allahabad.
7-Statistical , description and Historical account of the North-western Provinces of India .Vol .3 Edited by Alkinson ,Edwin Thomas.
8-aligarh janpad ka Itihas author Prof.Chintamani Shula.
लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता ,सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
एसोसिएट प्रोफेसर ,कृषि मृदा विज्ञान
शहीद कैप्टन रिपुदमन सिंह राजकीय महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राज
Tuesday, 19 February 2019

Wednesday, 6 December 2017
दास्ताने कोठारिया मेवाड़ क्रांतिकारियों की शरणस्थली
1857-58 के विदेशी दासता विरोधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजपूताने के जिन कतिपय सामन्तों ने योगदान दिया उनमें मेवाड़ की पावन पवित्र राष्ट्र भक्त वीरों की पूज्यनीय भूमि पर
स्थित ,सलूम्बर ,भींडर ,लसानी ,रूपनगर ,के जागीरदारों के साथ -साथ कोठारिया ठिकाने के रावत जोधसिंह जी भी अग्रणी रहे ।स्वभाव ,आचरण एवं विचारों की दृष्टि से रावत जोधसिंह जी क्षत्रिय परम्पराओं के कट्टर समर्थक थे ।वे मेवाड़ की छोटी एवं कम आय वाली जागीर के स्वामी होते हुए भी विदेशी दासता विरोधी भावनाएं संजोये हुए थे ।वे मेवाड़ के उन इने गिने सामन्तों में से थे जो पूर्ण विलासिता एवं अकर्मण्यता में डूबने से बचे हुये थे ।इस लिए 1857 -58 के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सैनिकों को निरंतर सहयोग देते रहे।इतना ही नहीं वह स्वतंत्रता युद्ध की असफलता के बाद भी अंग्रेजी प्रभुत्व की चिंता किये बिना निडरता के साथ अंग्रेज सरकार विरोधी कार्यवाहियां करते रहे ।रावत जोध सिंह जी स्वाभिमानी होने के साथ ही प्रच्छन्न देश भक्त थे।उन्हें भी राजपूताने में अंग्रेजों का हस्तक्षेप बिल्कुल पसन्द नहीं था लेकिन मेवाड़ के महाराणा के भान्जे होने के कारण शुरू में तो अंगेजों के सामने विरोध में नहीं आये पर उस वीर पुरुष ने संकट में आये कई देशभक्त क्रांतिकारियों को अपने ठिकाने में अंग्रेजों की परवाह न करते हुए शरण दी ।
अक्टूबर 1857 में नारनोल में पराजित होने के बाद जब अंग्रेज सेना द्वारा आउवा ठाकुर कुशाल सिंह जी का पीछा किया गया तो वह गोडवाड़ होते हुए अरावली पर्वतीय इलाके में आ गए ,जहां से कोठारिया रावत जोधसिंह जी ने उनको सपरिवार अपनी जागीर में बुलाकर शरण दी ।जब अंग्रेज सरकार को इस बात का पता चला तो जोधपुर राज्य के सैनिक और अंग्रेज घुड़सवार कुशाल सिंह जी को गिरफ्तार करने 8 जून 1858 को कोठारिया पहुंचे किन्तु वे कुशाल सिंह जी का वहां पता नहीं पासके ओर उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा ।उसके बाद 21 अप्रैल 1859 को गुप्त सूचना पुनः पोलिटिकल एजेन्ट को दी कि आउवा ठाकुर का परिवार हमीरगढ़ में रह रहा है ओर ठाकुर कुशाल सिंह जी स्वयं कोठारिया जागीर में मौजूद है।अंग्रेज सरकार को यह भी सूचित किया गया कि भीमजी चारण नामक व्यक्ति भी कोठारिया में शरण पाए हुए है ,जो गंगापुर में अंग्रेज अधिकारियों की संपत्ति की लूटखसोट में शरीक था।और अंग्रेज अधिकारियों के आदेश के बावजूद कोठारिया रावत जोधसिंह जी ने गिरफ्तार नहीं किया है।अंगेज सरकार ने कोठारिया रावत के विरुद्ध कोई कदम उठाने का साहस नहीं किया क्यों कि अंग्रेजों को डर था कि ऐसा करने से उस विपत्ति काल में मेवाड़ के असन्तुष्ट सामन्त मिल करविद्रोह कर सकते है दूसरा मेवाड़ के महाराणा के भान्जे होने के कारण भी रावत कोठारिया को अंग्रेजों ने चलते छेड़ना उपयुक्त नहीं समझा।उस काल में बड़े -बड़े राजा -महाराजा अंग्रेजों से भयभीत रहते थे,ऐसे में रावत जोधसिंह जी द्वारा प्रदर्शित निर्भीक देशभक्त का आचरण , स्वतत्र्य प्रियता आनबान और ठाकुर कुशाल सिंह जी आउवा को आश्रय देने पर किसी चारण कवि ने लिखा---
कोठारिया कलजुग नहीं,सतजुग लायो सोध।
अंगरेजां आडो फिरे,जाड़ो रावत जोध।।
मुरधर छांड खुसालसी ,भागो चापों भूप।
रावत जोये राखियो, रजवट हंद रूप।
जोध भलां ही जनमियो,सत्रुआ उरसाल।
रावत सरनैं राखियो,कामन्धा तिलक खुशाल।।
देश के प्रसिद्ध क्रांतिकारी पेशवा नाना साहब एवं उनके सहयोगी राव साहब पाण्डुरंगराव सदाशिव पन्त जी तथा अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खुला सशस्त्र विद्रोह करने वाले तात्या टोपे के साथ रावत जोधसिंह जी का बराबर सम्पर्क था।जोधसिंह जी ने समय -समय पर राव साहब द्वारा भेजे गये लोगों को शरण दी और सहायता प्रदान की ।इस प्रकार से कई लोग साधु वेश में कोठारिया ठिकाने में गुप्तरूप में रहे ।अंग्रेज सरकार को इस बात का संदेह बना रहा कि राव साहब स्वयं छद्दम वेश में कोठारिया में छिपे हुये है राव साहब द्वारा रावत जोध सिंह जी को लिखा पत्र मिलता है जो उनके निकट सम्बन्धों का महत्वपूर्ण प्रमाण है।
9 अगस्त 1857 को जब तांत्या टोपे की सेना जनरल रॉबर्ट्स की सेना द्वारा भीलवाड़ा के निकट पराजित हुई तो तांत्या वहां से सीधा नाथद्वारा होते हुये कोठारिया पहुंचे।कोठारिया रावत जोधसिंह जी से उनको पर्याप्त सहायता मिली ।ऐसा कहा जाता है कि तांत्या की सेना के गोला -बारूद की कमी के कारण पांव युद्ध से उखड़ गए थे ।दुर्भाग्य से उन दिनों कोठारिया ठिकाने के पास भी पर्याप्त मात्रा में गोला बारूद नहीं था।कहते है कि उसी समय कोठारिया का एक तोपची अवकाश पर बाहर चला गया ,उसकी अनुपस्थिति रावत जोधसिंह जी को बहुत अखरी थी तभी सहसा उस तोपची की 70 वर्ष की व्रद्ध मां ने तोपची की जगह स्वयं सम्हाली ओर संकट के उस समय में उस महिला ने गोला -बारूद के अभाव में लोहे के सांकले ,कील -कांटे जो भी उस समय उपलब्ध हुए ,उसी से काम चलाया।उस बूढ़ी महिला के साहस ,बहादुरी ,देशभक्ति एवं कर्तव्यपरायणता से प्रसन्न होकर रावत साहब ने अपने कोठारिया ठिकाने का चेनपुरा गांव उस महिला को इनाम स्वरूप में जागीर में देदिया।ऐसी की कहते है राजपूती देशभक्ति।इस प्रकार कोठारिया रावत से पर्याप्त सहायता मिलने पर तांत्या टोपे ने 13 अगस्त को पुनः कोठारिया के निकट अंग्रेज सेना का सामना किया किन्तु दुर्भाग्यवस तांत्या यहां भी पराजित हुये।
स्वतंत्रता युद्ध की असफलता के बाद भी स्वाभिमानी देशभक्त रावत जोधसिंह जी अंग्रेज सरकार विरोधी कार्यवाहियां करते रहे ।
1861 ई0 में महाराणा स्वरूपसिंह जी का देहांत होने पर उनके साथ कोई सती प्रथा का उदाहरण अंग्रेज सरकार को मिला जिसमे मेहता गोपालदास नाम के व्यक्ति का प्रमुख हाथ था।अंग्रेज सरकार ने उसको पकड़ने के आदेश किये किन्तु वह कोठारिया चला गया जहां रावत जोधसिंह ने उसको भी शरण देदी।उसी भाँति रावत जोधसिंह जी ने सरकारी आदेश के विरुद्ध मेवाड़ के पूर्वप्रधान मंत्री मेहता शेरसिंह को भी शरण दी थी ।
1963ई0 में महाराणा शम्भूसिंह की नाबालिकी में पोलिटिकल एजेन्ट द्वारा हाकिम मेहता अजीतसिंह की अमानवीय अत्याचार और हत्या अपराध लगाकर गिरफ्तार किया गया ।अजीतसिंह उदयपुर की कैद से भागकर कोठारिया रावत की शरण में चला गया।पोलिटिकल एजेन्ट और मेवाड़ सरकार की धमकीयों के बाबजूद रावत जोधसिंह जी ने अजीतसिंह को समर्पित करने से इन्कार कर दिया किन्तु शरणागत की रक्षा करने के राजपूतों के परम्परागत कर्तव्य के प्रति राजपूतों की उत्कंठ भावना को देखते हुये पोलिटिकल एजेन्ट को साहस नहीं हुआ क्यों किइस प्रकार की कार्यवाही से राजपूतों में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध राष्ट्रीय भावनाएं उत्तपन्न होने का खतरा था ।अलबत्ता अंग्रेज सरकार के दबाब के कारण महाराणा शम्भू सिंह जी ने कोठारिया जागीर के 2 गांव जब्त करने के लिए धौंस अवश्य भेजी थी ।
1865ई0 में मेवाड़ के तत्कालीन अंग्रेज पोलिटिकल एजेन्ट ले0 कर्नल ईडन ने अपने दौरे पर जाते हुए कोठारिया जागीर के भीतर तम्बू डाल कर ठहरने का विचार किया तो रावत जोधसिंह जी ने ऐसा करने पर ईडन के तमाम कर्मचारियों को मार डालने की धमकी दी ।ईडन ने जब इस बात की रिपोर्ट अंग्रेज सरकार को की किन्तु रावत जोधसिंह जी के विरुद्ध अंग्रेज सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी।
इस प्रकार वीरों की प्रणेता पावन पवित्र भूमि मेवाड़ में जन्मे इस स्वतंत्रता प्रेमी राष्ट्रभक्त साहसी निडर ठाकुर ने अपने कोठारिया ठिकाने में कई क्रांतिकारियों को शरण दी व साधन भी उपलब्ध कराए।इस प्रकार स्वतंत्रता के दीवाने कोठारिया के रावत जोधसिंह जी चौहान ने भी स्वाधीनता के लिए की गई क्रांति में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर अमरता प्राप्त की ।
देश की आजादी के लिए स्वाधीनता संग्राम से लेकर आजादी के बाद भी देश के लिए सबसे अधिक बलिदान व त्याग क्षत्रिय जाति के हिस्से में रहा है यह कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।यही कारण रहा कि मेरा झुकाव भी उन क्षत्रिय वीरों और वीरांगनाओं पर रहा जिन्हें इतिहास ने जन -साधारण तक नहीं पहुंचाया ।दूसरे शब्दों में यह भी गलत नहीं है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राजपूतों के इतिहास को दबाया गया है।1857 ई0 के स्वाधीनता संग्राम में देश के सभी प्रान्तों के क्षत्रियों का स्वतंत्रता प्राप्ति में अहम योगदान रहा है लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि तत्कालीन इतिहासकारों ने भी उनको इतिहास में वह स्थान नहीं दिया जिनके वे हकदार थे ।हमारे राजपूत इतिहासकारों ने भी कभी इस विषय पर चिंतन नहीं किया ।आज के युग में सभी अपने अपने समाज की बातें करते है और अपनों के विषय में लिखते है ,तो हमारे समाज के हमारे पूर्वजों के त्याग ,बलिदान तथा राष्ट्रभक्ति के इतिहास को दूसरे लोग क्यों लिखेंगे ।हमें अब अपने पूर्वजों के गौरवमयी इतिहास को स्वयं लिखना होगा।राजपूताने में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले विभिन्न मेवाड़ ,मारवाड़ तथा अन्य क्षेत्रों के राजपूत सामन्तों का अहम योगदान रहा है लेकिन सभी के विषय में इतिहासकारों ने नहीं लिखा यही अमर शहीदों के साथ अन्याय है ।
अंत में ,मैं अपने इस लेख को कोठारिया ठाकुर साहब रावत जोधसिंह जी की स्मृति में समर्पित करते हुऐ अपने शब्दों के द्वारा स्वतंत्रता के अमर पुरोधा देशभक्त को सादर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुऐ सत -सत नमन करता हूँ ।जय हिंद।जय राजपूताना।।